हवा को और हवा देते हो | Hawa ko Aur Hawa Dete ho
हवा को और हवा देते हो
( Hawa ko aur hawa dete ho )
आती है आंधी क्यों तूफान बना देते हो।
मसला हो घर का तलवार तना देते हो।
भूल गए भाईचारा प्यार की मीठी बातें।
महकते उपवन को वीरान बना देते हो।
चलती है हवाएं हवा को और हवा देते हो।
बदलाव की बहारों में कई मोड़ ला देते हो।
बदलती दुनिया सारी वक्त बदलता रहता।
इंसान हो क्यों इंसान में रोष जगा देते हो।
प्यार की बातें करके यूं हमको दगा देते हो।
मन का चैन हरके फिर हमको भगा देते हो।
हमने चाही भलाई यूं निखर आओ शिखर पे।
मुंह मोड़कर हमसे मुश्किलें और बढ़ा देते हो।
गीत सुहाने सुनाकर महफिल महका देते हो।
खिलते हुए चमन में यार बहार बहा देते हो।
अधरो से बहती है रसधार खुशबू को लिए।
दिलों की धड़कनों में भी प्यार जगा देते हो।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )