जग से निराला लगे,
जग से निराला लगे
रूप घनाक्षरी
मनमीत-8,8,8,8
चरणांत -21
जग से निराला लगे,
सबसे ही प्यारा लगे,
छेड़े जब प्रेम धुन,
वह राग मनमीत ।
मुख आभा लगे ऐसी,
पूनम के चाॅ॑द जैसी,
मुख शोभित लालिमा,
ज्यों रजनी चाॅ॑दप्रीत ।
दीप उजियार करे,
घर की है शोभा बढ़े,
दमक रहे जुगनू,
ऐसे लगे नैन जीत ।
अजब सी लीला देखो,
प्रेम रस जरा चखो,
कहे फिर सारा जग,
है अनोखी प्रेम रीत ।
कवयित्री: दीपिका दीप रुखमांगद
जिला बैतूल
( मध्यप्रदेश )
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