Kavita hansti aankhon ka
Kavita hansti aankhon ka

मैं हंसती आंखों का गहना

( Main hansti aankhon ka gahana ) 

 

मैं हंसती आंखों का गहना तुम नयनों में रहती हो।
धड़कनें बढ़ जाती है जब भी तुम कुछ कहती हो।

 

खिला खिला सा चेहरा ये तुमको पाकर महक उठा।
मन का पंछी मनमौजी बन चमन पाकर चहक उठा।

 

बहती धारा बलखाती सी मधुर सुधारस भरकर।
स्वर्ग अप्सरा उतर आ गई सौम्य स्वरूप धरकर।

 

प्रेम पुजारी बनकर तेरा तुम प्यार का बहता झरना।
सांसो से सांसों की सरगम तुम संग ही जीना मरना।

 

दिल का कोना कोना महका सुरभित तुम पुरवाई हो।
होंठ रसीले गाल गुलाबी झर धवल चांदनी आई हो।

 

गीत गजल छंद सुरीले संगीत सुहाना आ जाता।
माधुर्य मादकता मोहक रस धारा बरसा जाता।

 

भावों की भगीरथी उर उमड़े उमंगों की भरमार हो।
दिल के बजते तारों से झंकृत तुम सलोना प्यार हो।

 

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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