कजरी सावन | Sawn Par Kavita
कजरी ‘सावन’
( Kajari savan )
अबकी सावन में हमै चाही चीज मनमानी सैंया।
बरसइ रिमझिम पानी सैया, सबदिन कहां जवानी सैंया ना।।
सासु ससुर तीरथ यात्रा पर चार महीने डटे रहें।
ननद रहे ससुराल में अपने जेठ भी घर से हटे रहें।
पास पड़ोसी घर न आवै दूर-दूर ही कटे रहें।
नदी नार उतराई चलें सब आपार जल से पटे रहें।।
केउ मेहमान न घर में आवै, पुरवा झोंकि के दिया बुझावै।
देवर रहैं ओसारे टांगे मच्छरदानी सैंया।।
सब दिन०
गांव गांव में झूला डारे झूलि रहे सब सज धज कर।
प्रियतम साथ हमहूं झुलवै मनवां में नाहीं कोई फिकर।
बजरी धान अगेती उड़द निरवाते सब छोड़ि के घर।
दादुर मोर पपीहा बोली सुनि करके मन जाइ सिहर।।
पुरवा झोकि रहे पुरवाई,ओरी के पानी बड़ेरी धाई,
घर में बैठि मजा खूब लूटी दुनउ परानी सैंया।
सब दिन ०
सूरज चांद छिपें बदरी में आठो पहर अंधेरा हो।
प्रियतम की बाहों में संध्या दोपहर और सवेरा हो।
मणि मोती माला सोनार का पास मे घर के डेरा हो।
सरस सावनी सनसनात सुखबास पवन का फेरा हो।।
चहुं दिस छाई रहे हरियाली,खोवा खायऽ भरि भरि थाली।
शेष सावन में कजरी गाई रहे लैसानी सैंया।।
सब दिन०