कौन बुझाये | Kavita Kaun Bujhaye
कौन बुझाये!
( Kaun bujhaye )
दुश्मन जो आग लगाए पानी उसे बुझाये,
पानी ही आग लगाए उसे कौन बुझाये।
माना यौवन के आगे न चलता जोर किसी का,
मीठी-मीठी नजरों से जब होता कत्ल किसी का।
कोई थाम के बाँह को छोड़े कोई दूजा पार लगाए,
जब दूजा ही बाँह को छोड़े उसे कौन बसाए।
दुश्मन जो आग लगाए पानी उसे बुझाये,
पानी ही आग लगाए उसे कौन बुझाये।
माना यू.एन.ओ. के बल अक्खी दुनिया ये चलती,
होता अनाथ न कोई, न युद्ध में दुनिया फँसती।
तूफ़ाँ में फँसी है नइया नाविक उसे बचाए,
नाविक ही नाव डुबोए, उसे कौन बचाए।
दुश्मन जो आग लगाए पानी उसे बुझाये,
पानी ही आग लगाए उसे कौन बुझाये।
नाटो, यू. एस. ने देखो कैसी है घात लगाई,
देकर हथियार वो अपने कैसी है चिता सजाई।
जब फूल को पतझड़ झाडे,आकर बहार बचाए,
जब बाग बहार उजाड़े, उसे कौन बचाए।
दुश्मन जो आग लगाए पानी उसे बुझाये,
पानी ही आग लगाए उसे कौन बुझाये।
रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक), मुंबई