Madiralay par Kavita
Madiralay par Kavita

मदिरालय

( Madiralay ) 

 

पड़ा धुत नशे में राही मदिरालय को जाता।
लड़खड़ाती जिंदगी है समझ नहीं वो पाता।
मय प्याला हाथों में छलके जामो पे जाम।
ये कैसी दीवानगी छाई घर हो जाए नीलाम।

बेखुदी में रह बेसुध है मधुशाला को जाए।
पीने वाले पी रहे हैं हाला हाला मद भाए।
सोमरस सुधारस घोले मदिरा सर चढ़ बोले।
शब्दों की हाला पी देखो मन की आंखें खोलें।

सूरापान मधुपान में मस्त मतवाला मधुपान हुआ।
मदिरालय में डूबा है दिन रात मदिरा पान हुआ।
मय के प्यालों में टूटे हैं कितनो के अरमान यहां।
हाला के हालों में छूटे हैं हाथों से दिनमान यहां।

मदिरालय वो रस्ता है जहां पे सिसकती सांस है।
आज मधुशाला में डूबी जाने कितनों की आस है।

 

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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