पुनर्जन्म | Kavita Punarjanm
पुनर्जन्म
( Punarjanm )
मैंने सबसे कीमती वस्तु को, तलाशना चाहा,
हीरे-जवाहरात , मणि माणिक ,
सभी लगे मिट्टी के धूल समान,
मैं अपनी धुन में,
खोजता चला जा रहा था ,
दिन, महीने में बदलने लगे ,
महीने वर्ष में ,
लेकिन नहीं मिल सकी,
वह कीमती तोहफा,
जो संसार में सबसे कीमती हो।
तभी रोड के किनारे,
एक स्त्री ,
अपने बच्चों को ,
दूध पिलाने के वास्ते,
मूक भाव से ,
अपलक निहार रही थी।
उसके आंसू सूख कर,
कांटा हो गए थे।
जैसे लगता था कि ,
पत्थर से आंसू टपक रहे हो,
मैंने उसे,
संसार की सबसे कीमती वस्तु समझा,
और कह उठा ,
मिल गया जिसकी मुझे तलाश थी,
जानना चाहेंगे ,
वह बच्चा और उसकी मां ,
कौन थी ?
वह था मैं और मेरी मां !
क्योंकि मैंने सुना था कि,
बीमारी और भूख से,
मां के दूध गए थे सूख,
मेरी मरणासन्न अवस्था देखकर,
मां अपलक निहारा करती ,
मन्नते दुआएं मांगती ,
मां के निश्चल दुआओं के सामने,
प्रभु को पड़ा झुकना,
मुझे देना पड़ा- पुनर्जन्म।
योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )