थकान | Kavita Thakan
थकान
( Thakan )
जरूरी नहीं कि हर अंधेरा
रोशनी के साथ हि पार किया जाय
हौसलों के दीये कुछ
दिल में भी जलाये रखा करिये
माना कि गम कम नहीं जिंदगी में
आपकी जरूरते भी तो कम नहीं
पैदल के सफर में लगता है वक्त भी
पास की भी दूरी लगती कम नहीं
सभी को मिलती नहीं वसीयत
खुद ही लड़नी होती है लडाई
तरकस मे रखे तीर भी
बिन निशाना साधे नही चलते
खुद की कमजोरी हि
ढूंढ लेती है हजारों बहाने
किसी को भी दोष देने से
अपने मशले कभी हल नहीं होते
रास्ते की थकान को थकान नहीं कहते
थकान तो लौट जाने की होती है
आधा पार कर आधे की लौट मे तो
वही दूरी पार हो सकती थी
जिसके लिए शुरुआत हुयी थी
( मुंबई )