खिलता हुआ गुलाब या कोई शराब हो
खिलता हुआ गुलाब या कोई शराब हो
खिलता हुआ गुलाब या कोई शराब हो।
कितना हसीन तुमको कहूं बेहिसाब हो।।
मचले है जिसको देख के मस्ती भरा ये दिल।
चढती हुई उमर का वो चढता शबाब हो।।
देखे हसीन चहरे बहुत से खुदा कसम।
तेरा नहीं जवाब कोई लाजवाब हो।।
ख्वाबों में रोज आते हो दीदार कब मिले।
सारे सवालों का मिरे तुम ही जवाब हो।।
मैं ढूंढता रहा जिसे अपने ही आसपास ।
जगते हुए भी देखा जिसे तुम वो ख्वाब हो।।
देखा नहीं था आपको पहले कभी भी यूं।।
पढ ही नहीं था पाया जिसे वो किताब हो।।
तेरे सिवा “कुमार” ने सोचा किसी को कब।
मालिक दिलो-दिमाग के तुम ही जनाब हो।।
❣️
कवि व शायर: Ⓜ मुनीश कुमार “कुमार”
(हिंदी लैक्चरर )
GSS School ढाठरथ
जींद (हरियाणा)
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