किसी का ज़ोर न चलता यहां तक़दीर के आगे
किसी का ज़ोर न चलता यहां तक़दीर के आगे
किसी का ज़ोर न चलता यहां तक़दीर के आगे।
झुकाते सर सभी अपना इसी तासीर के आगे।।
बला की खूबसूरत हो मिले कैसे कोई तुम सा।
ठहरता जब नहीं कोई तिरी तस्वीर के आगे।।
न करते घाव वो दिल पर कटारी या कोई गोली।
सभी हैं बे-असर लगते नज़र के तीर के आगे।।
नहीं हारे कोई बाजी हमेशा जीतते आए।
नहीं टिकती कोई मुश्किल सही तदबीर के आगे।।
बङे शातिर है वो यारो बहुत बातें बनाने में।
तभी मैं हार जाता हूं सदा तकरीर के आगे।।
खुदा के सामने झुकता हमेशा ही ये सर अपना।
झुका पाया नहीं कोई इसे शमशीर के आगे।।
न की परवाह कोई हमने भले दुश्मन रहा कोई।
बढे हम तो हमेशा ही कलेजा चीर के आगे।।
“कुमार” बढता ही रहता जो कभी भी कम नहीं होता।
ख़जाने फीके सारे दिल की इस जागीर के आगे।।
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कवि व शायर: Ⓜ मुनीश कुमार “कुमार”
(हिंदी लैक्चरर )
GSS School ढाठरथ
जींद (हरियाणा)
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