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लोग | Log

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जिंदा रहने के नाम पर, केवल जी रहे हैं लोग
मिलने के नाम पर, केवल मिल रहे हैं लोग
बेवफाई का आलम यह, खुदे से ही खुद को छल रहे हैं लोग

यकीन करें किस पर, मतलबी शहर के बीच
अपना कहकर, अपनों का ही गला घोट रहे हैं लोग
रहना भी चाहें, तो रहें किस बस्ती में जाकर
जमी तो जमी रही, आकाश भी खरीद ले रहे हैं लोग

फुरसत किसी को नहीं, खुदगर्जी की होड़ है
दिशाहीन सा होकर, जाने कहाँ दौड़ रहे हैं लोग
मंजिल पे काबिज मन नहीं,
पर मुकाम को ही तलाश रहे हैं लोग

फैलता ही जा रहा है, और धुंद कोहरे का
भुला बैठे हैं खुद को ही, और लोगों को ढूंढ रहे हैं लोग

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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