शरीफ़ ख़ान की कविताएं | M.S. Khan Hindi Poetry

विषय सूची

विरह प्यार आधारित सृजन

टूटे पत्तों सी बिखर गई जैसे, सपनों की वह छाया।
कल जो साथ था हर पल मेरे, आज वही हो गया पराया।

सूनी आँखें, मौन अधर, मन में हुई पीड़ा अपार।
आशाओं की डोर थम है, दिल दर्द से हुआ बेहाल।

धूप मिली तो छांव हटी,हाथ बढ़ाया, पर किस्मत रूठी।
चाहा था साथ चले कोई, पर जीवन की राह रही अधूरी।

स्मृतियों के साए में जीता,हर लम्हा आंसू में बहता।
जो अपना है, पराया होता, विरह प्यार फिर भी चलता रहता।

अपरिवर्तनीय चीज़ें

कुछ चीज़ें संसार में न बदली,वक़्त की आँधी में अडिग रही,
सूरज की पहली किरण, और चाँद का शीतल उजाला।
बदलते मौसम, बदलती राहें,समय की धारा बहती ही जाए।
जीवन के कुछ सत्य ऐसे, जो हर युग में अडिग रह जाए।
सब बदले,सत्य न बदले,संघर्ष की अग्नि में हौसला न झुके।
सौहार्द की भाषा के शब्द बदलें, पर अहसास न बदल पाए।
जीवन का अंत अपरिवर्तनीय, क्षण क्षण नई कहानी है।
जीले सत्य कर्म कर मुस्कुराकर,वही तो असली ज्ञानी है।
बदलाव की लहरें आएँगी, पर कुछ मूल कभी न हिलने पाएं।
बदलते मौसम, बदलती राहें, समय की धारा बहती जाए।
जीवन के कुछ मूल सत्य,जो हर युग में अटल रह जाए।
हक़ सदा अटल होगा,चाहे दुनिया भी बदलती जाए।
संघर्षों की अग्नि जले, पर हौसला न झुकने पाए।
प्रेम की भाषा पुरानी,शब्द बदलें लेकिन अहसास नही बदले।
परिवर्तन की लहरें आती, जो परिवर्तन में अपरिवर्तन होती।
माँ की ममता, प्रेम सदा, सत्य की अमर रोशनी होती।
बचपन की मासूमियत हँसी,यादों में रहकर नहीं मिटती।
संघर्षों में जो भिड़ जाए,जो अडिग रहे, जो नही झुकती,
वो हृदय की पवित्र निश्चलता,कोई तूफानों से नही रुकती।
चलता समय,थमती नहीं धारा, बदले चेहरे, बदलता नज़ारा।
कुछ बातें सदा अमर अजर हैं,सृष्टि के गूढ़ आधार एक हैं।
सूरज उगता, चाँद चमकता,धरती अपनी धुरी पर रहती।
जद्दोजहद का दृढ़ संकल्प,इंसानियत की है अडिग पहचान।
त्याग, धैर्य और सत्य कर्म की, हर पीढ़ी की अनमोल जान।
बदलाव की लहरे आती है, कुछ अडिग अटल खड़े रहते हैं।
जो अनंत हक़,सत्य के दर्पण हैं, वो ताकयामत तक रहते हैं।

सुंदरी

नील गगन में चाँदनी करे झिलमिल अपार,
स्वप्न सुंदरी हूर सी, कोमल पुष्प से सत्कार।

नयनों में वो ऐसे दिखे, छवि अनुपम प्यार,
स्वप्नआँगन में रहे रूप की अतुल फुलवार।

उसकी वाणी मधुररस में, घुलती जैसे गीत,
हृदय की वीणा छेड़ दे, कोमल से संगीत।

आती है चुपके से, मन के स्पंदन के साथ,
खो जाती शबनम सी, प्रातःकाल के साथ।

स्वप्न सुंदरी! रुक जाओ, मत यूँ दूर जाओ,
स्वप्नों से बाहर भी, सच में रूप दिखाओ।

हिसाब किताब सी ज़िंदगी

ज़िंदगी में कई हिसाब किताब निभाता,
कभी हानि उठाता कभी लाभ बनाता।
कभी लाभ सफलता की धुन में भागता,
कभी हानि असफलता से मन घबराता।

इंसान हिसाब किताब जीवन में करता।
वक्त इसकी लाभ और हानि बदलता।
जीवन के उजाले व अँधियारे दिखाता,
खुद के सपनों के मंजर को भी सजाता।

फायदे की कमी पूर्ति पैसा आना-जाना,
जीवन दृश्य है हिसाब किताब अफसाना।
अंत में जीवन की किताब का पर्दा गिरता।
इस दुनियाँ का हिसाब बस बंद हो जाता।

दुनिया का मंच हिसाब किताब निभाता,
वक़्त रहते हिसाब किताब सुधारता।
आखिर में बस सच्चा हिसाब रह जाता,
और किताब का जवाबदेह बन जाता।

आंदोलन

अन्याय जब बढ़े जग में, तब क्रांति जन्म लेती है,
शोषण की जंजीरों को तोड़, हुंकार प्रबल देती है।
हक के खातिर जो लड़ जाए, वो फरियादी होता है।

गूँज उठी जब जनता सारी, सड़कों पर आ जाती है।
झूठ, छलावे की दीवारें, पल भर में ढह जाती है।
शोषण के बंधन तोड़ चलो, और न सहना होता है।

इंकलाब की लौ जलाकर,अन्याय न सहना होता है।
कदम-कदम पर लड़ना होता, जब बदलाव होता है।
संघर्षों की राहें चुनकर, सत्य व न्याय पाना होता है।

सड़कों पर जब जनता आए, सत्ता भी हिल जाती है।
सत्य-असत्य की जंग में,जीत सदा सत्य की होती है।
हक की खातिर लड़ते मानव ही वीर कहलाते हैं।

गांधी,आज़ाद और भगत से तारीख लिखी जाती है।
चिंगारी जब शोला बनती, बदलाव क्रांति आती है।
त्याग, तपस्या और संघर्ष से, नया सवेरा आता है।

गर आंदोलन नहीं जिनके जीवन में वो अभागे होते है,
या तो प्रण को तोड़ते हैं या फिर रण से भागे होते हैं।
प्रण लेकर जो रण को जीते वो ही क्रांतिकारी होते हैं।

हिसाब किताब सी ज़िंदगी

ज़िंदगी में कई हिसाब किताब निभाता,
कभी हानि उठाता कभी लाभ बनाता।
कभी लाभ सफलता की धुन में भागता,
कभी हानि असफलता से मन घबराता।

इंसान हिसाब किताब जीवन में करता।
वक्त इसकी लाभ और हानि बदलता।
जीवन के उजाले व अँधियारे दिखाता,
खुद के सपनों के मंजर को भी सजाता।

फायदे की कमी पूर्ति पैसा आना-जाना,
जीवन दृश्य है हिसाब किताब अफसाना।
अंत में जीवन की किताब का पर्दा गिरता।
इस दुनियाँ का हिसाब बस बंद हो जाता।

दुनिया का मंच हिसाब किताब निभाता,
वक़्त रहते हिसाब किताब सुधारता।
आखिर में बस सच्चा हिसाब रह जाता,
और किताब का जवाबदेह बन जाता।

अन्याय जब बढ़े जग में, तब क्रांति जन्म लेती है,
शोषण की जंजीरों को तोड़, हुंकार प्रबल देती है।
हक के खातिर जो लड़ जाए, वो फरियादी होता है।

गूँज उठी जब जनता सारी, सड़कों पर आ जाती है।
झूठ, छलावे की दीवारें, पल भर में ढह जाती है।
शोषण के बंधन तोड़ चलो, और न सहना होता है।

इंकलाब की लौ जलाकर,अन्याय न सहना होता है।
कदम-कदम पर लड़ना होता, जब बदलाव होता है।
संघर्षों की राहें चुनकर, सत्य व न्याय पाना होता है।

सड़कों पर जब जनता आए, सत्ता भी हिल जाती है।
सत्य-असत्य की जंग में,जीत सदा सत्य की होती है।
हक की खातिर लड़ते मानव ही वीर कहलाते हैं।

गांधी,आज़ाद और भगत से तारीख लिखी जाती है।
चिंगारी जब शोला बनती, बदलाव क्रांति आती है।
त्याग, तपस्या और संघर्ष से, नया सवेरा आता है।

गर आंदोलन नहीं जिनके जीवन में वो अभागे होते है,
या तो प्रण को तोड़ते हैं या फिर रण से भागे होते हैं।
प्रण लेकर जो रण को जीते वो ही क्रांतिकारी होते हैं।

सहनशीलता – एक सच्ची ताकत

सहनशील मानव रहते जग में, वे ही सच्चे ज्ञानी कहलाते,
आंधी, तूफान, दुख, घोर निराशा में भी न घबराने वाले होते।

सागर की लहरें सब कुछ सहती, फिर भी शांत बनी रहती,
धरती सारे जगत का भार उठाकर, हर मौसम में सुख देती।

सूरज खुद जलता और फिर भी जगत को, रोशनी से भर देता,
चंदा तपकर शीतल अमृत बरसाए जग में, अंधियारे को हर लेता।

पेड़ खड़े हैं धूप और मौसम सहकर, स्वादिष्ट फल दे जाते,
पत्थर खाकर भी देते फल और हरियाली जग में प्यार लुटाते।

सहनशीलता वही गुण है जो एक इंसान को फरिश्ता बनाता,
जो भी व्यक्ति अपनाए जीवन में, पथिक सच्चा कहलाता।

“जीवन: एक रंगमंच”

जीवन में विभिन्न किरदार निभाता,
कभी हँसता, कभी आंसू बहाता।
कभी सफलता की धुन में भागता,
कभी असफलता से मन घबराता।

ख़ुदा! नियति निर्देशक जीवन का,
वक्त इसकी पटकथा, कर्म बदलता।
जीवन के उजाले,अँधियारे दिखाता,
स्व सपनों के मंजर को भी सजाता।

मिलना,बिछड़ना और आना-जाना,
जीवन दृश्य है संबंधों का अफसाना।
अंत में सारे जीवन का पर्दा गिरता।
दुनियाँ का जीवन बस रुक जाता।

रंगमंच पर सही किरदार निभाओ,
वक़्त रहते अपने अख्लाक सुधारों।
चूंकि अंत में बस अमल रह जाता,
बाक़ी ख़ुदा का जवाबदेह बन जाता।

बचपन पर कविता

बचपन के वो प्यारे दिन, सपनों जैसे न्यारे होते थे।
न चिंता थी, न कोई भार, हर दिन त्योहार होता था।
मिट्टी में खेला करते थे, नंगे पैर ही भगा करते थे।
छोटी-छोटी खुशियों में, सारा जहान बसा करते थे।
अब भी मन तरसता है, वो प्यारा समय बरसता था।
मेरा बचपन थी मेरी दुनिया, सपनों जहान चलता था।
न कोई चिंता, न थी उलझन, हर पल था मुस्कान।
खेल-खिलौने, हँसी के मेले, हर दिन नया उजास था।
धूप में दौड़ें, बारिश में भीगें, खुशियों का अहसास था।
माँ का प्यार, बाप की डांट से घर में छुप जाया करते थे।
मम्मी, दादी की कहानी सुनते आंगन में सो जाते थे।
भाई बहिनो के संग आकाश में तारे सितारे गिनते थे ।
कागज की वो नावें बनाकर, बारिश में बहाया करते थे।
गुब्बारों के पीछे भागकर,हँसते-हँसते गिर जाते थे।
अब भी दिल के किसी कोने में, मेरा बचपन हँसता है।
कभी कभी स्वप्नों में आकर, मुझसे बातें करता है।
काश! फिर से लौट सकूँ, बचपन को याद करता हूं।

रानी लक्ष्मी बाई “झाँसी की रानी

बुंदेलों की आन थी रानी, वीरों की पहचान थी।
रणभूमि में चमक उठी, वो जलती ज्वाला समान थी।
बलिदान की अमर कहानी, भारत की वो शान थी।
खून से उसने इतिहास लिखा, वो सच्ची बलिदान थी।
रणभेरी जब गूँज उठी, बन गई अग्नि बाण थी।
माथे पर था तेज अद्भुत, नयनों में एक चिंगारी थी।
बचपन से ही निडर, कठिनाइयों से नहीं हारी थी।
स्वाभिमान से जीने वाली, झाँसी की सवारी थी।
“मैं अपनी झाँसी न दूँगी!” यह उनकी ही आन थी।
रणभूमि में खड़ी अकेली,पर हिम्मत न वो हारी थी,
बिटिया बनकर जन्मी थी, पर वीरों जैसी नारी थी।
सिंह सी गर्जना करती रानी, रण में उठी तलवार थी।
अंग्रेजों से लोहा लेने, वो नारी स्वाभिमानी थी।
शत्रु दल जब बढ़कर आया, सामने लक्ष्मी बाई थी ।
खूब लड़ी मर्दानी रानी, झाँसी वाली रानी थी।
घोड़े पर जब निकल पड़ी तो बिजली-सी लहराती थी,
शत्रु अंग्रेज़ के हर सैनिक को, रण में धूल चटाती थी।
“झाँसी मेरी शान है” यह उद्घोष उसकी जान थी।
मर जाऊँ पर हार न मानूँ, भारत देश की शान थी।

बेगम हज़रत महल: शौर्य की अमर कहानी

भारतवर्ष की माटी गूंज उठी, जब रणचंडी ललकारी थी,
अंग्रेजों की सत्ता डगमगाई, जब हज़रत महल हुंकारी थी।

अवध की रानी स्वाभिमानी, अन्याय से नही डरने वाली थी,
लखनऊ की शान की सच्ची रक्षक, भारत देश की लाली थी।

आज़ादी का पहला गदर हुआ, सिंहनी जैसी ललकार लगाई थी,
अंग्रेजों के जुल्मों से लड़ने वाली वो खुद ही एक चिंगारी थी।

वीर जवानों संग बढ़ती हुई वतन की खातिर रण में उतरी थी,
स्वतंत्रता का दीप जलाने फिरंगी सत्ता जड़ से हिलाई थी।

1857 के विप्लव में, स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बजाई थी,
बेगम हज़रत महल आगे बढ़कर राष्ट्र प्रेम का दीप जलाए थी।

हाथ में तलवार दमकती, आंखों में दृढ़ संकल्प को रखती थी,
ग़ुलामी की बेड़ियाँ तोड़ने, बन गई प्रचण्ड रणचंडी थी।

“न अन्याय सहेंगे, न झुकेंगे, होगा भारत स्वतंत्र अपार” वो पुकारी थी।
हिंदू-मुस्लिम संग लेकर के माटी का क़र्ज़ चुकाने वाली थी।

बलिदान दिया, पर हार न मानी, रणभूमि में अमर कहानी थी।
लखनऊ की सर ज़मीन पर इस वीरांगना की शान गर्वित थी।

त्याग की मूरत, शौर्य की देवी,भारत देश की बेटी बलिदानी थी।
बेगम हज़रत महल अमर रहे, उनकी कहानी विश्व ने जानी थी।

भारतीय विश्व दृष्टि पर आधारित पद्य

भारतवर्ष का सार्वभौमिक नारा वसुधैव कुटुंबकम् है।

हर जीव में प्रेम बसता विश्व एक कुटुंब की भांति मान्य है।

ना भेद न सीमाएँ, जाति द्वेषता का कोई भी बंधन है।

भारतीय दृष्टि में सहिष्णुता, सद्भाव विश्व में सर्व पहचान है।

अहिंसा परमोधर्म ही देश की आजादी का मूल मंत्र है।

भारत में धर्म निरपेक्षता और विविधता का मेल है।

अनेकता में एकता भारत की आन बान और शान है।

विविध संस्कृति में कौमी एकता भारत की जान है।

सत्य मेव जयते भारत का अमर संदेश व ज्ञान है।

सहिष्णुता, सौहार्द, स्नेह, सद्भाव भारत की शान है।

“सर्वे भवन्तु सुखिनः” मंत्र, ही भारत की पहचान है।

विश्व में सबसे बड़ा,लिखित सार्वभौमिक संविधान है।

महादेवी वर्मा पर कविता

वह श्रंगार की अनुपम मूरत और पीड़ा की पहचान,
उसने गाया नारी-हृदय का और मूक वेदना का गान।

वेदना बनी जो कविता उसकी, अश्रु बने जो शब्द,
भावों की उस गहराई में, झलके विरह अनिर्वच ।

नीर भरी दुःख की बदली, पर हौंसले की मूरत,
उसकी कलम में है संजीवनी, उसकी भाषा सुरभित।

सीता, यशोधरा के नयनों की, वह सजीव सी व्याख्या,
नारी-मन की पीड़ा को, दी उसने अमर अभिव्याख्या।

वह चेतना की जागृति थी, और आलोक की अविरल धारा,
साहित्य जगत में रहेगा गूँजता, ‘दीपशिखा’ का जयकारा।

चंचल मन

चंचल मन जैसे नदी की बहती धारा,
बहे अविरल न रुके कोई किनारा।
किसी पल हँसे, दूसरे क्षण में रोए,
चँचल मन कोई कल्पनाओं में खोए।

सोचता रहता कि मैं क्या कर डालूँ,
सपनों की जैसे मीनारें बना डालूँ।
यह चंचल मन कभी ठहर न पाए,
प्रतिपल कोई कोशिश में लग जाए।

हवा के साथ उड़ता जैसे बादल,
कहीं भी बरस जाए वर्षा चंचल।
शांत भाव से नहीं रुके किसी पल,
चंचल मन हर दिन करे कोलाहल।

चंचल मन, अब संयम को धर ले,
थोड़ा ठहर जा शांत पथ कर ले।
चंचलता छोड़ धीरज धारण करले,
धैर्य संग चलकर,दृढ़ मन को करले।

लोगों को कहने दो

लोगों को कहने दो, जो कहना है,
तुम अपने सपनों को सच करना है।
दूसरों की बातों से जीवन रुकना है।
सुनोगे सबकी तो राहों में रहना है।

जो भी वो चाहे, वो भी कहने दो,
मन की उड़ान को ऊंची भरने दो,
वो लोग तो बस कहते ही रहेंगे,
तुम अपने हौसले को बढ़ने दो।

कदम बढ़ाओ, नजर उठाओ,
खुद पर थोड़ा विश्वास लाओ।
कहते-कहते वो भी थक जाएंगे ,
तुम अपनी मंज़िल पा जाओगे।

गलतियों से सीखना

गलतियाँ हैं जीवन का हिस्सा,इनसे मत तुम भागना,
जो ठोकर खाकर संभल न पाए,उसको राहें त्यागना।

एक कदम जो गलत पड़ा, तो सीख उसे तुम लेना,
बार-बार जो दोहराए ग़लती, समझो व राह को सोचना।

चोट लगे तो दर्द भी होगा, पर तुम नहीं घबराना,
अंधियारे में ही होता है, रोशनी का एक दीया जलाना।

हार को जीत बनाना सीखो, ठोकर में राह सीख बनाना,
गलतियों को मत दोहराओ, सही कदम उठाना सीखना।

हर भूल चूक एक संदेश है, हर ठोकर में ज्ञान खोजना,
गलतियाँ जीवन की गुरु होती हैं, जो देंती सत्य पहचान।

स्वर गीत (अ से अ: तक)

अ से अमृत, अंबर नीला होता।
आ से सूरज उजाला लाता।
इ से इन्द्रधनुष मुस्काता ।
ई से ईख का रस मीठा होता ।

उ से उड़ता पंछी नभ में विचरण करता।
ऊ ऊंट रेगिस्तान जहाज़ कहलाता ।
ऋ से ऋषि ध्यान लगाता।

ए से एकता की माला बनती।
ऐ से ऐश्वर्य की वर्षा सुख दे जाती।

ओ से ओस कण मोती गिरती।
औ से औषधि वन में खिलती।

अं से अँगना खिल उठता।
अः से शुद्ध उच्चारण होता।

शहीदों की अमर गाथा

शहीद दिवस की पावन बेला, उनकी याद दिलाती है।
बलिदानों की अमर कहानी, पीढ़ीयों को प्रेरित करती है।

भगत सिंह की हुंकार अभी भी, गूँज रही इस धरती पर,
इंक़लाब की जोत जलाकर, मिटे नहीं वो जज़्बा हर-घर।

हँसते-हँसते सूली चढ़कर, इतिहास नया रच डाला था।
हंसते हंसते फांसी चढ़कर, जीवन न्योछावर कर डाला था।

राजगुरु का साहस देखो, मौत को गले लगाया था।
बुझ ना सका आंधी में भी, वो देश प्रेम की ज्वाला था।

सुखदेव की आँखों में भी, आज़ाद भारत का सपना था।
त्याग दिया था सारा जीवन, बस देश हो जाए अपना था।

वो झुके नहीं थे, डरे नहीं थे, बस बढ़ते रहे सिर्फ़ क्रांति की राह,
आज भी उनकी यादों से, भर जाता मेरा रोम-रोम में प्रवाह।

आज प्रण लो हम सब मिलकर, उनका सपना साकार करें।
भारत देश में सब मिलकर, सद्भाव व सौहार्द का सत्कार करें।

बलिदान की वेदी पर जो आज़ादी के लिए शहादत दे जाए।
इंक़लाब का उद्घोष बनाकर, हर ज़ुल्म से जो टकरा जाए।

भगत सिंह वो अमर कहानी, दिलों दिलों में जो बस जाए ।
घर परिवारों को छोड़ देश पर, जो बलि-वेदी पर चढ़ जाए।

अशफ़ाकुल्लाह वो परवाना, जो सच में देश का सिपाही था।
ग़ुलामी की जंजीरों में भी, आज़ादी का अद्भुत राही था।

राजगुरु वो क्रान्तिवीर था, जो दुश्मन से नही डरता था।
मातृभूमि की रक्षा खातिर, अंग्रेज़ों से जो लड़ता था।

देश के लिए जीता था, फाँसी को हँसकर चूमा था।
ऐसे सूरज को सैल्यूट मेरा, जिसने हर दिल को जीता था।

ऐसे शहीदों के बलिदान से, यह देश हमेशा रोशन है।
कुर्बानी की मिसाल बने वो, फांसी पर भी वो झूले हैं।

जब भी देश में अंधियारा छाए, याद उन्हीं की आ जाएगी।
क्रांति की ज्वाला फिर जलाकर, सौहार्द नया बनाएगी।

हिंदू नव वर्ष विक्रम संवत उत्सव पर

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत नूतन वर्ष से हर्षित हो सबका जीवन,                          

 आशा की नवीन किरणें, खिले मन, नवीन सपनो से भर दे जीवन।       

रंगीन उत्सव , मिठास भरा प्रेम और खुशियों से घिरा तन मन।

सभी मनाएं खुशियों का जहां,साथ चलें हर व्यावसायी और किसान।

नवीन उमंग, नया संघर्ष, नव संवत्सर के हर लम्हा में आशियान।

जीवन को सजीव, सपनों को साकार, कर दे संकल्प नूतन ।                

नव वर्ष की आए सौगात , खुशियों का रंग, नव संभावनाओं का संगम।

प्रेम, शांति, आनंद की बौछार से हर दिन नव रंग, नव उमंग।

नव वर्ष की सुगंधित लहरें, ताजगी भरे मन से प्रफुल्लित हो अंतर्मन।  

शुभ विवाह: एक पावन बंधन

नये जीवन की पहली बेला, आया है यह शुभ संदेशा।
जीवन की मधुर सपनों के संग, बँध रहे दो दिल हमेशा।

मंगल गीत हवाओं में गूँजे, सज उठी है यह घर सारा।
निकाह के संग वचन लेकर,नव जोड़े का जीवन संवारा।

दुआ दें हम सब मिलकर, सुख-समृद्धि सदा बरसे।
प्यार का दीपक जलता रहे, घर आंगन में उजाला बरसे।

विश्व कविता दिवस “कविता का दीप”

शब्दों की ज्योति जले अनवरत,
मन के अंधेरे को कर दे विस्मृत।
भावों की गंगा बहे अविरत,
कविता की गूँज करे सत्य प्रकट ।

कभी वेदना, कभी आह्लाद,
कभी प्रेम का मधुर प्रसाद।
हर एहसास को छूती रहती,
मन के तारों को जोड़े रहती।

क्रांति की चिंगारी कविता बने,
शांति की फुहारें कविता बने।
जो टूटे मन को जोड़ सके,
कविता ही जीवन का सार बने।

शब्दों में जादू उसके रस में मिठास,
कविता सिखाए जीवन की आस।
कविता हर भाव को आकार देती,
यह कभी हँसाती या कभी मुस्काती।

तो आओ हम सब मिलकर आज,
कविता दिवस का करें ये पाठ।
दिलो में कविता का जले प्रकाश,
इसके शब्दों से फैले प्यार की आस।

जल ही जीवन है

शीतल और निर्मल, जल ही है जीवन,
जग के सर्व प्राणी का इसी से जीवन।

बिन जल, सब कुछ सूना है जीवन,
सूखे धरती, मरुथल हो जाए जीवन।

नदियाँ बहें, तालाब,झरने जल को पाएं,
जल के बिना सबका जीवन ही मुरझाएँ।

हमने इसकी कद्र क़ीमत अगर नहीं जानी,
और बूंद बूंद को समझा सिर्फ़ पानी-पानी।

जंगल, वृक्ष कटे, स्रोत सूखने लगे पानी,
जूझने लगे वनस्पति,जंतु,जीव बिन पानी।

जल ही जीवन अमृत,जल ही शक्ति,
सिर्फ़ जल संरक्षण से होगी समृद्धि।

आओ प्रतिज्ञा लें, जल की करें वृद्धि,
बूंद बूँद बचाके कल की करे समृद्धि।

गौरैया की पुकार

छोटी सी मैं नन्ही गौरैया का आना,
फुदक-फुदक कर गाऊं गाना।
आंगन में जब खेला करती,
सबके मन को भाया करती।

घर-आंगन की शोभा थी वो,
हर चौखट की रौनक थी वो।
अब ढूंढो तो नहीं मिलेगी वो,
बिछड़ गई कहीं पर खो गई वो।

अब पेड़ों की वो छांव नहीं है,
कौन बनाए घोंसला उसका।
शहरों की इस दौड़ में देखो,
कहीं दबा है आशियां उसका।

गौरैया को बुलालो फिर दोबारा।
वन संरक्षण का तुम दिया जलाओ,
थोड़ी धूप, हवा, घर पर लाओ।
मैं फिर आयेगी गौरैया चहकने।

भाग्य या क़िस्मत की चाबी

संघर्ष की अग्नि में तपकर,
जो निखर सके, वही सोना है।

बैठे-बैठे कभी कुछ नहीं होगा,
चाहो क़िस्मत, तो करना होगा।

मेहनतकुंजी से ताले खोलना होगा,
क़िस्मत नहीं सितारे गढ़ना होगा।

अपने कर्मों से उसको बनाना होगा,
बाधा को एक सीख बनाना होगा।

भाग्य को चाबी कर्मों से बनाना होगा,
ख़ुद ऐतबार से क़िस्मत बनाना होगा।

क़िस्मत की चाबी तेरे पास होने पर,
मेहनत से भाग्य ताला घुमाना होगा।

सुहानी भोर

सुहानी किरणों के भोर की आई,
फिज़ाओं में घुली बयार छाई।
शीतल समीर के मीठे सुर गूंजे,
नवजीवन के स्वर से बहार आई ।

कलियों की मुस्कान में उमंग आई,
ओस की बूंदों में छिपा है रंग पाई।
मंद-मंद बहती धूप की लहर आई,
धरा को नव-आभरण ने सजाई।

चहचहाहट के मधुर स्वर आए,
हर पेड़, हर पत्ती, हर फूल मुस्काए,
नव सपनों को नए रंग में दिखाए।

भोर की ये प्यारी सौगात आई,
हर सुबह एक नई एक राह पाई।
जगाए हृदय में प्रकृति का उजास,
कुदरती तबस्सुम, सुहानी भोर आई।

शब्दों के मोती

शब्दों के दीप जलते हैं मन में,
भाव बहते हैं पीड़ा बनके मन में।

शब्दों के मोती जीवन का उजाला है,
हर शब्द एक पंक्ति का उजाला है।

दुनियां जो देखे, वो ही सभी समझे,
शब्दों के मोती से हर मर्म को लिखे।

कभी आत्मा की गूँज, कभी मानवता जगे,
कभी मन की शब्द पुकार, कभी हक़ जगे।

ये लेखनी पथिक बन, अनुभूति शब्दों में बुनी,
सुख-दुख, प्यार, विरह के शब्दों को पंक्ति में पिरोई।

कल्पनाओं की उड़ान में भी, सच, हक़ का दीप जलता है।
शब्दों में कोई संदेश मन के भीतर का उद्गार निकलता है।

शब्द उस धारा की कणिका,जहाँ भाव उद्गार प्रवाह में सत्य बहे।
हर अक्षर शब्द मेरी साधना हो, प्रत्येक शब्द, सच और हक़ कहे।

सपनों से तक़दीर तक* “ड्रीम टू डेस्टिनी”

अगर सपनों में उड़ान भरो, आसमान तक जाओ।
और हौसला यदि मजबूत हो,मंज़िल को पा जाओ।
सोचो मत कि राह कठिन है, बस चलते ही जाओ,
जीवन पथ पर गर मुश्किलें हज़ार,सीखते जाओ।
मेहनत और यकीन का संगम, सपना पूरा कराए।
रात के अंधेरों में रोशनी,दुनिया में इतिहास बनाए।
ड्रीम से डेस्टिनी का यकीनी सफर विजेता कहलाए।
जो डटे रहे, गिरकर संभलते गए,मंज़िल बढ़ते जाए।
आंधियां रोके तूफान घेरे,पर हिम्मत सवेरा दे जाए।
जलते हुए दीपक रातों में, नई सौगातों से जाए।
मेहनत की लौ से मंज़िल का सपना हकीकत बन जाए।।

आईना और मैं

आईना मुझसे रोज़ ये कहता,

“क्यों खुद से तू आँखें चुराता है?”

मैं हँस के कहता, “क्या बतलाऊँ,

ख़ुद को समझ नहीं पाता हूँ।”

वो बोल पड़ा, “मैं हूँ तेरा अक्स,

तेरी परछाईं, तेरा ही रूप, तेरा रिफ्लेक्शन;

जो देखा तुझमें, वही दिखलाया,

फिर क्यों तुझसे दूर रखे तेरा नक्शा?”

मैं चुप सा बैठा, सोच में डूबा,

क्या सच में मैं खुद से अनजान हूँ?

या चेहरा मेरा, मन का आईना,

जिसे देखने से परेशान हूँ?

आईना बोला, “मत घबरा तू,

चेहरे से परे भी एक जहाँ है,

जो मन, मस्तिष्क में उजाला कर पाए,

असल में वही तूफ़ान है।”

मैं मुस्कुराया, खुद को देखा,

अब आईने से डर नहीं लगता,

जो हूँ, जैसा हूँ, वैसा क्यूँ न रहूँ?

अब आईना भी मुझसे कुछ नहीं कहता।

बच्चे हमारे

बच्चे हमारे गगन के सितारे, ये बच्चे हमारे,
चमकेंगे जग में, ये बनकर उजाले।
इनके नन्हे से सपने, बड़ी सी उड़ाने,
खुशियों से भर दें, ख़ुदा इस जहाँ में।

इनकी मासूम हँसी,महकती फिजाएं,
बहारें बरसाएं जहां पर भी ये जाए।
सीखें नया कुछ, बढ़ें आगे हरदम,
इल्म की शमा से करेंजग को रोशन।

आशाओं के दीपक,उमंगों के सागर,
नन्ही सी दुनियां, हौसले हैं भीतर।
हर मुश्किल को ये आसान करेंगे,
सपनों की दुनिया सजाएंगे हरदम।

गगन के सितारे, ये बच्चे हमारे,
चमकते रहें ये, हमेशा ही न्यारे।
चमकते हैं जैसे दीपक उजियारे।
मासूम हँसी से दुनियां को सँवारें,
खुशियों के मोती ,हर क़दम बिखेरें।

नन्हे कदम है पर हौसले बड़े हैं,
सपनों के पंछी ये उड़ने खड़े हैं।
खेलें, खिलखिलाएँ, सीखें बड़ों से,
ये तहज़ीब को दिल में रखें सजाए।

सपनों की वह परछाई

टूटे पत्तों सी बिखर गई जैसे, सपनों की वह परछाई।
कल जो साथ थी हर पल मेरे, आज वही हो गई पराई।

सूनी आँखें, मौन अधर, मन में हुई पीड़ा अपार।
आशाओं की डोर थम है, दिल दर्द से हुआ बेहाल।

धूप मिली तो छांव हटी,हाथ बढ़ाया, पर किस्मत रूठी।
चाहा था साथ चले कोई, पर जीवन की राह रही अधूरी।

स्मृतियों के साए में जीता,हर लम्हा आंसू में बहता।
जो अपना है, पराया होता,जीवन फिर भी चलता रहता।

ज़रा-ज़रा सी बात पर

ज़रा-ज़रा सी बात पर….
दिल क्यों इतना रोता है?
बूँद-बूँद एहसास टपकते,
मन भी बादल सा होता है।

ज़रा-ज़रा सी बात पर….
क्यों दिल इतना डरता है?
कांच की चूड़ियों सा टूटता है,
मन को उद्वेलित करता है।

कोई कुछ कह दे हल्का सा,
मन को वो भारी कर जाए।
वो जो लम्हे साथ गुजारे थे,
हर क्षण वापिस लौट आए?

ज़रा-ज़रा सी बात पर….
अब कभी नहीं पछताएं हम।
समय के साथ चलकर हम,
सफर के राही बनकर हम।

“मन पतंग, दिल डोर”

यदि मन पतंग, दिल हो डोर ,
पतंग उड़ता जाए नभ की ओर।
ये हवा संग बातें करता है,
सपनों के पंख फैलाता है।

मन इच्छाओं की ये गगरी,
मन भरती रहे उमंग भरी।
मन में आशाओं के रंग सजे,
मन ही इंद्रधनुष से पल रचे।

मन कभी मदमस्त, कभी सहमा,
कभी हँसा, कभी ग़मगीन रहा।
पर डोर जो स्नेह प्यार से बंधी,
हर मोड़ पर साथ साथ रही।

मन कभी ऊँचाइयों को छूता,
कभी गिरकर फिर से उठता।
मन पतंग, दिल डोर से बंधा,
ख़्वाबों की ऊँचाई तक बढ़ा।

मन कभी ऊंचे चढ़े,कभी ये गिरे,
पर आसमान को दिल से तके।
मन पतंग, दिल डोर का साथी,
दिल की डोरी से उड़ें मन का राही।

बेहतर लोग, बेहतर दुनिया

जब इंसान में परस्पर प्यार भरा,
तो हर हृदय में हो सदा उजियारा,
नफरत की दीवारें यदि गिर जाएँ,
बन जाएगा ये सारा जहां प्यारा।

सच की जहां पर हो यदि पहचान,
वहां झूठ कभी ना पाए कोई स्थान,
ईमान, सहिष्णु का जहां दीप जले,
वहाँ सौहार्द से रहे प्रत्येक इंसान।

जहाँ हाथ बढ़े गरीब की मदद को,
वहाँ ना कोई भूखा, ना कोई प्यासा,
जहाँ इंसानियत की जब हो क़ीमत,
वहां रहे दुनिया में सच का साया।

यदि हम बदलें तो दुनियां बदले,
हर दिल में प्यार की शमा जले,
बेहतर लोग अगर हम बन जाएँ,
वहीं बेहतर दुनिया का जहाँ खिले।

अल्लाह-ईश्वर का साथ

अल्लाह या ईश्वर का साथ है, हर पल यह विश्वास है।

विपदा, अंधियारे में दीप जलाए,राह दिखाए हमेशा पास है।

सुख में शीतल छांव बने, दुःख में भी मेरी ढाल बने।

हर मज़हब में प्रेम लिखा, इस्लाम में संदेशा ईमान मिले ।

मंदिर-मस्जिद द्वार सभी के,खुले हुए हर जात के।

प्रेम, दया, करुणा, सद्भाव, आज जरूरत सिर्फ इसी भाव के।

अल्लाह-ईश्वर साथ हमारे,हर क्षण, हर पल, हर सांस में।

उसका नाम सजे होठों पर,उसकी रोशनी हमेशा पास में।

निराला जी पर कविता

स्वाभिमान के वो प्रतीक निराले,
शब्दो में अग्नि के फूल खिलाए।
छंद तोड़े, कविता नियम मिटाए,
कविता काव्य नव रूप दिलाया।
गरज उठी थी जब उनकी वाणी,
गूंज उठा हर कवि हिन्दुस्तानी।
“सरोज-स्मृति” की पीड़ा भारी,
फिर भी मन की दृढ़ता जारी।
एक शक्ति उनके शब्दों में थी,
नियम परे, पर भाव प्रखर थे,
काव्य स्वच्छंद और निखर था।
छंद बंधन के कैद में न होकर,
काव्य शब्द प्रचंड शिखर था।
“वह तोड़ती पत्थर” में दिखती,
श्रम की गरिमा, श्रम का बल था।

मेरे भविष्य की कार्य योजना

चलो रचें एक नई कहानी, संघर्षों से निर्मित करे करे ये जिंदगानी ।
बीते हुए युग की धूल झाड़कर,आगे बढ़ने की मैने बस ठानी।

भविष्य की कार्य योजना हैं मेरी दृष्टि में, उन्हें हकीकत में बदलेंगे।
खून पसीने से सींचेंगे कर्म की राहें, हर मंज़िल तक बढ़ते जायेंगे।

मुसीबतें और रुकावटें जो भी आएंगी, मुस्कुराकर हम करेंगे पार।
दृढ़ संकल्प,जोश, जुनून, के साथ आत्मविश्वास से हर वक़्त रहेंगे तैयार।

कल क्या होगा, किसे पता? मग़र आज से ही भविष्य संवारूंगा।
नेक इरादों और मेहनत की रोशनाई से, मुस्तकबिल बनाउंगा।

सपनों की जोत जलाए हूँ, हर मुश्किल से टकराए हूँ।
मेहनत की राह पकड़कर नए भविष्य की ओर बढ़ाए हूँ।

सोच नहीं बस कर्म करूँगा, हर अवसर का मर्म समझूंगा।
रुकावट चाहे जितनी आए, नेक इरादों, हौसले से सृजन करूँगा।

ज्ञान की शमा जलाना है, आकाश में एक नई उड़ान लगाना है।
खुद को निखारकर, संसार सँवारकर,एक नया परिवर्तन लाना है।

परिस्थितियों व संघर्षों से न घबराऊँगा, हर चुनौती अपनाऊँगा।
धैर्य, समर्पण और विश्वास, इन्हीं गुणों से यह संसार चमकाऊँगा।

भविष्य हमारा स्वर्णिम होगा, हर जीवन लक्ष्य मेरा निर्धारित होगा।
कठिन मेहनत से राह बनाऊँगा, सपनों को साकार कर दिखलाऊँगा।

सुरमई शाम

सिंदूरी आंचल में लिपटी आई,

सुरमई शाम एक गीत सुनाई।

धीमे-धीमे दिन ढल रहा है,

हवा के संग पक्षी आ रहे हैं।

क्षितिज पे सूरज छुप सा जाए,

लालिमा की चादर छा जाए।

पंछी लौटें घोंसलों में अपने,

संग लाएं दिनभर दाने अपने।

नील गगन में तारे झिलमिल,

चाँदनी की सारी बाहें हों निर्मल।

मंद बयार का मीठा हो अहसास,

आया मन में मधुर स्नेह अनायास।

सांझ की चुप्पी कुछ है कहती,

शाम की बाहों में धीमे से बहती।

सपनों की राहों में दीप जलाए,

सुरमई शाम सभी को सहलाए।

जहाँ खिलता है फूल

जहाँ खिलता है फूल, वहीं बहार होती है,
नव सुगंधित सौगात की बयार होती है।

कोमल पंखुड़ियों में मंद मंद धूप मुस्कुराती है,
शबनम की बूँदें ठंडी ओस के मोती बन जाती हैं।

मौसम की हथेली पर रंग बिरंगे फूल बिखरते हैं,
धीमी ठंडी बयार के सुरों में संगीत से संवरते हैं।

पहली किरण प्यार से छूकर पहुंच जाती है,
वहीं जीवन की नई कली भी फूट जाती है।

जब खिलता है फूल, आशा,प्रत्याशा जगती है,
अधूरी आरज़ू,तमन्नाएं मंज़िल को पहुंच जाती है।

विश्वास की मिट्टी में ही रिश्तों के बीज उगते हैं,
नेह की वर्षा में दो हृदय में पुष्प महकते हैं।

मुस्कान सहारा बनकर दूरियाँ पास आती हैं।
दिल की धड़कनें यादों का गीत बन जाती हैं।

परस्पर इज़्ज़त में प्रेम का फ़ूल खिलता है।
अपनापन की सांसों में रिश्ता पनपता है।
रिश्ते मज़बूत होने से सच्चा blossom होता है।

“अल्लाह/ईश्वर सर्वत्र सर्वव्यापी है”

अल्लाह की क़ुदरत चाँदनी व नदी की लहरों में छिपी।
उसकी कुदरत हवा के सुरों में बसी,
दिल की धड़कन में छिपी।
देखो और अहसास करो ब्रह्माण्ड में उसकी कुदरत का नूर है।
न कोई जगह है जो ख़ाली रहे, वो सर्वत्र और सर्वशक्तिमान है।
ईश्वर है नभ में, ईश्वर धरा में, ईश्वर सर्वज्ञ व सर्वव्यापी है।
सूरज की किरणों मे, चांद की शीतल फुहारों में कारीगरी उसकी।
फूलों की खुशबू में कुदरत बसी,वृक्षों की छाया में प्रकृति उसकी।
हर धड़कन, हर श्वास में उसके रहस्य की अद्भुत कारीगरी छिपी।
मत ढूंढो उसे, किसी जगह, वो बंदे के अतः करण में बसा।
आँखें बंद कर, यक़ीन कर, वह बंदे के ईमान में बसा।

सकारात्मक सोच

अगर धूप तेज हो, छाँव को ढूँढ लेना,
अगर राह कठिन हो, हिम्मत ढूँढ लेना।
हर मुश्किल में छुपी एक सीख मिलेगी,
बस हिम्मत से बढ़ने से हौंसला मिलेगा।
काँटे और शूल भी होंगे, फूल भी खिलेंगे,
पल में उजाले, पल में अंधियारे घिरेंगे।
जो देखेगा जग में कठिनाइयों में उजाले,
उसके लिए स्वप्न भी सच होंगे निराले।
हर बूँद में सागर की एक गूँज सुनाई दे,
अंधेरी रात में, भोर की रौनक दिखाई दे।
इंसान सोच बदले, सितारे बदल जाएंगे।
नज़र को बदले तो नज़ारे बदल जाएंगे।
बादल घने घिर जाएँ,मन का दीप जलाओ।
अंधियारे के भीतर भी, शमा को जलाओ।
मुश्किल बस सीख,हिम्मत को पहचान सको,
पत्थर में भी राह मिलेगी, खुद में विश्वास रखो।
हर सुबह एक अवसर लाती,हर दिन एक उपहार है।
सकारात्मक सोच से जीना ही खुद के लिए त्यौहार है।

उपमा अलंकार युक्त कविता

सूरज जैसा तेज़ तुम्हारा,
चमक रहा माथ सितारा।
चांद सा शीतल मन है तुम्हारा,
मधुरस जैसी मधुर वाणी।

फूल जैसी कोमल बातें,
पुष्प सी महक सुहानी।
शेर समान गर्जना भारी,
सागर जैसा गहरा ज्ञानी।

बिजली जैसी चमक तुम्हारी,
बुलबुल जैसी मीठी वाणी।
पर्वत जैसी अटल हृदय है,
सरिता जैसी निर्मल छवि ।

होली: सौहार्द, सद्भाव और एकता का रंग

रंगों की खुशबू बिखरी है, आई फिर से होली,
सौहार्द की डोरी बाँध रही है, आई फिर से रंगोली।

ना कोई ऊंचा, ना कोई नीचा, सब रंगों में घुल जाएँ,
सभी मिलकर गले लग जाए, दिल में सद्भाव जगाएं।

लाल रंग प्रेम प्रतीक सिखाता, पीला खुशहाली लाए,
हरा हरियाली, खुशहाली का संदेश दे, नीला सपने सजाए।

सभी संप्रदाय साथ हो, दिल में भाई चारा हो,
नफरत का अंधेरा मिटे, सद्भाव का उजियारा हो।

होली , दिवाली, ईद त्योहार, सद्भाव के सुर में सब मनाएं,
रंग, जाति, भाषा, धर्म से ऊपर उठ, मानवता का रंग चढ़ाएँ।

होली रंग-बिरंगी ज़िंदगी

रंग बिरंगी बौछार लिए आई,फिर से खेले होली,
खुशियों की सौगात लिए, रंगों में खेलें रंगोली।

लाल रंग प्यार की शमा जलाए,नीला आकाश संग उड़ता जाए।
पीला रंग खुशियों की सौगात, हरियाली जीवन का आनंद।

भीग गई दुनिया सपनों में, मन के कोरे कागज़ पर,
रंग पड़े कुछ तक़दीर के और कुछ अपने कर्मों के।

चलो आज होली में रंगे,मोह, द्वेष, दुख सब छोड़ें,
इंद्रधनुष सा जीवन होगा,जब प्यार के रंग सब ओढ़ें।

पहला प्रेम और वो खत

कागज़ पर उतरे थे जज़्बात कभी,
स्याही में भीगी थी कुछ बात कभी।
दिल के भाव मुख शब्दों से निकला,
प्यार से भरा वो पहला खत मिला।

हाथों की कंपन और मन की उमंग,
हर लफ़्ज़ में थी छुपी हुई एक तरंग।
प्यार की खुशबू बस गई थी उसमें,
दिल भाव विभोर हो जाता रस में।

वो क्षण जब पहली बार हुआ महसूस,
खत में लिखा इज़हार ए अहसास।
खत लिखने का दिल करता प्रयास,
वो खत आज भी देता है एहसास।

अब व्हाट्सएप के दौर में वो बात कहाँ,
इंतज़ार की वो लम्हे, वो जज़्बात कहाँ?
पर दिल में बस जाती थी प्यार की महक,
पहले के खत की अलग होती थी रौनक।

दुनिया रंगों में खिलती है

ये दुनियां कई रंगों में खिलती,
हर सुबह नई उमंग लिए मिलती।
नीला आसमां, हरी धरा व वादियाँ,
सुकून देती है, फूलों की कलियाँ।

सिंदूरी सूरज और सुनहरी किरण,
चमकते जीवन आशा के हर दर्पण।
गुलाबी मुस्कानें और लाल चाहतें,
बैंगनी शामें व सफ़ेद देता राहतें।

कभी हरा सुकून, कभी पीली हँसी,
कभी मन में घुलती नीली सी नमी।
रंगों के संग हर पल संवरता जीवन,
हरा रंग समृद्धि केसरिया,रंग समर्पण।

ज़िंदगी का कैनवास यूँ ही निखरता,
हर रंग इंसानों में इक कैफियत भरता।
दुनियां रंगों में ही पुलकित खिलती,
हर रंग में एक नई कहानी मिलती।

शब्दों की दुनिया

शब्दों की दुनिया होती अनमोल, शब्द भाव का इसमें है तोल।
कभी खुशी की झलक बनाते, कभी दर्द को भी सहलाते।

शब्दों से इतिहास लिखे जाते, शब्दों से दिल भी जुड़ जाते।
यदि शब्द का हो उचित उपयोग, तो मिटे दिलों का हर रोग।

कोमल शब्द तो मन को हर्षाते,कटु बोले तो घाव कर जाते।
शब्द श्रद्धा,शब्द हैं प्यार,शब्दों से दुनिया हो जाए खुशगवार।

कभी ग़ज़ल में सुर बन जाते, कभी कविता में रंग चढ़ाते।
लफ़्ज़ों का जो महत्व समझते, उनके शब्द अमृत बन जाते।

तोल-मोल के शब्द कहकर, दिलों में प्यार की शमा जलाते।
शब्दों की दुनियां होतीअनमोल,बेमतलब शब्द होजाते बेमोल।

शब्दों से सिर्फ़ भाषा ही नहीं है,यह तो मन का दर्पण होती है।
भावों की व्याख्या होती है, तहज़ीबों का वर्णन होती है।

शब्दों में शक्ति अपार होती है, जोड़े दिल व तोड़े नाते होती है।
मीठे बोल अपना बना देती है,कटु वचन से दूर कर देती है।

भाषा से हम ज्ञान को पाते हैं, नए विचारों को गढ़ते जाते हैं।
जो भाषा में समृद्ध होता हैं, वह हर बाधा से लड़ जाते हैं।

भाषा नहीं तो ज्ञान कहाँ है? संवादों का सम्मान कहाँ है ?
शब्दों से ही भाषा चलती है, बिन इनके जग पहचान कहाँ है ?

“संवाद की मौन भाषा”

शब्दों के बिना भी कह सकते हम,मन की सारी बातें।
आँखों की भाषा पढ़ सकते हम,मूक अधर की बातें।।

हाथ हिलाकर कह सकते हैं हम स्नेह भरी भाषा।
इशारों में बंध भी जाती है, अंतर्मन की परिभाषा ।।

सुन न सकें तो क्या हुआ, हम दिल की धड़कन सुनते हैं।
बिन बोले भी सब समझें हम सिर्फ इशारे भी चुनते हैं।।

शब्द जरूरी नहीं हमेशा, भावना या मन से जब बोले।
मौन भी सब व्याख्या जाती है, जब भाव हृदय में डोले।।

“बिन कहे भी कह देना”

Language of unspoken

शब्दों का क्या काम यहाँ, जब नयनों से बात बने।
हृदय हृदय को पढ़ ले जब, मौन भी संवाद बने।।

अंगों की हर हलचल बोले, संकेतों में भाव ढले।
कोई सुने या न सुने,मन के तार से प्रभाव जुड़े।।

हवा की सरगम बिन शब्दों के, अर्थ हजार जता जाती।
दिल की धड़कन भी सिर्फ़ इशारों से बातें कह जाती।।

शब्द नहीं, फिर भी हर भाव,बिन बोले संप्रेषित है।
मौन की भाषा सब समझे,
बस मन की भाषा प्रेषित है।।

नारी स्वयं में सृष्टि सारी

नारी है सृजन की गाथा, नारी स्वयं में सृष्टि सारी,
नारी से जग की रचना, नारी में ही शक्ति सारी।

उसकी कोमलता में भी अद्भुत साहस होता,
संघर्षों की आंधियों में भी, दीप जैसा जलता।

संसार की अद्भुत धुरी वही, हर रिश्ते का है आधार,
ममता की वो मूरत बनकर, देती है स्नेह अपार।

त्याग की प्रतिमूर्ति है वो, धैर्य की होती वो पहचान,
हर दर्द और पीड़ा सहकर भी रखती चेहरे पे मुस्कान।

उसकी आँखों में सपने, दिल में होता है समर्पण,
हर बंधन में बंधकर भी, वह रहती है स्वच्छंद।

मत समझो निर्बल उसको, वो शक्ति होती है विश्वासी,
नारी स्वयं में एक सृष्टि सारी, नारी होती है परिभाषी।

फागुन का अंदाज निराला

फागुन का अंदाज निराला है,
रंगों संग आई बयार मधुर है।
गुलाल के छाए से बादल आते,
फागुन में सब प्यार मनुहार पाते।

सरसों के खेतों में पक्षी चहकते,
पीली धूप सुनहरी बनके बहकते।
कोयल आम के पेड़ों में कू कू गाए,
फागुन बहार का संगीत बन छाए।

हवा में घुली मिठास पगली है,
फागुन माह प्रेम की राग छेड़े है।
हर दिल में उठे उल्लास नया है,
फागुन का तराना शोख भरा है।

कवियों का अध्यात्म और मेरी लेखनी

शब्दों के दीप जलते हैं मन में,
भाव बहते हैं पीड़ा बनके मन में।

कवियों का अध्यात्म निराला है,
हर शब्द पंक्ति में एक उजाला है।

दुनियां जो देखे, वो जो समझे,
कविता को शब्दों में मोती सा लिखे।

कभी आत्मा की गूँज, कभी मानवता जगे,
कभी मन की मौन पुकार, कभी हक़ जगे।

ये लेखनी पथिक बन, अनुभूति शब्दों में बुनी,
सुख-दुख, प्यार, विरह के लफ़्ज़ को पंक्ति में पिरोई।

कल्पनाओं की उड़ान में भी, सच, हक़ का दीप जलता है।
कविता में कोई संदेश मन के भीतर का उद्गार निकलता है।

कविता उस धारा की कणिका,जहाँ भाव उद्गार प्रवाह में सत्य बहे।
हर अक्षर शब्द मेरी साधना हो, हर लफ़्ज़, सच और हक़ कहे।

अपने अंदाज़ में मस्त रहो

अपने अंदाज़ में मस्त रहो,
यूँ ही पुलकित होते खिलते रहो।
जो भी कहे, तुम जो भी सुने,
तुम अपनी धुन में ही मिलते रहो।

यदि राहों में कांटे शूल भी आएं,
गर कोई तो ज़ख्म भी लगाएं।
पर मुस्कान वही तुम प्यारी रखो,
हर दुःख दर्द को प्रीत बनाए रखो।

दुनिया की चिन्ता में मत रहो,
अपनी ही धुन में बस चलो।
जो होना है, वो होकर रहेगा,
तुम अपनी लय में ढलते रहो।

अपने अंदाज़ में मस्त रहो,
जो भी मिले, बस मुस्कुराते रहो।
कोई समझे या ना समझ पाए,
खुद से ही हर रोज़ मिलते रहो।

जो पल मिले हैं

जो पल भी मिले हैं बस इन्हें जी ले,
इन पलों में मेहनत व नेकी कर ले।
बीते हुए कल की ग़म परछाइयों में,
आज का भविष्य बेकार मत करले।

जो था, वो कल अतीत हो जाएगा,
आज का कर्म ही कल काम आएगा
जो भी आएगा हम से अनजाना होगा,
जीवन फ़क़त एक अफसाना होगा।

रब की बंदगी को ख़ुशी से कर लो,
कब बदल जाए समय की धारा।
हक़ भी बंदों का निभाकर देखो,
छुपा इसमें जीवन का उजियारा।

समय के बहते दरिया के संग चलो,
हर लम्हा ख़ुदा की इबादत में लगे।
जो पल मिले हैं, इन्हें जी लो शरीफ़,
फिर ना पछताए जाने क्या क्या लगे!

तलाश

पथ में बिखरी धूप की चिलक,
चलते जाते हैं कदम बेहिसाब।
स्वप्नों की गठरी कंधों पे रखे,
ढूँढ़ते फिरते ख्वाबों का जवाब।

दर-ओ-दीवार के इस जगत में,
शांति व सन्नाटे चुपचाप खड़े हैं।
मन की उलझी गलियों में कहीं,
अरमान व ख्वाहिशें धुंधले पड़े हैं।

तलाश है सुकून के पलों की,
जो रूह तक जाकर भीगाएँ।
तलाश है वो किरण, उजाले की,
जो मन के अंधेरों से जीत जाएँ।

चिड़ियों की महक

जब भोर की किरण छू जाएँ गगन,
पक्षी करते चहचहाहट की अगन।
फड़फड़ाते पंखों से गूँजे मधुर गगन।
हवा में घुल जाती चहचहाट की मगन,
ले आती संग ख़ुशबू और महक सघन।

फूलों से निकलती है पराग सी महक,
चिड़ियाँ उड़ती जाती बन के चमक।
कोयल की तान में बसी एक रौनक।
मिट्टी की सोंधी सी खुशबू की रमक।

पेड़ों की डालियों पर जब खेलें परिंद,
हवा से घुलती मिट्टी में ओस की बूँद।
सुकून का एहसास है प्रकृति की गोद।
चिड़ियों की चहक सुबह उठते चरिद।

विरह की धूप

तुम बिन ये ज़िंदगी की साँसें लगती पराई,
हर शाम तनहा होती, हर सुबह है परछाईं।
तुम्हारी मुस्कुराहट जो दिल का है उजाला,
अब हर गांव का आंगन वीरान सा है खाली।

तुम बिन अधूरे हैं, जैसे कोई गीत या संगीत,
जिसकी लय और धुन अधूरी, ग़ज़ल जैसे अतीत।
तुम थे तो हर ग़म व दर्द भी अपना सा लगता,
तुम बिन ये ज़िंदगी की रौनक अधूरा सी लगती।
आफताब तो है फिर भी उजाला नहीं है,
दिल धड़कता है पर दिल का सूरज नहीं है।

लौट आओ कि अब साँस हमारी उखड़ने लगी है,
इस विरह की आग में जैसे रूह भी झुलसने लगी है।

ग़मों की धूप

ग़मों और दर्द की धूप में चलना सिखा दिया,
ख़ुदा के नाम पर जीना व मरना सिखा दिया।

दर्दों, ग़मों की आँधियां सीने में रोक कर,
हर एक ग़म व दर्द को सहना सिखा दिया।

रास्ते में कांटे व मुश्किल हज़ारों हों मगर,
हर कदम पे जीना मुस्कुराना सिखा दिया।

साया भी छोड़ देता है वक्त कभी कभी,
ख़ुद को अपनी छाँव बनाना सिखा दिया।

जब तक रहेगी सांसे ज़िंदगी में “शरीफ़”
सूरज की तपिश में जलकर चमकेंगे हरफ़।

” बेटियों की रक्षा “

बेटियाँ होती हैं घर की रौनक, बेटियाँ हैं घर की शान,
इनसे ही महकता हर आंगन है, हर मकान की आन।

फूलों सी होती नाजुक हैं, पर मजबूत इरादों से भरपुर,
हर कठिनाई को सह जाएँ, ऐसी नेक इरादों से सराबोर।

बेटियाँ होती चांदनी और सूरज, छूती है आसमान,
आज की दरकार है, सिर्फ़ देने की उनको पहचान।

रक्षा करो बेटी की स्नेह से और दे उनको मान और सम्मान,
मत बांधो इनको बेड़ियों से चूंकि कुप्रथा है अंधकार व अज्ञान।

अगर बचाओगे बेटियाँ, जग में समाज व परिवार को करें रोशन,
वरना ये बेटियां दुनिया में अंधेरे में रहे और समाज रहे अज्ञान।

रोटी

चूल्हे से रोटी की भीनी ख़ुशबू उठती,
माँ के हाथों से रसोई सुगंधित होती।
गोल- नरम गरम, रोटी फूली होती,
स्नेह से सजी ये सबका पेट भरती।

गर्म रोटी संग जब मक्खन पिघलता,
बचपन की यादें दिल में मचलता।
फूली फूली रोटी हो सब्ज़ी के संग,
एक नए स्वाद को देती ये नई तरंग।

सर्दी की रातें या गर्मी का मौसम,
जीवन में रोटी रहेगी सदा संग।
चूल्हे की फूली रोटी पेट को भाती,
माँ की ममता बच्चों पे प्यार लुटाती।

इज़्ज़त और ज़िल्लत

इज़्ज़त मिली तो सोच को बड़ा लो,
नर्म लफ्ज़ रखो, दिल को सजा लो,
शोहरत गर मिले तो लहज़ा सुधारों ।

ज़िल्लत गर दुनियां में मिले तो,
सब्र का दीपक जलाकर रखो।
राहों में कांटे तो हौसले बचालो।

इज़्ज़त व्यक्तित्व की रौशनी है,
जो स्व किरदार से जगमगाती है।
इज़्ज़त वही जो दिलों से होती है।

लफ़्ज़ों से बढ़कर अमल में रहे।
ज़िल्लत, इंसान को ज़लील करे,
जहाँ झूठ, धोखा और बदला रहे।

इज़्ज़त मिले तो मगरूर नहीं हो,
ज़िल्लत मिले तो मायूस नहीं हो,
जो हक़ पर है कामयाब वो ही हो।

अंधेरे में कानाफूसी, हमारे रहस्य

अंधेरे में कुछ लफ्ज़ उमड़े, जैसे सांसे भी संगीत सुनाती है।
धुंधली छाया, चुप्पी गहरी, रहस्य हमारा कौन समझता है?

सन्नाटे में जुबां की खामोशी, तो भी दिल सब कुछ सुन लेता है।
एक कानाफूसी, एक रहस्य, जो शब्दों में कभी नही ढल सकता है।

चाँदनी रात भी चुपके से जाती, सितारे भी फ़लक से देखते हैं।
अंधेरी रात गवाह और हम अनजाने, रहस्य हमारा गहराई लेता है।

छू न सके समय इन लहरों को, जो मन की गहराइयों में बहती है।
अंधेरे में सरगोशी कानाफूसी, हमारे रहस्य की साक्ष्य गवाही होती है।

मिट्टी के घरौंदे

मिट्टी के घरौंदे, सपनों के जैसे,
नन्हे मज़बूत इरादों से बने हैं जैसे।
न दीवार ऊँची ना छत मज़बूत यहाँ,
न कोई ताले, न डर की छांव हैं यहां।

बारिश की बूंदें जब पड़ती हैं इनमें,
भीगी मिट्टी की खुशबू आती जिनमें।
घरौंदे झुकते,मिटते,बनते व बिगड़ते,
फिर भी हिम्मत न गिरती न थकते।

बचपन की यादें, हंसी ख़ुशी बातें,
रहते थे आँगन में बच्चे पौते, नाते।
न कोई लोभ, लालच, न कोई डर,
बस खुशियां समाई चारों ओर घर।

ये घर मिट जाते, पर सिखा जाते,
हर गिरने के बाद नश्वरता सिखाते।
सपनों को फिर से बुनना सिखाते,
हौसले से जीवन जीना सिखाते।

रमज़ान की इबादत

रहमत ए ख़ुदा की बरसात आई,
रमज़ान की रौनक जग में छाई।
रोज़ा, नमाज़, ज़िक्र व तिलावत,
क़ल्ब में रहे बस रब की इबादत।

सुब्ह सहर की प्यारी रौशनी आई,
दुआओं में बसी ख़ुशहाली लाई।
सब्र, मोहब्बत, बन्दगी और नेकी,
हर सिमत फैली हुई बरकतें देखी।

इफ़्तार देता है सब्र, शुक्र का मौका,
ज़िक्र, तह्ममूल व सज्दों का मौक़ा।
रमज़ान गुनाहों से तौबा का मौका,
अल्लाह के क़रीब जाने का मौका।

रमज़ान का हर लम्हा होता अनमोल,
हुज़ूर ए अक़दस का अहम क़ौल।
रहमते इलाही मांगी सच्चे दिल से,
रब ने दिया रहमत व माफ़ी का द्वार।

मत छोड़ो रमज़ान की ये पाक घड़ी,
ख़ुदा की बख्शिश,करम,नूर से भरी।
माह ए मुक़द्दस में हम सब नेकी करें,
सिरात ए मुस्तकीम की राह पर चलें।

सच का साथ

सच का साथ जो व्यक्ति निभाए,
मुश्किल हालात में जीत वो जाए।
झूठा व झूठ का पर्दाफाश हो जाए,
सच व हक़ की शमा बुझने ना पाए।

राह कठिन हो, चाहे काँटे बिछ जाए,
फिर भी कदम जो न पीछे हटाए।
धैर्य, हिम्मत और ईमान अपनाएं,
सच की जीत हमेशा हो जाए।

झूठ अंधकार में पुर ज़ोर दिखाए,
पर सत्य की अमर पहचान हो जाए,
जो भी हक़ ईमान का साथ निभाए,
उसका ही अन्ततः सम्मान हो जाए।

सत्य के पथ पर जो चलता जाए,
वो ही इस जग में दीपक बन जाए।
सच का साथ जो शख़्स निभाए,
हर मुश्किल में विजय वो ही पाए।

बीता वक़्त

वक़्त की ठंडी छाया में, कुछ यादें खो गईं,
बचपन की खिलखिलाहटें, कहीं गुम हो गईं।

वो कागज़ की नाव, बारिश में कश्तियाँ,
गुज़रे वक्त की गूंज, मित्रों के साथ मस्तियाँ ।

वक्त के साथ फिसल गया, वो सुनहरा ज़माना,
अब पुरानी यादों में दिखता है बस अजनबी फसाना।

कुछ मित्र जो साथ थे, राहों में बिछड़ कर विस्मृत से हुए,
कुछ ख़्वाब जो मित्र सुनाते थे, कक्षाओं में कह गए।

मग़र बीते समय की ख़ुशबू, रह गई है कुछ बाकी,
वो सभी यादों में रहती, शोर गुल मस्ती की स्मृति।

फिर से गुज़रे वक्त की यादों के स्मरण को सवारें,
शायद वो स्मृतियां फ़िर से हक़ीक़त में पुकारें।

मन का सूना साज

मन का सूना साज पड़ा है, बिन धड़कन स्वर के,
जिनमें प्यार के मोती,अब वो बिखरे, रूठा है मन का साज़।

धड़कन थमी, अरमान भी सोए, ख़्वाबों के दीप बुझे से खोए।
जहाँ कभी था संगीत बहारों का, अब सन्नाटे वहां पर होए।

कभी ये साज बजा करता था,हर एहसास को गाया करता था।
मन का सूना साज एक दिन फिर से बजेगा।
बसेगा इसमें प्यार का जादू,हर तार नए सपने सजेगा।

थी जो धुन कभी बहारों की,अब वीरानों में गूंज रही।
थी जो आहट मधुर पवन की, अब ख़ामोशी में डूब रही।
मन के सूने साज में कोई फिर से मन के तारों को फिर जगाए।

खेल किस्मत का

क़िस्मत कभी मुस्काए, कभी यही रुलाए,
कभी इंसानों के सपनों को एकदम मिटाए।
कभी अनजाने रास्ते की लाचारी दिखाए।
ज़िंदगी की राहें ख़ुद ही तलाश करवाएं।

किस्मत का खेल अनोखा है को समझाए,
ज़िंदगी में धोखा व फरेब से दिल दिखाए।
जो चाहा,वो नहीं मिला,क़िस्मत दिखलाए।
जो मिला नहीं सोचा,मन ही मन मुस्काए।

क़िस्मत मेहनत से भी तकदीर को लड़ाए,
क़िस्मत ज़िन्दगी की नियति बन जाए।
मंज़िले सफलता की बुलंदी को पहुंचाए,
कुछ नेक लोगों को दशकों भी भटकाए।

यह हार ना माने, डटे रहना भी सिखाए,
अपने हौसले के संग बढ़ना भी सिखाए।
नेक इरादे, रब पर ईमान यक़ीन सिखलाए,
क्योंकि ज़िंदगी क़िस्मत का खेल है बताए।

यादें

यादें भी अजीब होती हैं, बिन बुलाए चली आती हैं।
कभी हंसाती, कभी रुलाती, दिल के कोने में घर बना जाती है।

बचपन की मासूमियत याद आती है, वो खेल खिलौने याद आते है।
माँ की ममता, पिता का प्यार मीठी-सी वो मुलाकातें याद आती है।

बिछड़े दोस्तों की सूरत, वो पहली बारिश याद आती है।
सूने पलों की तन्हाई, मीठे शब्दों की मिठास याद आती है।

यादें नहीं मिटती हैं, वक़्त के पन्नों में दर्ज़ रह जाती हैं।
यादें ख़ुशबू बनकर महकती, आँखों में नमी बह जाती है।

बसंत की बयार

बसंत की ठंडी बयार करे गुलज़ार,
बाग में पेड़ों पर खिल उठे बहार।
पीली सरसों के संग आहार विहार,
धरा का हर गुल करे आदर सत्कार।

कोयल की मीठी बोली, ठंडी बयार,
हरियाली चारों तरफ से करे बहार।
फूलों में रंगों की छटा का व्यवहार,
मंद मंद पवन छूकर करे सत्कार।

सूरज मंद धूप से करे चमत्कार,
मौसम तरन्नुम का करे अविष्कार।
नदियाँ तरंगित लहर से करे क़रार,
खेतों में लहराएं फसलों की बहार।

मन में करे उमंग, दिल में बने इकरार,
ऋतु का साज़ बजाए मधुर झंकार।
मौसम करे प्रकृति का अद्भुत श्रृंगार,
रब की क़ुदरत ही बसंत का आधार।

ज़िंदगी का सपना

ज़िंदगी एक स्वप्न है,कभी अंधेरा-कभी उजाला उगते और ढलते सूरज जैसा।

कल जो अपना था, आज पराया हो गया, समय का पहिया बस सतत् घूमता जैसा।

ज़िंदगी परिंदे जैसा आकाश में ऊंची उड़ान, कभी दाने चुगने की तलाश जैसा।

कभी ज़िंदगी के सपने बुनते रहे रातों में, सुबह हुई तो स्वप्न को साकार करता जैसा।

ज़िंदगी कभी खुशी-कभी ग़म की बरसात है, बस आकांक्षाओं की सौगात है।

ज़िंदगी बहता दरिया, कभी साहिल का किनारा, कभी डूबते को तिनके का सहारा।

कभी खुशी के फूल खिलाए, कभी दुखों की धूप सताए, कभी जश्न का मेला।

सपनों के पीछे जाने कब शाम हो जाए, राहों में थका, वही पीछे रह जाए।

इसे संभालना सीखो, कल किसने देखा, आज जीना सीखो, हर क्षण मोती जैसा।

कविता क्या है?

कविता है एक बहता दरिया, शब्दों का मधुर सा सागर।

भावों की गहराई जिसमें, मन के हर शब्द में गागर।

कभी है यह प्रेम का सागर,कभी विरह की बूँद गिरी,

कभी खुशी की धूप खिली,कभी उदासी छाई मिली।

कविता में दुनिया बसती है,हर एहसास की तरंग है,

कभी सच की शमा जलाती,कभी सपने रोशन है करती।

शब्दों का जादू चलता इसमें, कविता में हर दिल की आवाज़ है,

कविता फ़कत लफ़्ज़ नहीं,यह तो जीने का अंदाज़ है!

मुहब्बत और शहादत

वतन से मुहब्बत की खातिर, मैं लहू से मोहर लगाऊँगा,
वतन की खातिर मरूँ, ये हक़ अदा कर जाऊँगा।

वतन में सौहार्द के जो ख़्वाब सजाए थे कभी,
वही ख़्वाब को सद्भाव सहिष्णुता और एकता से हासिल कर पाऊंगा।

जब वतन की उन्नति की राहों में ले जाने के वास्ते,
हम वतन की दुआओं की चादर मेरे सिर पे पहनूंगा।

मुहब्बत है मुल्क से, मगर इस से बढ़कर कुछ भी नहीं,
वतन की मुहब्बत और शहादत में,किसी से डरूंगा नहीं।

अगर शहादत से लौटूँगा तो तिरंगे में लिपटा मिलूँगा,
वरना वतन का नाम पर बंधुत्व, एकता और सौहार्द को लिखूँगा।

मुहब्बत और शहादत दोनों में एक जुनून सा जगाना होता है,
मुल्क से मुहब्बत कर इसके हक़ में शहादत का जाम पिलूंगा।

मेरा वेलेंटाइन दिन

ना महंगे तोहफ़े, ना फूलों की कतार,
ना रेस्टोरेंट में कोई खासा शृंगार।
बस मीठी मुस्कान वो मीठी फुहार,
यही मेरा वेलेंटाइन, यही मेरा प्यार।

ना लाल गुलाबों की कोई दरकार,
ना कैंडल लाइट डिनर की चमक-धार।
अच्छी बातों की खुशबू रहे साथ,
यही मेरा उत्सव, यही मेरा जज़्बात।

ना डेट्स, ना प्लानिंग, ना फैंसी नज़ारे,
बस मुसीबत में साथ, दो दिल लाचार।
आपसी प्यार से ये दुनियां दुनिया संवार,
आपस का विश्वास ही सबसे बड़ा त्योहार।

तो हर दिन रहे प्यार से रोशन,
हर लम्हा रहे प्यारी सी मुस्कान ।
ये वेलेंटाइन कोई एक दिन नहीं,
हर दिन है रहे हम दो दिल एक जान।

अंतर्मन की पीर

मन के कोने में दबी जो पीर है,
वो ना कोई देखे, ना कोई सुने।
हंसी के परदे में छुपी जो व्यथा है,
मन की धड़कनों में सिमटी रहे।

शब्दों में उतरे तो आंसू बहें,
शांत रहे तो दिल दहले।
कभी तम में खोई सी लगती,
कभी चिंगारी बनकर दहकती।

कोई समझे तो सबक बन जाए,
नहीं समझे तो नसीहत दे जाए।
ये पीर भी एक साथी की भांति है,
जो हर दर्द के साथ चलती जाए।

आकाश से गिरती हुई बूंदों में,
तबस्सुम, तरन्नुम कोमल लय में,
कभी खामोशी, कभी कोलाहल में,
ये अंतर्मन की पीर रुलाती जाए।

हर दर्द एक इबरत बन जाता,
हर अश्क़ एक फ़ज़ीलत लाता।
मन के पीर से मत हारो कभी,
इस जीवन का रहस्य समझ जाते।

उम्मीद की किरण

अंधेरों में जब राह गुमने लगे,
रात के स्वप्न भी डराने लगे।
तब उम्मीद की किरण चुपके से
मन में नया दीप जलाने आयेगी।

“रुकना नहीं, सतत् चलते जाना है,
अंधेरों के बाद एक सवेरा मिलेगा।”
मुश्किलों में भी एक रास्ता मिलेगा।
हर विफलता के बाद सफलता मिलेगी।

विपदाओं से कभी घबराना नहीं,
हर आपदा से एक सीख मिलेगी।
गिरकर जो संभालना जानता है,
मंज़िल उसी के क़दमों को चूमेगी।

उम्मीद की किरण जलाए रखना,
हर दिन नया सवेरा लाकर रखना।
जहाँ उम्मीद वहाँ राह मिल जाएगी,
ए इंसान,तेरी मेहनत रंग तो लाएगी।

धागा बांधा प्रीत का

धागा बांधा प्रीत का, झट से टूट न जाए,
शनै शनै विश्वास से हमेशा अटूट हो जाए।

नाज़ुक होती मन की डोरी, आपदा चाहे आएँ,
प्यार और विश्वास के मोती और मजबूत हो जाए।

हर उलझन को सुलझा दे, मन की प्रीत पनप जाए,
धागा बांधा प्रीत का, बंधन आजीवन बन जाए।

सच मानो तुम प्राण प्रिया हो

स्वप्नों में तुझको याद करूं, तेरी ख्वाहिश को जीवंत करूं।
तेरी यादों में भाव सजा दूं, तेरे ख़्वाब को मैं अनंत करूं।

सूर्य की रश्मि जब चमक उठें, समुद्र की तरंगें लहरा जाएं।
प्राण प्रिया जब तुम चलती है, सूनी सड़क महका जाएं।

सुंदर रूप में छिपा रहस्य, हर छवि में होता तेरा अहसास।
प्राणप्रिया तुम सिर्फ़ नारी नहीं हो, ईश्वर का है अनुपम वारदान।

पुलकित गालों, आंखों में होती, शर्म की होती है छाँव।
सच मानो तुम प्राण प्रिया हो, तेरी हर मुद्रा में है प्रभाव।

मेरी चित्रकारी में सौंदर्यता

रंगों से मैं सपने बुनकर, रेखाओं को जीवंत करूं।
हर चित्र में भाव सजा दूं, कल्पनाओं को अनंत करूं।

सूरज की किरणें चमक उठें, सागर में लहरें लहरा जाएं।
रंग भरी कलम जब चलती है,सूने कैनवास महक जाएं।

हर रंग में छिपा रहस्य, हर छवि में होता है अहसास।
ये चित्रकारी बस चित्र नहीं है सुंदरता का अमूल्य प्रयास।

स्नेह के कोमल रंग में होती प्यार की होती है छाँव।
हर रेखा कुछ कह जाती है, हर रंग में होता प्रभाव।

दिल के दर्द को जाने कौन

दिल के दर्द को जाने कौन,
बिन बोले इसे पहचाने कौन?
मुस्काती आँखों में छिपे दर्द के,
उन आंसुओं को माने कौन?

रातों में सितारे गिनता हूँ,
स्वप्नों में स्वयं को सुनता हूँ।
व्याकुल दिल के हर दर्द को,
इस दुनिया में सुनेगा कौन?

अपनों की भीड़ में तन्हा मन हूँ,
प्रश्नों से भरा किस्सा भर हूँ।
स्वयं से ही नही जो कह पाया,
वो दर्द किसी को बताए कौन?

शायद कोई कहीं तो मिल जाए,
इन धड़कनों को समझेगा कौन?
वरना इस रहस्यमय दिल की,
बेबसी, बकसी को जाने कौन?

कलम और दवात

कलम कहे, मैं शक्ति हूँ;
शब्दों को प्रकाश मैं दूं ।
इतिहास लिखूं,किस्मत गढ़ूं;
सपनों को आकार मैं दूं।

दवात कहे, मैं स्याही हूँ;
अक्षर की मैं अभिलाषा हूँ।
मौन ह्रदय की भाषा हूँ;
हर लेखक की मैं आशा हूँ।

दोनों का रिश्ता प्यारा है;
तालीम की अमृत धारा है।
साथ मिलें तो चमत्कार करें;
सोई क़िस्मत का आविष्कार करे।

जीव एक बहता दरिया

जीवन है एक बहता दरिया,
कभी शांत, तो कभी अशांत।
सुख-दुख की लहरें उठती-गिरती,
आशा की कश्ती संग संग बहती।

कभी धूप है तो कभी छाँव है,
कभी प्रभाव तो कभी भाव है।
संघर्षों की आंधी में चलतीं नाव है,
उम्मीद की किरण सदा बाकी है।

हर मोड़ ज़िंदगी में सबक सिखाए,
गिरकर भी चलना हमें सिखाए।
हार में छिपी रहती जीत की किरण,
यदि हौसले में जिया अपना दर्शन।

जीवन का सार, यही बताता,
हर पल को हँसकर जीते जाना।
राहें कठिन सही, पर चलना है,
हर अँधेरे के बाद, सवेरा मिलना है!

श्रृंगार रस

आशिकी में अश्क के आंसू बहे,
प्रियतम के सपनों का बादल छूए।
चँदन की खुशबू सांसों में महके,
प्यार भरी बातें कोयल भी बोले।
नयनों से नयनों की भाषा चले,
हृदय में अनुराग के दीप जले।
बिरह में मिलन हो जाए,
मन की बगियां महक जाए।
श्रृंगार रस में रँग रम जाए,
इश्क़ की ऐसी याद आ जाए!

मन्नतों में

मन्नतों में बंधी हैं जीवन कहानियाँ,
आशा के दीप जलाए परेशानियां।
कभी सूनी माँग की महिला बोलती,
कभी सूनी गोद किलकारी मांगती।

बनावट के रिश्ते नाते, मन्नतों के आसार,
आंखों के आँसू या दुआओं की दरकार।
कभी लबों पर तमन्नाएं, मन में मुरादें,
कभी दरगाह या गुरुद्वारे में मन्नत की फ़र्यादें।

मन्नतों में रहती, अनगिनत फरियादें,
मिलती किसी को जीत, कोई हार ।
मन्नतों में उलझे रहते सपने हज़ार,
कोई मांगे आरज़ूएं या रौशन बहार।

पर क्या मन्नतें ही, राह दिखाएंगी?
या मेहनत के पथ ही सच करवाएंगे?
खुदा भी उन्हीं का साथ निभाएगा,
जो तक़दीर खुद ही बना पाएगा!

मासूमियत कहां खो गई

बचपन की हँसी थी, वो कागज़ की नाव,
बारिश में भीगना, वो मिट्टी की छाव।
बिना वजह मुस्कान, बिना भय के बोल,
वो सपनों की दुनिया, वो मासूम से बोल।

न आँखों में चालाकी, न शब्दों में चतुराई,
हर रिश्ते में सच्चाई, हर लम्हा में मासूमियत।
ना मतलब की चिंता, ना दुनियादारी,
बस खेलों की बातें, और मस्ती की बातें।

धीरे धीरे वक़्त के साथ, ये सब बदल गया,
दिल मासूम था, अब अक्ल में ढल गया।
अब हँसी में मतलब, अब आंसू भी दिखावे,
अब रिश्ते भी सौदे, अब जज़्बात भी बदल गए।

क्या मासूमियत लौटेगी फिर कभी,
या बस यादों में ही रहेगी सजी?
काश फिर से वो बचपन आ जाए,
जहाँ हर दिल बेखौफ मुस्कुराए।

तिरंगे का कर्ज़

तिरंगे का कर्ज़ चुकाना है, इस धरा का मान बढ़ाना है,
जो लहराया शान से नभ में, उसका सम्मान बढ़ाना है।

खून बहा था वीरों का, जो देश की शान बढ़ाता है,
उनके बलिदानों की गाथा ही इतिहास को रोशन करता है।

ये तीन रंग का तिरंगा जो हर रंग कुछ कुछ कहता है।
केसरिया है त्याग, कुर्बानी, सफेद शान्ति का संदेश देता है।

हरा रंग कहता देश की समृद्धि, चक्र राष्ट्र की उन्नति दर्शाता है।
कहती है इस देश की धड़कन, हर दिल में हिंदुस्तान बसता है।

हमें यह प्रण ये लेना होगा, हर दम देश संभालेंगे।
तिरंगे के क़र्ज़ को हम, मान से अदा कर पाएंगे।

जो भी ललकारेगा हमें, उसको प्रत्युत्तर देना है।
तिरंगे का कर्ज़ चुकाकर, माटी का क़र्ज़ चुकाना है।

संगम

जहाँ मिलती गंगा-यमुना, सरस्वती की अदृश्य धारा,
जहाँ सजे सबकी सभाएँ, गूँजे वेदों का उजियारा।
तीनों धाराएँ अलग-अलग, पर मिलती जब संगम में,
जैसे जीवन के भिन्न रंग, बन जाएँ एक समरस में।
संगम तट की रेत सुनहरी, हर कण में इतिहास समाया,
संगम बस एक स्थान नहीं, यह जीवन का सार समाया।
भिन्न धाराएँ जब भी मिलती, तभी जगत में प्यार पनपता,
जब भी इंसानों का होता संगम, अपने आप सौहार्द, सद्भाव पनपता।

फूलों का मौसम

फूलों का बसंत मौसम आये, खुशबू की रौनक लाए।

रंग-बिरंगी बागियों की धरा में बहार का उपहार लाए।

कहीं गुलाब की लाली छाए कहीं चमेली हंसती आए।

कहीं चमेली की कली सजाए, रातरानी की महक लाए।

भौरों की गुनगुन आए, तितली चहके, फुलों की हर शाख लहराए ।

फूलों के मौसम में बू की बहार आए, बयार में सौंधी सी फुहार आए।

कली-कली मुस्काए, खिलती रंग-बिरंगी चादर धरती पे छाए।

दुनिया का दस्तूर

गिरते को यहाँ ठोकर मिलती, चलते को राह भटकाते है,
सच जो बोले, वो अकेले पड़ते, वाह वाही झूठे पाते हैं।

रिश्ते-नाते और प्यार-दुलारे, सब स्वार्थी बन जाते हैं,
दिल के सौदे होते देखे, भावनाओं का व्यापार करते हैं।

मतलब की इस भीड़ में यारों, कौन किसी का होता है?
जब तक मतलब पूर्ण नही हो, अपना पराया होता है।

फिर भी हम उम्मीद लगाते, हर मोड़ पर मुस्काते हैं,
जख़्म छुपाकर दिल में अपने, नए सफ़र पर जाते हैं।

दुनिया का दस्तूर यही है, जो सह ले वो जीत गया,
हर दर्द को हंसकर जीता, वह इंसान प्रिय बन गया।

दुनिया का दस्तूर निराला, हर कोई यहाँ मतवाला है,
मुस्काते चेहरों के भीतर, छुपी हुई गहन ज्वाला है।

जो गिरता है, उसे गिराते, जो चलता उसे राह भटकाते हैं,
मतलब के इस जग में देखो, रिश्ते नाते स्वार्थ लड़ाते हैं ।

सपने देखो पर सच को जानो, लम्हों की पहचान बनाओ,
जो है अपने छद्म भेष में, उनके भी छल को पहचानो।

फिर भी इस जग में इंसानों, नेकी की तुम शमा जलाना,
चूंकि बुराई चाहे जितनी, अंत में सच्चाई को ही जिताना।

यही है आरज़ू मेरी

यही आरज़ू रहे कि ज़िंदगी मेरी ऐसी हो,
हर मुश्किल राह झुककर बात करती हो।।

सितारों से सजाऊँ, अंधेरी रात पर चादर,
दर्द को राहत में बदल दूँ अपने दम पर।।

मेरी कोशिश हिम्मत, कभी कम न हो पाए,
कोई गिरती दीवार को उठाकर दिखलाए।।

यही है आरज़ू मेरी, मैं खुद से हार न जाऊँ,
जो राह चुनूँ जीवन की,पहचान दिलवाऊँ।।

मेरी तमन्नाओं के ख़्वाबों को उड़ान मिले,
नेक इरादों का वो हक़ ईमान,संसार मिले।।

हर मुश्किल के दर्द को मरहम बना डालूँ,
“नामुमकिन” को मुमकिन में बदल डालूँ।।

मेरी आरज़ू इतनी है, हर सुबह रोशनी हो,
देश में सौहार्द के फूलों की नई खुशबू हो।।

हक़ ईमान की मंज़िल ए मकसूद की ओर,
और इसकी की शमा जलती रहे हर ओर।।

जिम्मेदारियां

जिम्मेदारियां हैं जीवन का सार,इनके बिना सब बेकार।
कभी होता सुकून कभी तकरार या कभी होता है भार।

बचपन में कंधे थे हल्के, बिन चिंता के दिन थे कितने।
पर जब हम बड़े हुए, दुनिया का कर्तव्य समझे।

माँ-बाप का साथ निभाना, बच्चों का भविष्य सजाना।
रिश्तों की मर्यादा रखना, अपने फर्ज को पहले निभाना।

कभी नींद चुराए, कभी जीवन का पुरुषार्थ कहलाएं।
मग़र सच वही, जो इसे निभाए, उसी का नाम जग में छाए।

जिम्मेदारियां बोझ नहीं, ये खुद की पहचान हैं।
सच्चे मन से जो निभाए, वही असली इंसान है।

बेटी

प्यारी-सी मुस्कान लिए वो , हर घर को रोशन करती है,
हर गम को वो खुद में समेटे, हर घर में सुकून भरती है।

माँ की ममता का अक्स होती बेटी, पिता का गौरव होती है,
हर रिश्ते को सहेजने वाली, घर की धुरी बेटी होती है।

अपनी आंखों में सपने रखती, और दिल में हौसला रखती है,
हर मुश्किल कार्य को खुद करने की वो सहस्र रखती है।

वो नाज़ुक है मगर कमज़ोर नहीं है, आसमान को छू लेती है,
अपने हक के लिए खड़ी यदि हो, हर मुश्किल को जी लेती है।

हर युग में बढ़ती, लड़ती वो सिर्फ घूंघट में छिपी नहीं रहती है,
कलम से लेकर तलवार चलाने के हुनर में भी ढल जाती है।

बेटी है तो कल है, बेटी ही समाज और देश का भविष्य होती है,
उसकी प्यारी मुस्कान के आगे, हर खुशी भी व्यर्थ होती है।

संभालो उसे और सहेजो उसे सब, ये अमानत प्यारी न्यारी है,
बेटी सिर्फ एक रिश्ता नहीं है, ये स्वयं एक दुनिया सारी है।

ज्ञान का उजियारा।

ज्ञान का उजियारा हर मस्तिष्क में भर दो,
अज्ञानता का अंधियारा हमसे दूर कर दो।
हृदय में सौहार्द व ज्ञान का हो दीप ऐसा,
जो रोशनी और प्रकाश दे अनंत जैसा।
वेद और क़ुरआन की वाणी गूंजे जग में,
ज्ञान की गंगा बहे जैसे निर्मल सरिता में।
हर बालक सीखे सच्ची व अच्छी विद्या,
न हो कहीं भी कटुता, ईर्ष्या की बाधा।
सूरज-सा तेज हमें भी प्रदान करे रब।
मन व बुद्धि में सद्गुणों का साथ रखे सब।
रोशन इल्म से जग को प्रकाशित करें हम।
नव युग में उत्कर्ष और निर्माण करें हम।
ज्ञान की ज्वाला को और प्रखर कर दो,
हर मन में बंधुत्व का उजियारा भर दो।

महाराणा प्रताप पर कविता

वीरता का परिचय,महाराणा प्रताप, स्वाभिमान, गर्व का शाहकार ।

स्वाभिमान की उच्चता, अद्भुत शौर्य से किया अधीनता का प्रतिकार।

उनका अपूर्व साहस शौर्य और संघर्ष, अपूर्व और अद्वितीय।

शौर्य, पराक्रम से भरी हर डगर पर अद्भुत है उनकी वीर कहानी,

समर के मैदान में, चेतक घोड़े पर उनके संग्राम की निशानी।

सत्य, स्वाभिमान, प्रतिज्ञा,प्रण,प्रताप, वीर धरती के कर्मवीर।

निर्भय योद्धा, स्वाभिमानी रक्षक, सत्य के अजेय अमर वीर।

अमरता की झलक, वीरता, स्वाभिमान और दृढ़ संकल्प का माप।

देश के गर्व, शौर्य, पराक्रम और वीरता का प्रताप ।

वीर योद्धा महाराणा,धरती पर चमके उनके अपरमेय पुरूषार्थ के ताप।

मान-सम्मान के पुरुषार्थी, अद्भुत शौर्य के अभिनेता हमारे महाराणा प्रताप।

चित्तौड़ की रणभूमि में वीरता की अमर कहानी, निरंतर चली अपार उनकी विजय।

साहस, समर्थ और सामर्थ्य का प्रतीक, नही मानी पराधीनता।

अमर योद्धा, संकल्प , प्रताप,शक्ति, साहस का परिचय उनकी स्वाभिमानता।

विश्वास की दीप्ति से प्रेरित, निर्भय वीरता से दृढ़, न झुके उनके वीर स्वाभिमानी प्रेरक।

स्वराज के रक्षक, सत्य के प्रवर्तक,
महाराणा प्रताप, अमर, अजय रहें उनके संकल्प ।

बसंत: ऋतुओं का राजा

फसल और फूलों की खुशबू हवा में घुलती,
फसलों के फूलों के रंगों में सुगंध महकती।
बसंत ऋतु की खुशबू खेतों व बागों में दिखती।
फूलों की बू, रंग बिरंग चारों ओर खिलती।
पक्षी,कोयल की मीठी तानें गूंजें गूंजती।
आम्र पेड़ों में मंजरियों की छटा निखरती ।
सरसों की फसल खेतों में लहलहाती।
नील गगन में उड़ते पक्षी,चहकते पंछी।
सारी धरती भी चंदन सी महकाए खुशबू।
हरियाली ओढ़नी ओढ़े, कुदरत उजली से चमके।
स्वागत करें बसंत का,खुशियों की बयार आए।
उमंग, तरंग और उल्लास से,नए रंग जीवन में लाएँ।

छूकर मेरे मन को

छूकर मेरे मन को, एक तरंगलहर सी आई,
ख़्वाबों की दुनिया फिर से महकने आई।
दिल में बसी मीठी-बातें,बनके चली आईं।

दिल की धड़कनों में कोई तराना सा बजा,
जैसे तरन्नुम ने दिल और मन को छू लिया।
मन की गहराइयों में एक रोशनी फिर जगी,
खोए हुए संगीत की, सरगम फिर से बजी।

जो उसने कहे थे, वो लफ़्ज़ हो गए जिंदा,
हर लफ्ज़ में अब भी है एक जादू सा चला।
छूकर मेरे मन को, दिल से एहसास कराती,
वो बीते हुए लम्हे, फिर से पास बुलाती।

सबसे आगे होंगे हिंदुस्तानी

सपनों की ऊँचाई छूने को, नए दौर नया पथ चुनने को, अब कोई न पीछे रह जाएगा, सबसे आगे होंगे हिंदुस्तानी।

हाथों में मेहनत की मशाल लिए, चलेंगे सब तूफानों के आगे,
हर मुश्किल से टकराएँगे, अब कोई न रुकेगा थककर, सबसे आगे होंगे हिंदुस्तानी।

ज्ञान का दीप जलेगा हर घर में, हुनर की किरण चमके हर मन में,सौहार्द, एकता का संदेश बहाएंगे, नई रोशनी से जगमगाएंगे, सबसे आगे होंगे हिंदुस्तानी।

जाति-धर्म का भेद मिटाकर,मिलकर बढ़ेंगे प्रेम निभाकर,
सपनों का भारत संवारेंगे,विश्वगुरु बनकर दिखाएँगे, सबसे आगे होंगे हिंदुस्तानी।

हौसले बुलंद, नजरें आकाश पर, हम बढ़ेंगे आगे हर मैदान में।
रुकना नहीं, झुकना नहीं, किसी संघर्ष मुश्किल से डरना नहीं।
संघर्ष की अग्नि में तपकर, सबसे आगे होंगे हिंदुस्तानी।

ज्ञान की गंगा हर घर बहेगी, मेहनत की खुशबू खेतों में रहेगी।
विज्ञान की किरण जगमगाएगी, नवयुग की रोशनी मुस्कुराएगी।
तकनीक और तरक्की की राहों पर,
सबसे आगे होंगे हिंदुस्तानी।

शांति का दीप जलाएंगे, विश्व को राह दिखाएंगे।
एकता, प्रेम और बलिदान से, फिर इतिहास बनाएंगे।
हर चुनौतियों को हराकर,सबसे आगे होंगे हिंदुस्तानी।

नव निर्माण की शपथ उठाएंगे,
सपनों का भारत बनाएंगे। साहस, संकल्प और कर्म के बल पर,
हर शिखर को छू आएंगे। गर्व से गूंजेगा यह नारा, “सबसे आगे होंगे हिंदुस्तानी!”

याद करेगा हमें ज़माना

जब लफ्ज़ हमारे बहारों में खिलेंगे,
जब किस्से,यादें फ़िज़ाओं में मिलेंगे।
जब राहों में कोई मुसाफ़िर रुकेगा,
नाम लेकर हमारा गुणगान करेगा।

याद करेगा हमें ज़माना,
जब खामोशियों में सदायें गूंजेगी।
जब अश्कों से कोई कहानी कहेगा।
जब तन्हाइयों में हमे याद करेगा।

वो लम्हे जो हमने संजो कर रखे थे,
संगीत बनके समय की रुत में बहेंगे।
कभी चाँदनी में जगमगाते रहेंगे।
गर्मी की बारिशों में फुहारें बनेंगे।

यूँ ही नहीं कोई, मिटकर जिएगा।
तारीख़ के पन्नों में कुछ नाम करेगा।
हम भी कहीं एक लफ्ज़ बन जाएंगे,
दिलों की धड़कनो में गूंज जाएंगे।

याद करेगा हमें ज़माना,
जब हवाओं में हमारे निशां होंगे।
जब रातों में कोई कहानी कहेगा।
वो बाकमाल थे बाकमाल ही रहेंगे?

मेरी करनी मेरे साथ

मेरी करनी मेरे साथ,छूटे नहीं ये जीवनभर साथ।
जैसा बीज लगाया जग में,वैसा ही पाया हर एक बार।

सत्कर्म करूं तो सुख मिलता है, दुष्कर्म से दुख मिलता है।
जो जैसा बोता है जग में,वह वैसा ही वो फल चखता है।

छल-कपट जो अपनाता है, एक दिन पछताता है।
नेकी की जो राह चुनता है, भविष्य में वो उजलाता है।

मेरी करनी, मेरी पहचान, यही है रब का विधान।
जो करूं मैं, वैसा पाऊं, फिर क्यों करूं मैं गुमान?

बात जो बाकी रही

बात जो बाकी रही, वो आज भी चुभती रही,
दिल के कोने में कहीं, याद बनकर दुबकी रही।

कह न पाए जो कभी, वो शब्द अब रोते मिले,
भीगी पलकों में छुपी, खामोशियों को सहते मिले।

समय बहा ले गया, हर वो लम्हा, हर वो कसकता रहा।
फिर भी एहसास के हर साए में, दिल में कुढ़ता रहा ।

कुछ अधूरे सवाल अब भी, जवाबों को ताकते रहे,
बिन कहे ही रह गए, आंसुओं से बात करते रहे।

काश ! वो लम्हा ठहरता, या कुछ समय थम जाता।
जो जुबां से कह नहीं पाए, वो लफ़्ज़ों से कह देता।

वचन बड़े अनमोल

वचन बड़े अनमोल जगत में, सोच समझकर बोल।
शब्द अमृत भी बन सकते, और बन सकते हैं शूल।।
अतः वचन बड़े अनमोल हैं,मत इन्हें तुम तोड़ो।
जो भी बोलो सोचकर, शब्द न कड़वे छोड़ो।।

जो भी बोले प्रेम से, उसका मान बढ़ा होता,
निर्दयता के बोल से, संबंध टूट खड़ा होता।।

संभल-संभल कर बोलना, सबसे बड़ा गुण होता है।
मीठे वचन जो बोल दे, वह सच्चा सुकुन होता है।।

मीठे वचन सजे हों मुख पर, तो सुख सबको देता।
कटु वचन जो निकले मन से, वह दुःख गहरा देता।।

शब्द साधु को देव बनाए, सज्जन को दुर्जन।
वाणी से ही मानव बनाए, या कटुता का दानव।।

जो भी बोले सच बोल दे, झूठ न जुबां पर आए।
संयम से जो कहे बात को, मान सदा वह पाए।।

शब्द बाण से तीखे प्रहार होते, घाव नहीं भर पाते।
मीठे बोल दिल को छू लें,तो फरिश्ता बन जाते।।

काँटों की चुभन

काँटों की चुभन एक नसीहत होती है,

 जीवन की राहों की हकीकत होती है।

हर चुभन हमें कुछ नया सिखा जाती है,

 हर ठोकर एक नया सबक दे जाती है।

जो चुभन से डरकर रुक और थम से जाएं,

वो अपनी मंज़िल ए मकसूद हासिल कैसे कर पाएं?

काँटे और चुभन जीवन की राहों का हिस्सा हैं,

 जिनसे गुजरना जीवन का किस्सा है।

फूलों के संग काँटे भी ज़रूर होते हैं,

संघर्ष से जीवन के स्वप्न भी खिल जाते हैं।

जो सह जाए कांटो की चुभन बिना शिकवे के,

सफलता उसी के कदम पर आती है।

काँटों की चुभन सहकर ज़ख्म को सब्र से

 भर लो और काँटों को गुरुमंत्र मानो,

दर्द को जीने की नसीहत समझो

क्योंकि चुभन के बिना जीत अधूरी होती है।

बेटी

प्यारी-सी मुस्कान लिए वो , हर घर को रोशन करती है,
हर गम को वो खुद में समेटे, हर घर में सुकून भरती है।

माँ की ममता का अक्स होती बेटी, पिता का गौरव होती है,
हर रिश्ते को सहेजने वाली, हर घर की धुरी बेटी होती है।

अपनी आंखों में सपने रखती, और दिल में हौसला रखती है,
हर मुश्किल कार्य को खुद करने की वो सहस्र रखती है।

वो नाज़ुक है मगर कमज़ोर नहीं है, आसमान को छू लेती है,
अपने हक के लिए खड़ी यदि हो, हर मुश्किल को जी लेती है।

हर युग में बढ़ती, लड़ती वो सिर्फ घूंघट में छिपी नहीं रहती है,
कलम से लेकर तलवार चलाने के हुनर में भी ढल जाती है।

बेटी है तो कल है, बेटी ही समाज और देश का भविष्य होती है,
उसकी प्यारी मुस्कान के आगे, हर खुशी भी व्यर्थ होती है।

संभालो उसे और सहेजो उसे सब, ये अमानत प्यारी न्यारी है,
बेटी सिर्फ एक रिश्ता नहीं है, ये स्वयं एक दुनिया सारी है।

हम भारत के वासी हैं

हम भारत के वासी हैं, गणतंत्र हमारी शान है,
जन जन में बसी है एकता, यह हमारी पहचान है।

सभी धर्मों का संगम है ये, धरती अद्भुत न्यारी है,
उत्तर से दक्षिण तक फैली, तहज़ीब हमारी प्यारी है।

हिमालय यहां प्रहरी बन, हमको रक्षित करता है,
उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम मिलकर जीवन का सुर भरता है।

खेतों में लहराती फसलें, हरियाली की तस्वीर यहां,
परिश्रम से सजती है यह धरती “श्रम मेव जयते” तकदीर यहां।

हर मजहब का फूल खिला है, बगिया है रंगीन यहां,
भाषाएँ, रीति-रिवाजों से सजती, भारत की अद्भुत धरा यहां।

युवाजनों का जोश है और बुज़ुर्गों का सत्कार यहां,
हर मुश्किल को पार करें, मिलकर दें साथ यहां।

हम भारत के वासी हैं, यह है गर्व की बात यहां,
सद्भावना व भाईचारा रचते है एक सौगात यहां।

भारत देश हमारा दिल से प्यारा, नहीं होता भेदभाव यहां, हम सौहार्द,

सहिष्णुता और एकता की कायम करे मिसाल यहां।

गणतंत्र के मायने

गणतंत्र का अर्थ है सच्ची स्वतंत्रता,
समानता, न्याय व एकता बंधुत्वता।
यह वो सपना है जो साकार किया है,
त्याग-बलिदानों से उद्धार किया है।

गणतंत्र जनता का है अपना शासन,
न हो किसी का यहाँ दमन प्रशासन।
हर धर्म, पंथ,जात को मिले सम्मान,
जन के सपनों का साकार हिंदुस्तान।

संविधान है इसकी नींव पक्की जहां,
जिससे जुड़ी जनता की उम्मीद यहां,
कर्तव्य अधिकार का दोनों मिले वहां
सबका सम्मान व सबका मान जहां।

गणतंत्र का मतलब न्याय व समता।
न हो भेदभाव बस स्वतंत्रता, बंधुता।
जनता के लिए द्वारा जनता से सत्ता।
देश में स्वाधीनता और सर्वसंप्रभुता।

26 जनवरी को “गणतंत्र” अपनाया।
इसके मूल्य हर दिल दिल में बसाया।
जन कर्तव्य व अधिकार को बताया।
गणतंत्र के असली मायने कोबताया।

जीवन में अनुशासन

अनुशासन जीवन सिद्धांत बन जाए।
सफलता का अमूल्य स्रोत हो जाए।
नियम और समय का पालन करके।
विजय की मंजिल आसान बनाएं।
अनुशासन से जीवन में ऊँचाई पाए।

शिक्षा या जीवन में खेल अपनाएं।
अनुशासन मुश्किल का हल हो जाए।
कर्तव्य पथ पर अनुशासन हो जाए।
हम सब बाधाओं को पार कर जाए।

समाज व देश में यह संतुलन लाएं।
नियम-रीति से यदि प्रबंधन कराएं।
निज स्वार्थ को छोड़ आगेबढ़ जाएं।
अनुशासन पीड़ी को आदर्श बनाएं।

अनुशासन को हम सब अपनाएं।
जीवन को अनुशासनमय बनाएं।
शिक्षित और संगठित जीवन बनाएं।
जीवन सपनों का आकाश छुआएं।
अनुशासित समाज से देश बनाए।

सुभाष चंद्र बोस

वीर सुभाष, तुम भारत की आज़ादी के अभिमान हो।
आज़ादी के पथ पर चलकर तुम ही अमिट प्रमाण हो।
त्याग तपस्या और बलिदान की तुम अनुपम कहानी हो।
हर दिल में तुम अद्भुत बसते, तुम जनमानस के मान हो।

“तुम मुझे खून दो, मैं आज़ादी दूंगा, नारा तुमने बुलंद किया।
हर युवा ने तुमको सुनकर देश के लिए सर्वस्व दिया ।
“जय हिंद” का नारा तुमने देकर ऊंचा और बुलंद किया।
जाति धर्म का बंधन तोड़कर, भारत को स्वच्छंद किया।

क्रांति की नई राह दिखाकर जनता का जज़्बा बुलंद किया।
शौर्य, पराक्रम और संघर्ष से स्वाधीनता का मार्ग दिया।
आज़ाद हिंद फौज बनाकर दुश्मन को भयभीत किया।
अंग्रेजों के दिल में भय भरकर क्रांति का आगाज़ किया।

तुमने साहस, युवा प्रेरणा,चेतना का मार्ग प्रशस्त किया।
वो बलिदान व्यर्थ नहीं गया, देश को तुमने ऋणी किया।
आज़ादी का सपना बनककर भारत को स्वाभिमान दिया।
आज़ादी की कहानी सुनकर सब देशों ने सम्मान किया।

जीवन का सार

जीवन का सार है क्या कोई जाने,
हर पल के राज़ को कौन पहचाने।
सुख-दुख के साये में डूबा संसार,
फिर भी चलती रहती जीवन की धार।

सवेरा लाए आशा, अभिलाषा, संध्या में छुपे कुछ अनसुलझी प्रत्याशा।
जीवन करमोड़ पर एनई चुनौती, पर सीखने को मिलती नई ज्योति।

जीवन का सार एक संघर्ष का गीत,
हार, जीत के संग चलता संगीत।
हर ठोकर सिखाती चलने की कथा,
हर आंसू के पीछे छुपी है व्यथा।

समर्पण, प्रेम और विश्वास का संग,
यही बनाते हैं जीवन को प्रसन्न।
क्षणभंगुर है पर जीवन अनमोल, हर सांस में छुपा है इसका तोल।

जीवन को हंसते-हंसते जिएं, हर पल को दिल से अपना बनाएं।
जीवन का सार यही सिखाए कि कर्म ही जीवन का मर्म, यही बताएं।

मर्यादा

मर्यादा है जीवन की डोर सजीव,जो बांधती है जीवन की नींव।
नियमों का नहीं ये बंधन मात्र, संकल्पों का यह गहरी प्रीत।

पुरखों ने इसे आदर्श बनाया,
उन्होंने मर्यादा का मार्ग दिखाया।
मर्यादा में बंधता जो जीवन, इसका सही भावना समझाया।

मर्यादा है तहज़ीब व संस्कारों का सार, जो बनाती है जीवन को अनुपम।
यह है मान,सम्मान का प्रतीक, हर रिश्ते को करती है पावन।

अगर तोड़ें इसे, टूटे समाज, फिर न रह पाता कोई रिवाज।
मर्यादा है सच्चाई की राह, जो लेके जाती है जीवन को उरूज़।
इसे समझें, इसे निभाएं, जीवन को इसके संग सजाएं।
मर्यादा का सम्मान कराए, सत्य-धर्म का हर पल वरण कराएं।

रूठना और मनाना

रूठ गए हो तो कुछ कहो, गम के आग़ोश को चुप्पी में सहा,
उसकी खामोशी का हर पल, दिल के दरवाजे पर लगा।

उसका यूं मुंह मोड़ लेना,जैसे रिश्तों को तोड़ने को कहा,
परवो क्या जाने, इस दिल ने हर आहट को जोड़ लिया ।

मनाने की राह में पुष्प बिछाये,हर गम को खुद से दूर भगाएं,
बस वह एक बार मुस्कुराए, शिकवे शिकायत को दूर भगाए।

रूठना-मनाना तो ज़िंदगी का मुसलसल सिलसिला है,
नोंक झोंक, तकरार प्यार का सबसे प्यारा सिला है।
आपस में खट्टी-मीठी बात से,रिश्ता और गहरा बना है।

तो आओ, गिले-शिकवे भूल जाएं,फिर से नई शुरुआत बनाएं।
उसका हाथ थामे, संग रहेंगे हमेशा, एक दूजे का वादा अपनाएं।

आंगन की धूप

घर के आंगन में जो धूप उतरती, सुनहरी चूनर-सी लगती।
जैसे कोई माँ के आँचल सी,प्यार भरी गर्मी दे जाती।

सर्दी की ठिठुरन में अक्सर,यह धूप ही तो साथी बनती।
फटी पुरानी चादर में भी, सपनों की कथनी भरती।

दोपहर की चुप्पी में भी,धीमी-धीमी बात करती।
बच्चों के किलकारियो के संग, हँसती, दौड़ती और खिलखिलाती।

शाम ढले जब ओझल होती,साथ छोड़ने का ग़म भी देती।
और वादा भी करती हर दिन का,कि लौटूंगी तथा संग रहूंगी।

आंगन की इस मीठी धूप में,छिपा है प्यारा सा सारा जीवन,
प्यार, सपने और उम्मीदों का, इक चमचमाता सा होता है क्षण।

दिल की दुनिया

दिल की दुनिया भी अजब कहानी होती है,

ख़्वाबों के रंगों से सजी एक निशानी होती है।
दिल में एक किस्सा व छिपी कहानी होती है,
दिल की धड़कन में कुछ बात दबी होती हैं।

ग़म व दर्द का सागर भी समेटे हुए होती है,
खुशियों की चादर में लिपटी हुई होती है।
ग़म के साए में भी मुस्कान उसे ढूंढ लेती है,
अंधेरों में यह उजाला रोशन किया करती है।

रिश्तों का बंधन इसे और मजबूत बना लेता है,
प्यारो मोहब्बत की ख़ुशबू इसे ख़ूब महकाती है।
पर कभी-कभी दिल की दुनियां भी टूट जाती है,
अकेले और तन्हाई में खुद से बातें कर जाती है।

दिल की दुनिया को समझना आसान नहीं होता है,
यह खुद में एक अनसुलझा सा अफसाना होता है।
हर किसी के लिए ये दुनियां अलग मायने रखती है,
दिल में बसता एक अलग ज़माना लिए होता है।

फूलों की महक

फूलों की महक है अद्भुत संसार,
हर खुशबू की होती अपनी पुकार।
चंपा, चमेली और गुलाब की सुगंध,
खुशबू से महकाती जीवन में उमंग।

बागों में बिखरी है खुशबू की महक,
प्रकृति संदेश देती पक्षियों की चहक।
सुबह की बयार संग लेकर आती,
पुष्पों की महक मन बहुत लुभाती।

फूलों की महक में छुपा जादू ऐसा,
भर दे दिल में नया अहसास वैसा।
फूलों की सुगंध मिटा देती सारी चिंताएँ।
फूलों की महक से प्रेम का इजहार कराएं।

मैं, तुम और ये जनवरी

जनवरी की ठंडी सुबह, भीगी घास में इस की सफेदी की ठंडाई,
सर्द हवा की सरगोशियों में, मेरी और तुम्हारी एक कहानी।

सूरज की पहली किरण जब जनवरी की इस पर पड़ती,
सर्दी की उस प्यारी धूप में, मेरी और तुम्हारी दुनिया चमक पड़ती।

हाथों में तुम्हारे हाथ, जैसे सर्दी में गर्मी देते,
कंपकंपाते लम्हों में भी, दोनों गर्मी का एहसास लेते।

जनवरी की वो लंबी रातें, चाय की प्याली के संग बैठते,
बातें होतीं अनंत सपनों की, जिन्हें हम अपनी कहानी कहते।

चादर में लिपटे ठंडी रातें, चारों ओर खामोशी में,
हमारे दिलों की धड़कनें भी सदैव एक-दूजे का साथ देती।

जनवरी का ये महीना, हर साल ठंडाई भरी रातों में ठिठुरता,
मैं, तुम और ये जनवरी, हमेशा के लिए स्पैशल रहता।

मकर संक्रांति

तिल-गुड़ की मिठास लिए, संक्रांति का त्योहार आए।
खुशियों की सौगात लिए, हर घर में रौनक लाए।

गुड़ की जलेबी, तिल के लड्डू, रस में डूबे मीठे चिवड़े।
खिचड़ी की सौंधी खुशबू,घर-आँगन में रंग बिखेरे।

पोहा-जलेबी की थाली सजती, सर्द हवाओं में गरमाई भरती।
चूरमे का स्वाद अद्भुत होता, संग गुड़ के पकवान सँवरता।

पकौड़ी, हलवा, और गजक, हर व्यंजन में झलके चटपट।
संक्रांति की यही पहचान, साथ भोजन, प्रेम, और मान।

आओ मिलकर स्वाद चखें, मकर संक्रांति को हर्षित करें।
रंग-बिरंगे पतंग संग उड़ें, त्योहार को दिल से जिएं।

वाह सुंदरता Oh Beauty !

सुंदरता सिर्फ़ सूरत में ही नहीं बल्कि छिपी हुई है सीरत में।
सुंदरता छिपी हुई है इंसानी कैफियत में उसकी फ़ितरत में ।

सुंदरता केवल रूप में नहीं, वह छिपी है हर स्वरूप में।
सुबह पक्षियों के कलरव में, सांय के गोधूलीलीला रूप में।

झरने की कल-कल ध्वनि में, पत्तों की सरसराहट में।
कभी फूलों की महक में, कभी बच्चों की खिलखिलाहट में।

चमकते सूरज की किरणों में, चाँद की मधुर चांदनी में।
कभी पुष्पों की खुशबू में, तो कभी फूल रातरानी में।

सुंदरता वह सहज भाव है, जो हृदय को प्रभाव में लाए।
चक्षु की नज़र से जो दिखे, दिल की गहराई तक बस जाए।

यह न रूप का आभूषण, न कोई मोलभाव की उत्कृष्ठ चीज़ है।
सुंदरता तो वह सहज एहसास, जो हर दिल को आकृष्ट कर दे।

सुंदरता खुद में देखो, सबमें पाओ, सुंदरता जीवन में लाओ।
सुंदरता वह प्रकाश है जो जलाओ, हर हृदय में उम्मीद बढ़ाओ।

सुकून

सुकून की खोज में निकला था,
जिंदगी की भीड़ में अकेला था।
हर कदम पर शोर कोलाहल था,
मन में संतोष का मगर खाली था।

पैसों की दौड़धूप में थक गया था,
सपनो पूर्ण की चाह में भटका था।
सुकून कहीं दूर भी दिखता नहीं था,
दिल को चैन सुकून मिलता नहीं था।

एक रोज, ठहरा कुछ समय तक,
खुद से मिला, देखा अंदर की तरफ।
रब ने दिल में जो आवाज पहुंचाई,
वो पल भर सुकून चाबी संग लाई।

अब न दौड़ धूप है, न कोई प्रत्याशा,
हर पल सांस में बस है रब की चाह।
सुकून तो दिलोदिमाग में ही होता है
खुलूस दिल शांत मन हर राज़ खोलता है।

युवावस्था

युवावस्था है तरंगों और उमंगों की धारा,
सपनों का गगन, इच्छाओं का बसेरा।
हर कदम में होती नयी चमक, नया उत्साह,
जीवन का होता है अद्भुत, सुंदरतम प्रवाह।

तूफानों से टकराना ही है स्वभाव इसका,
मुश्किलो को आसान बनाना होता प्रभाव इसका।
सूरज से सीखना चमकना हर पल लक्ष्य इसका,
न हार मानना, बस आगे बढ़ते रहना ध्येय इसका।

आंखों में ख्वाब, दिल में हौंसले,युवावस्था की यही पहचान।
जीने का हुनर सीखना, आगे बढ़ने का होता यही जूनून।

ये दौर है जीवन को सीखने, समझने, संवारने का,
स्वयं को पहचानने, बनाने और निखारने का।
युवावस्था होता है है जीवन का अनमोल उपहार,
इसको संभाल लिया तो बन जाएगा जीवन का आधार।

यही जीवन की डगर

सावधान रहे, यही जीवन की डगर,
हर कदम पर खतरे का पहरा है।
समय की गति, बड़ी चालाक है,
जो चूके पल भर, वही भटका है।

सावधान रहें, जहां में अंधकार है,
हर उजाले के पीछे छुपा व्यापार है।
भरोसे के नकाब में चेहरा बदलते हैं,
अपनों से भी व्यवहार छल चलते हैं।

सोच-समझकर हर फैसला लेना,
हर खुशी व ग़म को खुलकर जीना।
झूठी चमक में न फंसें तुम कहीं,
सत्य राह ही जीवन में सदा चुनना।

सावधान रहें, पर डर के न जीएं,
हर मुश्किल अपनी ताकत बनाएँ।
हौसला रखें, सच्चे सपनों को पाए,
जीवन को सच्चे रंगों से सजाएं।

ना ग़मज़दा हो, ना खौफ हो दुनियां का।
अगर खौफ हो तो सिर्फ रब्बेकायनात का।
हर क़दम रहे सधा, हर पल जो सजीव,
सावधान रहकर ही बनाएं इसे अद्वितीय।

स्वामी विवेकानंद

ज्ञान का दीप, हृदय की पुकार, युवाओं के आदर्श, भारत का स्वाभिमान।
कर्म की ज्योति, सत्य का प्रकाश, स्वामी विवेकानंद, युगपुरुष का अभिमान।

उन्होंने जगाई थी सुषुप्त आत्मा, दिया था मानवता को सच्चा कर्म पाठ।
“उठो, जागो, रुको नहीं”, कहकर दिया था कर्म और साहस का साथ।

शिकागो के मंच पर गूंजा उनका स्वर,” भाइयों और बहनों” ने जीता हर दिल का का मर्म।
उन्होंने सिखाया, हर धर्म है सच में महान, बस समझने की है जरूरत है इंसान।

त्याग, तपस्या और समर्पण से प्रीत, उनके जीवन की प्रेरणा से मीत।
“एकता में शक्ति है” नारा उन्होंने देकर, विवेक और कर्म का मार्ग बताया।

आज भी गूंजता है उनका संदेश,जीवन को दे ध्येय, उनका सच्चा उद्देश्य।
स्वामी विवेकानंद की दीर्घ मशाल, हर युग में जलाएगी प्रेरणा की मिसाल।

ज्ञान के पथ पर चलने की रीत, उन्होंने सिखाई जीवन की मीत।
विवेकानंद जी, हे प्रकाश की ज्योति, उनसे रोशन है भारत वर्ष की नीति ।

जज्बातों का सफरनामा

जज्बातों का ये सफरनामा, कभी आसमां, कभी ज़मीन ठिकाना।
दिल की गहराइयों से उठती सदा,
कभी खुशियों, कभी ग़म का तराना।

ज़िंदगी के मोड़ पर स्वप्नों के किरदार मिले,
कभी सच, कभी झूठ के अफसाने जुड़े।
जिंदगी के जज़्बातों के सफर में नई नई पहेली आई,
हर जज्बात ने एक नई कैफियत दिखलाई।

कभी यादों की बारिश में भीगे,
कभी दर्द के सन्नाटों में ठहर गए।
कभी महकी रातों का साथ मिला, कभी सिसकियों में दिन ढल गए।

जज्बातों के सफर में जो सीखा, ज़िंदगी के मोड़ पर स्वयं ही देखा।
कभी खामोशी में सुकून मिला,
कभी शोर में कोलाहल देखा।

ये ज़िंदगी सफरनामा नहीं बस अल्फाज़ों का, पर किस्सा है दिल के जज़्बातों का।
जो लोग कहते हैं हर एहसास, कैफियत को गुमनाम,
उन्हें बताएं, यही है ज़िंदगी के सफरनामे का इनाम।

वक्त का चक्र

समय के चक्र का हर पल होता है अनमोल,
सद कर्म ही जीवन को बनाता है अनमोल।
समय के सदुपयोग से मानव बनता महान,
वक्त ने बना दिए कर्म योगी को बलवान।

पल भर की खुशी, हर इक क्षण की आस,
एक क्षण में मिटे आस, दर्द का दीर्घ त्रास।
प्रति क्षण बहता है समय का अद्भुत चक्र,
वक्त के चक्र ने बना दिया जीवन को वक्र।

जो इस पल जी लिया, वही सच बन जाता,
आने वाला हर पल, स्वप्न ही नज़र आता।
यह क्षण सहेज लो, यही ज़िंदगी का सार,
इसी में छुपा हुआ है, जग में सत्य आधार।

समय का प्रति क्षण, मत जाने दो इसे व्यर्थ,
इसमें संचित होता है सुख दुःख का अर्थ।
जियो जी भर कर, बनाए इसे अहम खास,
चूंकि समय का पल ही जीवन का विश्वास।

उड़ता युवा , नशा मुक्त समाज

आज उड़ता युवा, सपनों से कहींदूर,
नशे की राहें, जीवन का नशा ज़रूर।
सपने थे ऊँचे, पर यौवन गिरा दिया,
स्वयं की पहचान को ही मिटा दिया।

आंखों की चमक, अब धुंधली हुई,
हिम्मत और हौंसला, नशे ने छिनी।
घर का चिराग भी अब बुझने लगा,
माँ-बाप का इक सहारा टूटने लगा।

नशा था मस्ती में, अब हुआ सजा,
हर तरफ घोर अंधेरा, उजाला छिना।
खोखला हुआ जीवन, नशे में नाश
नशे के जाल में, सब विफल प्रयास।

युवा है समाज की उम्मीद का दीप,
दूर करो नशे के अंधेरे से कोई प्रीत।
जागो, संभलो, करो ये विचार मीत,
नशा नहीं कर्म बने जीवन की प्रीत।

बदल किस्मत, खुद पर कर विश्वास,
मंज़िलें पुकारें, सच्चाई से करे आस।
जीवन है अनमोल, इसे व्यर्थ न गवां,
नशे की जगह अपने स्वप्न को सजा

उड़ी पतंग पर कविता

उड़ी पतंग गगन में ऊँची, हवा संग जैसे नाची-झूमी।
डोरी थामी बच्चों के हाथ,सपनों संग भरी हर बात।

नीले अम्बर में रंग बिखेरे, इंद्रधनुष से दिखे सब चेहरे।
चकरी की धुन, मस्ती का संग, हर दिल में बजा खुशी का रंग।

कभी ऊपर, कभी ये नीचे, जैसे भाग्य के खेल के पीछे।
हवा के संग बहती जाए, हर मुश्किल को पीछे छोड़ आए।

चमके सूरज, बढ़े उमंग, उड़ी पतंग संग हर रंग।
आसमान छूने की ये चाह, सिखा गई जीवन की राह।

मकर संक्रांति पर कविता

सूरज की किरणें आईं सुनहरी,
लेकर संदेशा उमंगों की गहराई।
फसलें लहराईं खेतों में नई नई,
खुशियों की सौगात संग कई कई।

तिल-गुड़ की मिठास से महके परिवार,
घर आंगन में फैले सुख और प्यार।
पतंग को ऊंचाई छूने का संकल्प,
मकर संक्रांति पर करते हैं संकल्प।

पतंगों की डोर से काटे पतंगे,
आकाश में उड़कर, छू लेते सपने।
परंपराओं में सजा ये त्योहार,
मिलकर मनाएं अपनापन हर बार।

सूरज का रहे प्रकाश सदा,
जीवन में उजाला रहे चहुं दिशा।
मकर संक्रांति का यह पावन पर्व,
हम सब को देता है नयी उमंग।

विश्व हिंदी दिवस पर कविता

हिंदी है हिन्दुस्तान की पहचान, इसमें है संस्कारों की आन।
शब्द-शब्द में छिपा है ज्ञान, इस भाषा का गौरव महान।

हिंदी भाषा का मोल समझो, इसमें बसा है संस्कृति का वास।
दुनिया में लहराए परचम इसका, हिंदी बने हर जन की खास।

साहित्य, कला व ज्ञान की धारा, हिंदी का फैला मैदान न्यारा।
संवेदनाओं की सजीव धारा, संपर्क की डोर से बांधती सारा।

विश्व हिंदी दिवस मनाएं, हिंदी भाषा को सम्मान दिलाएं।
मिलकर इसका मान बढ़ाएं, हिंदी से रोशन हिंदुस्तान बनाएं।

चींटी का साहस

छोटी-सी काया, न तन में बल,
फिर भी दिखाए अद्भुत हलचल।
पग-पग पर हर पल संघर्ष,चींटी सिखाती मेहनत का अर्थ अनमोल।

गिरती है, फिर उठती है, हौसले से पथ गढ़ती है।
राह में चाहे आए पहाड़, साहस से कठिनाई को हर लेती है।

न रुके कभी, न कभी थके, हर काम को अंजाम तक लाना बताए।
धैर्य और लगन का पाठ सिखाए,सच में, जीवन का सार बताए।

चींटी से सीखो जीना यार, हर मुश्किल को करना पार।
छोटे-से जीवन में बड़ा संदेश,साहस और कर्म से करे नैया पार।

सूरज की किरणें

सूरज की किरणें आती हैं, नवजीवन का संदेशा लाती हैं।
अंधियारे को दूर भगाकर, उजियारे की चादर बिछाती हैं।

हर सुबह ये हमें जगाती हैं,नव आशा के दीप जलाती हैं।
जीवन में ऊर्जा भर देतीं,हर दिशा को रोशन कर देतीं।

फूलों को मुस्कान दिलातीं,पंछियों को गीत सुनातीं।
धरती के कण-कण में रच बसकर, प्रकृति को सुंदर बनातीं।

इनमें छिपा है सृजन का सार,हर किरण है उम्मीद का द्वार।
चलो हम भी किरण बन जाएं,दुनिया में उजाला फैलाएं।

कुछ तो खास है

कुछ तो खास है फिज़ाओं में,
जो दुनियां को आईना दिखलाती हैं।
कुछ तो खास है इन दरख़्तों में,
जो धूप को छांव में बदलते हैं।

कुछ तो खास है इन पंछियों में,
जो चहचहाकर शाम गुनगुनाते हैं।
कुछ तो खास है इन बादलों में,
जो गरजकर बारिश बुलाते हैं।

कुछ तो खास है इस मिट्टी में,
जो बीज से घने पेड़ उगाती है।
कुछ तो खास है इस जीवन में,
जो कठिनाई मुस्काके सह जाती है।

कुछ तो खास है हर इक इंसान में,
जो दुनिया को अलग बनाती है।
कुछ तो खास है, इंसानी प्यार में,
जो हर पल को अमूल्य बनाती है।

पुष्य के अलंकार

मुख पर पुष्प सजाकर, सजती है जो मुस्कान,
उसमें छिपा हुआ होता है, स्नेह का अभिमान।

वह पुष्प नहीं केवल, हृदय का होता है संदेश,
जो शब्दों से परे, भावनाओं का होता है वेश।

जैसे चंद्रमा का उजाला, अंधकार को प्रकाशित करता,
वैसे ही यह पुष्प-सज्जा, मन को भी शांत करता ।

हर चेहरे की सुंदरता, इसमें छिपी रहतीं कहीं,
पुष्प का यह आभूषण, सपनों की कहानी सही।

मुख पर सजा यह पुष्प, केवल एक श्रृंगार करे,
आत्मा का यह आईना, सादगी का अलंकार भरे।

तेरे लबों की ख्वाहिश

तेरे लबों की ख्वाहिश में, जीवन के रंग रूप बिखर जाते हैं ।
जैसे चाँद की पूर्ण चांदनी में, सितारे आकाश में सिमट जाते हैं।

तेरी होंठों की हँसी की गूँजन में, दिल भी बेखुदी में डूब जाता है ।
तेरे लबों की मुस्कुराहट से, ख़ुद का ग़म भी भूल जाता है।

गुलाबों सी नाज़ुक लबों की मुस्कान मेरा दिल हर लेती है ।
तेरे लबों की मुस्कान भर से, रात की नींद भी खो जाती हैं।

तेरे लबों की ख्वाहिश में, हर लम्हा गीत बन जाता है।
जैसे उष्ण गर्मी में पानी की रिमझिम बरसात दिल के करीब होती है।

तेरे लबों की ख्वाहिश में बस एक क्षण मिल जाना होता है।
तेरे लबों की कशिश से, तेरी हर दास्तान ए ज़िंदगी पूरी होती है।

जुदाई पर कविता

बरसों की जुदाई का वो साया,
आज फिर मिलन ने मुस्कुराया।
जो बिछड़े थे राहों के मोड़ पर,
आज खड़े हैं साथ इस राह पर।

आंखों में चमक, दिल में बहार,
जुदाई के दुख से मिली करार।
वो अधूरी बातें वो अधूरे अरमान,
मिलन से ख्वाब पूरे होने का भान।

वो सर्द हवा, जो ठंडी थी कभी,
गर्म जोशी में बदल गई सभी।
हाथों में हाथ और दिलों में जुनून,
मिलन के सुरों ने छेड़ा है सुरूर।

जुदाई ने सिखाया आज वो सबक,
मिलन ने ला दी रिश्ते की खनक।
अब न कोई दूरी, न दीवार रहेगी
बस प्यार ही प्यार और बहार रहेगी।

ये मिलन की घड़ी है अनमोल आज,
जुदाई के इंतेज़ार को दे दिया राज।
अब साथ चलेंगे हर राह व हर क़दम,
इस मिलन के रंग में रंगी हर एक चमन।

जीत का जश्न

जीत का जश्न है खुशियों की बहार,
हृदय में बस जाए आशा का संसार।
मेहनत से धरा पर जो इमारत बनी,
सपनों के आंगन की इबारत बनी।
पसीने की बूंद ने लिखी कहानी,
हार की परछाई में छुपी परेशानी।
ठोकर से सीखा, दर्द को पहचाना,
निराशा में मैने स्वयं को संभाला।
कर दिखाएंगे वो, जो ठाना करेंगे,
जीवन के संग्राम में नाम लिखेंगे।
जश्न जुनून का विश्वास की बात का,
संघर्ष से जीत और खुदा साथ का।
जीत का ये जश्न एक नई शुरुआत,
नई मंज़िल की ओर कदम बढ़े साथ।

विश्व शांति

जग के नीले अम्बर व हरे धरातल,
जग में सजे मानवता की हलचल।

विश्व की फिज़ा में खुशबू हो केवल,
ना बारूद और भय का हो बादल।

हर देश में हो भ्रातत्व का संदेश
ना हो शत्रुता का कोई प्रदेश।

सहिष्णुता, सौहार्द का ही सम्मान
धरती पर इंसानियत का हो मान।

ना हिंसा, ना घाव, ना दर्द का नाम,
वैश्विक शांति का हो प्रवाह तमाम।

आओ सब मिलकर ले संकल्प,
नफरत के सारे मिटाए विकल्प।

एक ऐसा संसार हम सब रचें,
जहाँ विश्व मानवता खुशी से भरे।

नवीनीकरण की गूंज

सृष्टि के आंगन में, नवीनीकरण की गूंज, नव प्रभात में रवि का संदेश, देता नया प्रकाश पुंज।

पुराना समय बीता, नए समय ने वक्त दिया फिर से, नया बनने का निमंत्रण।
वृक्षों की शाखाओं पर, नए पत्तों का आना, नदी की धाराओं में, नव वर्षा जल का आना।

बिजली के बादल गरजें, बरसें अमृत की धार,धरती ने खोली बाहें, स्वागत की फुहार।
नवीनीकरण है वो अध्याय जोड़ता नए सपने, जो मिटाता पुरानी बातें और जीवन की रस्में।

नवीनता की गूंज सुनें, हाथ बढ़ाएं, पुरानी बंदिशें तोड़ें, नए सृजन रचाएं।
हर गूंज में छिपा है, रूह का गीत,नवीनता में रहस्य है, भविष्य का संगीत।

नवीनीकरण की इस गूंज को अपनाएं, नई प्रभात के संग, एक दुनिया बसाएं।
सृष्टि में गूंजती, एक नई सी अंगड़ाई,जैसे जीवन ने पहना हो, नया लिबास।

आकाश में चमके, नए रंगों के दीप, धरा सजे और ओढ़े हरियाली की चादर।
हर और से उठे, नवीन ताजगी का संगीत, हर धड़कन में बसे, नई ऊर्जा का मीत।

जो बीत गया, वो इतिहास बन गया,जो आ रहा है, वो स्वप्न बन गया।
नवीनता की गूंज है, एक नई राह हर अंत के आगे, नवीनीकरण की बात।

नवीनता की गूंज को आत्मसात करें,अपने विचारों में एक नई उड़ान भरें।
नवीनता है प्रकृति का एक शाश्वत संदेश, हर पल नया, हर क्षण विशेष।

निष्कर्ष

नव सोच के दीप जलाएं,
अंधियारे को दूर भगाएं।
शब्दों की इस अनमोल माला,
विश्व के कोने-कोने में पहुंचाएं।

भावनाओं का ये अद्भुत संगम,
हर मन को छूने का है दर्पण।
शब्दों स्वप्न को साकार जो करता,
उत्कर्ष प्रकाशन है वह अद्भुत कंपन।

हर पद्य में छिपा मरहता जीवन का सार,
हर शब्द लफ्ज़ में छिपा रहता उजियार।
निष्कर्ष ही करता हर विचारों का सारांश।

प्रेम

प्यार अकेले एक मधुर भावना,
जैसे मन में बहती अविरल धारा।
छूकर जाए दिल के झंकृत तार,
एक सुंदर अद्भुत नज़ारे में इशारा।

प्रेम न शब्दों में सीमित होता,
न कागज़ पत्र में परिबद्ध होता।
सिर्फ़ आँखों की खामोशी में,
हर लम्हा खुद को कह जाता है।

यह गगन के सितारों जैसा होता,
जिसे छू पाना मुमकिन नहीं होता।
इसकी रोशनी में जीना ही होता,
किसी वरदान से कम नहीं होता।

प्रेम समर्पणऔर प्रेम है समुंदर,
प्रेम में दुःख दर्द भी मीठा सुंदर।
यह जीवन की सच्ची अभिलाषा,
प्रेम ही गहरे रिश्तो की परिभाषा।

दयालुता

सर्दियों की ठिठुरती रातों में, दिलों में दया जगानी है।
पड़ोसी के चेहरे पर मुस्कान व सहिष्णुता दिखानी है।

भूखे को खाना, ठिठुरते को गर्म कपड़े, पहनाना है,
जो अकेला है सर्द मौसम में, उसे अपनापन देना है।

इस सर्द गलन हवा को मिल-जुल कर हराना है।
दयालुता की तपिश से, हर दिल को रोशन करना है।

ठिठुरती सर्दियों की रातों के संग गर्म सौगातें लानी है।
उजाले की लौ जलानी है,सामाजिक दयालुता निभानी है।

जहाँ छत को तरस रहा, वहाँ आसरा हमें बन जाना है,
जहाँ कोई भूख से लड़ रहा, वहाँ रोटी का हक दिलानाहै।

पुराने कोट और कंबल लाकर गरीबों के सपनों को सजाना है,
गरीब का हाथ को थामकर, मानवता का मार्ग दिखाना है।

सिर्फ अपना नहीं, सबका सोचकर दिल को दयालुता से जोड़ना है।
सर्द हवाओं को हराकर के सिर्फ़ इंसानियत के दीप जलाना है।

पड़ोसी, राहगीर या अजनबी, हर चेहरे को अपनापन देना है।
ठिठुरते जीवन में गर्म जोश से दुनिया को बेहतर बनाना है।

चोरी चोरी चुपके चुपके पद्य

चोरी-चोरी, चुपके-चुपके, स्वप्न कोई बुनता जाता है,
नींद की गहरी वादियों में, दिल भी चुपचाप सुनाता है।

रात की अंधियारी में छुपकर, कोई संगीत गुनगुनाता है,
चंद्रमा के चाँदनी से परदे में,कोई अपना राज़ छुपाता है।

हवा के तेज़ झोंके से सहमी,पत्तियों की सरसराहट सी होती है।
जैसे अजनबी कोई कानों में, धीरे से कुछ कह जाती है।

चोरी-चोरी, चुपके-चुपके, प्यार प्रीत के रंग रम जाते हैं,
दिल की तेज़ धड़कनों में, ख़्वाबों के फूल खिल जाते हैं।

मन की सुरम्य वादियों में,हर बात का अर्थ प्रखर होता है,
चोरी चोरी और चुपके चुपके में छिपा प्रेम का प्रकट होता है।

धरती संसार

मां जैसी धरती का आँचल प्यारा,
जिसमें सारा जगत रहता सारा।
नदियाँ बहती रसधार बनकर,
जैसे गीत गा रही सब मिलकर।

सूरज दिनकर है जीवन का दीपक,
प्रकाशित करता दिन भर निरंतर।
चंदा देता स्नेह को प्रकाशित करता،
जिसका प्रकाश रात को छा जाता।

पुष्प हैं मुस्कान इस धरा की,
खुशबू में बसी है कथा इसी की।
वन के पेड़ खड़े हैं प्रहरी जैसे,
छाँव में हर प्राणी ठंडक लेते।

सागर है जैसे गर्मी का अवशोषक,
बादल बन देता ज़मीन को पोषक।
पवन में है संदेशा सुख-शांति का,
जो देता है जीवन हर प्राणी का।

हर रूप है इस संसार का सुंदर,
रब ने छिपाया हर दृश्य में समुंदर।

रूपक अलंकार कविता

मां जैसी धरती का आँचल प्यारा,
जिसमें सारा जगत रहता सारा।
नदियाँ बहती रसधार बनकर,
जैसे गीत गा रही सब मिलकर।

सूरज दिनकर है जीवन का दीपक,
प्रकाशित करता दिन भर निरंतर।
चंदा देता स्नेह को प्रकाशित करता،
जिसका प्रकाश रात को छा जाता।

पुष्प हैं मुस्कान इस धरा की,
खुशबू में बसी है कथा इसी की।
वन के पेड़ खड़े हैं प्रहरी जैसे,
छाँव में हर प्राणी ठंडक लेते।

सागर है जैसे गर्मी का अवशोषक,
बादल बन देता ज़मीन को पोषक।
पवन में है संदेशा सुख-शांति का,
जो देता है जीवन हर प्राणी का।

हर रूप है इस संसार का सुंदर,
रब ने छिपाया हर दृश्य में समुंदर।

पूस की रात

पूस की रात में ठिठुरन कड़ी, धरा का पानी के बर्फ की चादर जमी।
सर्द हवा का संगिनी किसान, चांदनी भी जैसे जमी पड़ी।

खेतों में खड़ा किसान है उदास, मेहनत की कीमत, अब भी निराश।
ट्रैक्टर हल के संग, सपने बोए, पेट की आग में जीवन खोए।

झोपड़ी का आशा दीप बुझा, आकांक्षा का सवेरा हुआ कोहरा।
घर का आंगन ठंड से सिहर रहा, जीवन की गति थम रही।

पूस की रात ये कहती रही, संघर्ष से ही जीवन सजीव रहे।
जीवन के अंधेरों में उम्मीद जगे, कठिन राह में हौसला बढ़े।

इंतजार ए महबूब

आसमां के तारों ने सुनी दास्तां चाँदनी रात में,
गवाह रहे मेरा सब्र दिल की अनकही दास्तानों में।

उसके आने की आहट को, हर पल मैंने महसूस किया,
रब से उसकी सलामती का हर पल जिक्र किया।

दिल में बसाए अरमानों के फूल, सांसों में होता उसका जुनून,
उसकी यादों का दरिया, समुंदर में समा जाता है ज़रूर।

उसके वादों की मिठास में डूबा हर एक क्षण,
उसके बिन अधूरी है मेरी जिन्दगी का प्रतिक्षण।

सब्र ए इंतजार का ये दरिया भले गहरा हो जाए,
पर उससे मेरी मोहब्बत कभी भी कम न हो पाए।

दिल उससे रूबरू हो, मुहब्बत की सुबह रोशन हो,
ये इंतजार ए महबूब का सफर कभी भी कम नहीं हो।

मंज़िल अपनी-अपनी

मंज़िल अपनी-अपनी है, राहें अपनी-अपनी।
कभी तेज़ हवाओं से संघर्ष, तो कभी ठंडी छांवें अपनी।

किसी के कदम दौड़ते हैं, किसी के धीरे-धीरे बढ़ते।
किसी को राह दिखाए, कोई राह में रोड़ा अटकाए ।

कोई निकलते हैं आकाश को छूने, कुछ ढूंढ़ते हैं किसी का सहारा।
किसी की मंज़िल में होती है रुकावट
तो किसी की मंज़िल में थकावट।

राह ए मंज़िल का यह फ़लसफ़ा, हर किसी को शिक्षा देता है।
मंज़िल भले हो अलग, पर किसी का सफर कुछ नसीहत देता है।

मंज़िल है एक सपना, जो हर किसी के दिल में होता है।
कभी राहें आसान होती हैं, कभी संघर्ष का दरिया बहता है।

कदम-कदम पर रुकावटें मिलतीं, कभी उम्मीद भी डगमगाती है।
जो हिम्मत से हार नहीं मानते, मंज़िल भी उन्हीं को राह दिखाती है।

मंज़िल सिखाती है, नहीं रुको, चलते रहो, करो चुनौती स्वीकार।
क्योंकि मंज़िल उन्हीं की होती है जो करते हैं खुद पर एतबार।

लोगों, कदम बढ़ाते जाओ, अपने स्वप्न की मंज़िल को पहचानो,
क्योंकि मंज़िल अपनी अपनी है पर राह ए सफर में सीख को जानों।

नानी के स्वेटर की कहानी”

सर्द मौसम जाड़े में नहीं लगती पुरानी।
ओस भरी सुबहें और ठंडी रातें,

उनके बुने स्वेटर में छुपतीं सारी बातें।
उनकी उंगलियों की थी फुर्ती,

ऊन धागों में बुनी थी बारीकी।
हर फंदे में बसी थी ममता,

जैसे धूप में छांव का होता रिश्ता।
धागे उलझते,वो सुलझातीं,

बारी से फंदा छूटे, फिर से बनातीं।
हर फंदे में छिपा एक एहसास,

स्नेह, वात्सल्य, दुलार और विश्वास।
जब पहली बार स्वेटर पहनाया,
सर्दी का एहसास दूर भगाया।
स्वेटर में नानी की खुशबू और गर्माहट का साथ,

जैसे गर्माहट की गोद में बिताई रात।
अब नानी नहीं, पर स्वेटर है पास,
हर ठंडे मौसम में खास अहसास।
उन के धागों में बसी है उनकी कहानी,

आज भी बोलती है नानी की जुबानी।

मुझे तेरी तलाश है

मुझे तेरी तलाश है!
सर्द रातों में गुनगुनी सी पास है,
खामोशी में गुफ्तगू की लफ्ज़ हैं,
जो आंधियों में दीप का प्रकाश है,
जो अंधियारी रात की जो चांद है।

मुझे तेरी तलाश है!
वो जो ख्वाबों में आके दस्तक दे,
वो जो अधूरे स्वप्न मुकम्मल करे,
जो अंधियारी रात की हो रौशनी,
खिले गुलाब सी महक खुशबू है।

मुझे तेरी तलाश है!
जो सन्नाटों को फिर से साज़ दे,
जो दिल को ऊंची परवाज़ दे,
जो बिखरे रंगों को इक रूप दे ,
जो टूटे हुए मन को फ़िर जोड़दे।

मुझे तेरी तलाश है!
जो हवा सी हर तरफ मौजूद है,
पर फिर भी कहीं तू गुमनाम है,
जो समय सी अनवरत चलती रहे,
पर हर लम्हे में ठहर के बात करे।

मुझे तेरी तलाश है!
एक तूफ़ान में आशा किरण जो है,
जो मेरी रूह को फ़िर से थाम ले,
मुझे तलाश है एक ऐसे दोस्त की,
जो तुझको सिर्फ मेरा ही नाम दे।

दिसंबर का महीना

दिसंबर का महीना आते ही संग ठंडी रातें लाता है।
धुंधली सुबहें, धीमी रातें, सब गली मुहल्ले शांत होते हैं।

ओस की बूंदें सुबह पत्तों पर, मोती-सी चमक देती हैं ।
आंगन में धूप की चादर, हल्की- हल्की आती है।

सर्द हवाओं के साथ बहते लम्हे चुप चुप कुछ कहते हैं।
आने वाला नया साल भी, खुशियों की दस्तक देता है।

कंबल में लिपटी बातें मीठी, प्यार भरी कहानी सुनते हैं।
दिसंबर की ये ठिठुरन सर्दी, हर दिल को प्यारी भाती है ।

मेरा राष्ट्र : भाग्य विधाता

मेरा राष्ट्र ही मेरा गौरव है, यही मेरी पहचान और अभिमान बनाएं,
कण कण में बसी राष्ट्र की तहज़ीब और मर्यादा को महान बनाएं।
वो भूमि जहां पीर, ऋषि,मुनियों ने सर्वधर्म सद्भाव के गीत गाए,
गंगा-जमुना की अद्भुत तहज़ीब जिसने सौहार्द के दीप जलाए।
हर पर्वत, हर नदी, हर वन, हर गांव व शहर का संदेश लाएं।
मिलके विकास के पथ पर चलकर, राष्ट्र के सपनों को साकार बनाएं।
यह मिट्टी है जहां सर्वजाति,सर्वधर्म के वीरों का खून बहा है।
ये धरा है जहां कण कण में देश की संप्रभुता आज़ादी का जुनून रहा है।
तूफानों से लड़कर भी यह राष्ट्र सदा अतुल्य, अडिग रहा है।
विपदाओं, बाधाओं को जीतकर खुद को विजयी कहा है।
नारी सम्मान, धर्म, पंथ, संस्कार व ज्ञान की जहां महिमा है।
मेरा राष्ट्र है जहां सहिष्णुता, एकता, बंधुता, न्याय, मूल्य करुणा है।
हम इसके भाग्य विधाता, प्रहरी बनकर सद्भाव की धारा लाएं।
हमारे पुरुषार्थ से ही सौहार्द, एकता,विश्वास की नई धारा जगाएं।
मिलकर हम साम्प्रदायिक वैमनस्यता द्वेषता व कटुता को भगाएं।
विश्व के कोने कोने में प्रेम,शांति संदेश से देश का मान बढ़ाएं।
मेरे राष्ट्र, मेरे अभिमान को ख़ुद के कर्मों से स्वर्णिम बनाएं।।

कोहरे में खो गए

कोहरे में खो गए कुछ रास्ते पुराने,
जहां कभी चलते थे कदम दीवाने।
धुंध के परदे में छिपा अजीब सफर,
हर मोड़ पर कोहरा, इंतजार है मगर।

रोज़ाना जाते थे उन सड़कों में कहीं,
अब आंखें भी न पहचानी उन्हें कहीं।
हर पेड़ का पत्ता चुपचाप खड़ा वहाँ,
कोहरे के घने साये में अदृश्य जहाँ।

कुछ जल्दबाजी थी कोहरे में घुली,
हवा से बातें करती गाड़ी भी रुकी।
मन में रहता गाड़ी की स्पीड का डर।
मगर कोहरे ने डाल दिया मनमें भ्रम।

चाहत है कि सूर्य फिर प्रकाशित हो,
धुंध हटे जिंदगी की उड़ान वापस हो।
शायद कोहरे की ये भी बात खास है,
छुपादे पर-बुराई को, सबसे खास है।

भौतिकता की चकाचौंध में हम

भौतिकता दिखावे की चकाचौंध में,
खो गए हैं हम ख़ुद अपने ही भ्रम में।
पैसों की झलक व शौहरत का शोर,
दिल में शान्ति अरमान रहे कमजोर।

बुनते सपनों के महल, शीशे के घर,
हर कोना है बस दिखावे से भरपुर।
रिश्तों की गर्मी कहीं गुम गई हमसे,
खुशियों की लहरें भी थम गई हमसे।

चमकते सितारे पर है खाली गगन,
मन के सवालों का नहीं कोई शर्म।
क्या पाया है, क्या खोया है हमने,
इस दौड़ में खुद को खोया है हमने।

लौटना होगा हमे सादगी का जीवन,
जहां रहता है अपने दिल का सुकून।
जिंदगी का असल अर्थ समझें हम,
भौतिकता नहीं सत्यता अपनाएं हम।

हमारा संविधान

संविधान का दीप जलाकर, हम अधिकारों को सच में बतलाएं।
लोकतंत्र की इस धरती पर, न्याय और कर्तव्य को अपनाएं।

समानता के स्वर हों ऊंचे, हर मन दिल में सम्मान जगाएं।
संविधान की अद्भुत शक्ति से, हम एक नया विहान दर्शाएं।

अधिकार और कर्तव्य बोध का नैतिकता परम ज्ञान सिखाएं।
संविधान का मर्म समझकर, सब पंथ अपना धर्म निभाएं।

अनेकता में एकता की धारा,भारत राष्ट्र की पहचान बनाएं।
संविधान की बुनियाद पर हम, हर सपना साकार बनाएं।

हम सब संकल्पित होकर इसका आदर सम्मान सदा बढ़ाएं।
महान लिखित संविधान पाकर के, भारत देश को महान बनाएं।
न्याय, बंधुत्व, स्वतंत्र व समताभाव से, संविधान की आत्मा बचाएं।

कृष्ण और सुदामा की दोस्ती प्रेम का सागर

धन का मोल होता नहीं प्रेम से कहीं बड़ा,
सच्ची मित्रता का भाव अपार दुःख में साथ खड़ा।
कृष्ण और सुदामा की दोस्ती थी अद्भुत और अतुल,
देती है जीवन में दोस्ती को राह सदैव अनमोल।

गरीब सुदामा, दरिद्र पर था वो सचरित्र,
मित्रता में वह हृदय से था बहुत पवित्र।
अंतर धन वैभव का, पर नहीं था मन का,
मित्रता के संबंध में अपार प्रेम था पवित्र।

दरिद्र सुदामा चला दोस्त की द्वारका नगरी,
प्यार से लिए हाथ में मुट्ठीभर चावल की गठरी।
कृष्ण मित्र का ध्यान, हृदय में था उमंग प्रेम,
हर कदम पर था दोस्ती और अपार भाव प्रेम।

कृष्ण ने देखा दरिद्र सुदामा अपने द्वार,
वो भूल गए वैभव और राजा का भार।
मन में उमंग और थी चक्षु में अश्रु धार,
गले लगा दिया, फैला के हाथ बारंबार।

सुदामा के अतुल्य प्रेम से हुआ मन प्रफुल्लित,
हृदय में उमड़ा मित्रता का भाव और कर्म अद्भुत।
विपन्न मित्रता को दिया सुख का अतुल्य संसार,
मित्रता को कर दिया अमिट,अजर व अमर।

संदेश देती यह कथा मित्रता, प्रेम और विश्वास,
जीवन की व्यथा में सच्ची मित्रता देती प्रकाश।
धन-संपत्ति कुछ नहीं पर बस जुड़े आपसी मन,
कृष्ण-सुदामा की कथा दे मित्रता को जीवन।

ज़िंदगी के सफर में

ज़िंदगी के सफर में बस चलते रहे,
ग़म व खुशी को साथ निभाते रहे।
कभी धूप और कभी छांव की राह में,
खुद को हर हाल में बस ढलाते रहे।

कहीं कांटे मिले,कहीं फूल भी खिलें,
ज़िंदगी के मोड़ पर,सबक जो मिलें।
गिरकर फिर से उठे और सीधे चले,
दर्द व ग़म को सदा हंसते हंसते सहे।

हर सुबह जो उठे, नई उम्मीदे मिले,
दिन में मेहनत करे, नाम रोशन करे।
रात में सपनों के दीपो को रोशन करें,
मिले या ना मिले,रब का शुक्रिया कहे।

सफर लंबा रहे, मंज़िल आसान नहीं,
रखे हौसला, मुस्तकिल ईमान के संग।
ज़िंदगी का यह सफर बहुत अनमोल है,
हर पल को जीते रहे और कद्रदानी करे।

हाल-ए-दिल

रात गहरी अंधियारी है पर ये खामोशी चुपचाप कहती है,
दिल की हर धड़कन में तेरी तस्वीर गुनगुनाती कहती है।
जुबां खामोश, दिल की जुस्तजू, फिर भी शोर कहां संभलता है?

हर अरमां के आहट में छुपा है कोई तेरा नया पैगाम,
हर ख्याल तेरा गूंजे जैसे कोई सजाया सा अरमान ।
तू जो पास नहीं, फिर भी मेरी साँसो की खुशबू में है,
तेरी ख़ुशी के रंग भी अब हर एहसास के बाजु में है।

चाहूं कह दूं सब कुछ, मगर लफ्ज़ नहीं मिलते हैं,
तू समझे या न समझे, दिल के अफसाने बदलते हैं।
ये इश्क़ का सिलसिला है, कोई खेल तो नहीं है,
जो तुझसे जुड़ा, उससे रूह तो कभी जुदा नहीं है।

तो बस यूं ही दिल से निकलती है ये बेजुबान गुफ्तार,
तेरे बिना अधूरी है ये ज़िंदगी की ये मुसलसल रफ़्तार।
अगर सुन सको तो सुनो ये मेरे हाल ए दिल की सदा,
तेरे लिए, हाल-ए-दिल की गहराई से जुड़ी है मेरी दुआ।

विस्मरणीय यादें

यादों की धुंधली तस्वीर में बसे हैं पल,
समाहित हैं जिसमें जीवन की हलचल।
कभी खुशी मुस्कान, कभी अश्रु के धार,
दिल में आता है यादों का अतुल्य संसार।

गुज़रे लम्हे, वो दिलकश मासूमियत,
दोस्तो के साथ की अनजानी शरारत।
मित्रों के घर के आंगन में वो हिमाकत
बचपन की आकांक्षा व सपनों की इबारत।

बर्षा की फुहार से भीगाती वो बरसात,
छुट्टियों में दिनभर की अविरत शरारत।
माँ की ममता,पिता की धाक व डांट,
यादों में रह गया उनका प्यार व सपोर्ट।

हर याद में छुपा है एक जीवन दर्शन,
सिखाती हैं ये सुख-दुख का संगम।
ज़िंदगी की राहें,चाहे कितनी हो दुर्गम,
यादें बनाती हैं जीवन का एक दर्पण।

अविस्मरणीय लम्हों में कृतज्ञ रब के हम।
क्योंकि यादें होती हैं एक खजाना हर दम।

समय का एक क्षण

समय का एक क्षण होता हैअनमोल,
शक्ति से जीवन को बदलता बेमोल।

क्षण भर की हँसी, एक क्षण की खुशी ,
एक क्षण में मिटे आस, दर्द भरा त्रास।
प्रति क्षण बहता है है नदियों का जल,
भावुक आंखो से निकले आंसू उस पल।

जो पल जी लिया, वही सच बन जाता,
आने वाला हर पल, स्वप्न ही नज़र आता।
यह क्षण सहज लो, यही ज़िंदगी का सार,
इसी में छुपा हुआ है, जग का सत् आधार।

समय का क्षण, मत जाने या खोने दो व्यर्थ,
इसमें है संचय होता है सुख दुःख का अर्थ।
जियो जी भर कर, बनाए इसे अहम खास,
चूंकि समय का क्षण है जीवन का विश्वास।

क्या कहता मिट्टी का दीपक

सुनो, मैं मिट्टी का दीपक है, जलता है, पर बुझता भी है।
प्रकाश का दूत मैं बनता, अंधियारे से हर घर लड़ता।

सादगी मेरी पहचान है, मिट्टी से ही मेरा मान है।
ना अभिमान, ना कोई फरमान, बस देता प्रकाश समान अविराम।

खुद जलकर प्रकाश फैलाता, हर कोने में प्यार बसाता।
पर्वत, खाड़ी, मैदान, गली, मोहल्ले, हर जगह प्रकाश छा जाता।

पर क्या मानव तूने कभी सोचा है उसका अंत कैसा होता है?
जिस मिट्टी से जन्म लिया,उस मिट्टी में ही मिल जाता है।

संदेश है दीपक के बलिदान का, सफर है जीवन के कल्याण का।
त्याग,तपस्या, में मिट जाना, धर्म है दीपक के बलिदान का।

जीवन से ईर्ष्या,वैमनस्य व कटुता त्यागो, सौहार्दता को सबमें फैलाओ।
मिट्टी सा सरल बन जाओ, दीपक सा जीवन बिताओ।

जीवन के हमसफ़र

तुम हो मेरे जीवन के गीत, हर सुबह और हर शाम का संगीत।
तुमसे रोशन मेरी हर राह, तुम्हारे संग, हर दुख हो बेपनाह।

जैसे चाँद और तारे के बिना अंधेरी होती है रात,
तुम बिन अधूरी और अंधियारी मेरी जीवन की हर बात।
तुम संग कदम कदम पर सदा साथ चलने का वादा,
खत्म हो जाता ग़म और हो जाता आगे बढ़ने का दृढ़ इरादा।

तुम से चलता हर खुशी का पता, तुम से दिल का हर सपना सजा।
जीवन के हमसफ़र बनकर हर लम्हा साथ निभाया,
जीवन की राह के हर मोड़ पर हौसला साहस बढ़ाया।

जीवन के हमसफ़र में साथ तुम्हारा, हर ग़म को हराए,
और मंद मंद मुस्कान से तुम्हारी अंधेरों को मिटाए।
जीवन के राही बनकर तुम मेरे नसीब का हिस्सा,
तुमसे होता पूरा एक दूजे के जीवन का किस्सा।

ओस की बूंद सा

ओस की बूंद जैसा यह क्षण भंगुर जीवन,
चमकता, निखरता, क्षण भर का मेहमां।
धूप की किरणों में चमकता जाता झिलमिल,
हवा के झोंकों में अचानक खो जाता प्रतिपल।

ओस कोमलता की प्रतीक, शांत सी, निर्मल सी।
धरती की गोद में गिरकर, जलधारा में मिल जाती।

अहले सुबह का तोहफ़ा, प्रकृति की छवि का दर्पण।
क्षणिक होते हुए भी,जीवन का पाठ सिखला जाती।

सिखलाता है जीना,हर पल व लम्हे को अपनाना।
खोने से पहले, अपनी चमक को दूसरों को लुटाना।

रात और चाय

रात के शान्ति में, जब चाँद की रौशनी चमकाए,
रात की खामोशियां, दिल में गुनगुनाए।
किताबों के अध्ययन और पन्नों की सरसराहट,
सोच के समंदर में, स्वप्न और ख्वाबों की घबराहट।

रात में चाय की प्याली, यदि पास आ जाती,
थकी आँखों को एक नई ऊर्जा दे जाती।
चाय की चुस्की के साथ होते कुछ अधूरे ख्वाब,
चाय के हर घूँट के साथ बनते नए नए जवाब।

सितारों की छांव में, शब्दों के जाल सजते हैं,
रात के अंधेरों में, नए पुराने सपने जगते हैं।
चाय की प्याली के संग अध्ययन का सफर,
रात कह उठती “चल, थोड़ी मेहनत तो कर।”

ना भूल सकने वाला लम्हा

वो लम्हा, जब और जहां समय जैसे थम सा गया था,

या सांसों की अपनी तेज़ गति या रफ़्तार रुक सी गई थी,

या आँखों ने एक यादगार तस्वीर भी बना ली थीं।

एक क्षण,जो युगों युगों में की तरह गहरा हो गया था,

जहां सारे गढ़े शब्द और लफ्ज़ बेमानी से हो गए थे,

या जहां सारी कैफियत और एहसास बोलने से लग गए थे।

वो पहली बारिश के पल की ठंडी फुहार,जो रूह में समा गई थी,

या वो बिछड़ते हुए अविस्मृत पल में अलविदा की आवाज़ थी,

या जो दिल पर अमिट विरह वेदना के निशान छोड़ गया था।

वो पल, जिस दम रंजोगम के टप टप करते आँसू गिरे थे,

या विरह के दर्द ने चुपचाप दस्तक और मार्मिक सदाएं दी थी,

या जिन्हें बार-बार मिलन की आरज़ू और तमन्ना होती थी।

वो अविस्मरणीय कल जो कभी भूलाया नहीं जा सकता था,

या विदाई का वो लम्हा,जो दिल के एक कोने में ठहर सा गया था,

या जो कल की याद बनकर प्रतिपल मेरी स्मृति को छूता था।

स्वप्नदर्शी

स्वप्नदर्शी वो, जो देखे सपने और पूरा करे ख्यालो ख्वाब,
उसकी आंखों में सजा होता एक दृढ़ विश्वास बेहिसाब।
उसकी नही ठहरती हैं प्रत्याशा और न थमता सफर,
हर पल ढूंढता हैं नये क्षितिज व आकांक्षा का असर।

चमकती धूप और धधकती गर्मी में वो बारिश ढूंढ लाता हैं,
अंधेरे में भी उम्मीदों और आशा का दीपक वो जलाता हैं।
राह की ठोकरों, अड़चनों को वो मंज़िल का सबक मानते हैं,
गिरकर भी जो उठने की जज़्बे की रूह को पहचानता हैं ।

स्वप्नदर्शी, तेरी हिम्मत और हौसला सदा सलामत रहे,
तेरे सपनों का उसका चाँद हमेशा ऊंचा व रोशन रहे।
हर कोई राहगीर जहां ठहरकर एक रोशनी का दीप चुने,
अपरिचित व अनजान राह के जोख़िम के मर्म को पहचाने।

स्वप्नदर्शी वो जादूगर जो रेगिस्तानी धरा में पुष्प खिलाए,
वो वही पथिक और मुसाफ़िर जो अनेक बाधाओं पर काबू पाए।
उसका स्वस्वप्न और हौंसला हैं उसकी अहम पहचान,
स्वप्नदर्शी को सदा उसकी ऊंची उड़ान और परवाज़ को सलाम!

मंजिल का राही

है, पथ के राही मंज़िल तू पाना,
हर मोड़ पर नया सबक सीखना।
राहों पर तू अविरत चलते रहना,
स्व स्वप्न का दीप तू वही जलाना।

दूर क्षितिज को लक्ष्य बनाना,
तूफानों से तू मत घबराना।
हर विकटता से सबक़ लेना,
राहों में तू खुद ही आगे बढ़ना।

हर पथ पर तू चुनौती लेना,
मन को तू हारने मत देना।
ठहर कर तू दिग्भ्रमित न होना,
मत घबराना, दृढ़ निश्चयी रहना।

सत्य, धैर्य और होंसला रखना,
अंधियारी राहें तू रोशन करना।
पथ का पथिक बनकर चलना,
मंज़िल को तू हासिल करना।

खुला समर्थन और तेरा साथ

तू मेरे जीवन का साथ है, हर सुख- दुख में मेरी आस है।
तेरी मंद मुस्कान से खिलता हूँ, तेरी ख़ुशी से प्रसन्न होता हूँ।

गर राहों में अंधेरा छा जाए, तेरी झलक से रौशनी पा जाऊं मैं।
तेरे बिन जीवन अधूरा लगता है,तेरा साथ ज़िंदगी पूरी करता है।

हर पल तेरे संग जीता हूँ मैं, तेरी दुआओं में खुद को पाता हूँ मैं।
मेरा हर ख्वाब तेरा अहसास है, तू ही है मेरे जीवन में विशेष है।

तेरे बिन हर पल सूना है, तेरे साथ रहने से ही पूरा सपना है।
तू ही मेरे जीवन का विश्वास, तेरे बिन नहीं है कोई मेरे साथ।

रब से दुआ

जब राह मुश्किल से घिर जाती हैं, उम्मीदें टूट जाती हैं,
खुदा की रहमत फिर बरसती है, वो मदद का साथ बनती है।

नज़र नहीं आता पर पास है रब,हर सांस और आस में है वो।
बिन मांगे बनता सहारा है रब, गिरने से पहले थाम लेता है वो।

अंधेरों में रौशनी बनाता है वो, उम्मीदो की किरण को जगाता है वो।
हर मुश्किल में पास होता है वो, हर कठिनाइयों में भी सब्र देता है वो।

हर मर्ज मिटा देती रहमत उसकी, उम्मीदों को खिला देती करामात उसकी।
ग़ैबी मदद का यह हाल है उसका,बेजान को भी जान देती रहमत उसकी।

तेरे सपनों को नई परवाज़ मिले, ज़िंदगी की राह में अंदाज़ मिले।
जो भी तू चाहे वो पा सके वो, गर रब की मदद सदा साथ चले।

तेरी कोशिश में मेरी दुआएँ हैं, तेरी जीत की दिल से सदाएँ हैं।
हर क़दम पर तू भरोसा रख, तू खुदा पर यक़ीन व ईमान रख ।

गिरकर उठने का हौसला रख, अपने अंदर वो शमा सा उजाला रख।
तेरे हर सपने को अंज़ाम देगा वो, हर काविश को सफ़ल करेगा रब।

तेरे ईमान को है मेरा सलाम, तेरी मेहनत को भी मेरा प्रणाम।
तेरी हिम्मत को है मेरा साथ, तेरी कामयाबी है खुदा पर विश्वास।

वो आखिरी मुलाकात

वो आखिरी मुलाकात, जिसमें कुछ कहती उसकी निगाहें।
छुपा नही सका अपना दर्द, वो बिछड़ने की उसकी अदाएं।

वो खामोश, शांत पल, ठहरी हुई सी शाम,
लफ़्ज़ों में बंधी हुई, एक अनकही दास्तान।

जाने क्यों कांपते हुए हाथ और पैर, वो कांपते लम्हें ।
जाने क्यों दिल में बसे ग़म, जाने क्यों वो सहमें हुए सदमे।

उसकी आँखों में बसी वो शबनम सी नमी की कतार,
दिल में बसी उसके बिछड़ने की अनकही यादगार।

हर लफ़्ज़ कहता था, फिर कभी उससे नहीं बिछड़ना।
टूटी सी उम्मीद कहती कि जीवन का साथ सदा निभाना।

वो कैफ़ियत, वो एहसास, वो लम्हा था खास।
वो आखिरी मुलाकात बस, आज भी है मेरे पास।

कुछ यादें मुलाकातें हैं, जो कभी भुलाई जाती नहीं,
कुछ बातें हैं, जो दिल ओ दिमाग़ से मिटती भी नहीं।

बस वही आखिरी मुलाकात, जिंदगानी बदल गई उसके साथ।
कहने को तो लास्ट मुलाक़ात, पर दिशा व दशा बदल दी ख़ास।

बच्चे होते दिल के सच्चे

बच्चे होते दिल के सच्चे, झूठ कभी नहीं बोलते।
जो बात उन्हें सही लगे, वो बात सब से कह देते।
उनकी आँखों में सपने हैं, हर रंग उनके अपने हैं।
मासूमियत होती प्यारी, मन में नहीं कोई खोट उनमें।
सपनों की दुनिया में रहते, हर गम को चाहे वो सहते।
चंचलमन के अभिव्यक्त न्यारे,मुश्किल में दिखे प्यारे।
बच्चों से हम इंसान सीखें, दिलो को कैसे रखें उजियारे।
हर दिन जैसे नया सवेरा, हर पल में हो बचपन का बसेरा।
बच्चे होते सदा दिल से प्यारे, दुनिया में चमके जैसे चाँद सितारे।
बच्चे हैं रब की अद्भुत कृति, उनके बिन कभी नहीं दुनिया सच्ची ।

तितली और फूल

तितली उड़कर के आती, खुशबू सत पाने फूलों का संग ढूंढ़ने।
पंखों में रंगों का सागर पाकर चलती जाती इन्द्रधनुष उतरने।

फूल मुस्काया और खुशबू ने ताजगी से किया सबको हर्षित।
तितली ने पंख फैलाए और नृत्य से किया पुष्प प्रफुल्लित।

हर फूल है खुश्बू का उद्गम, तितली व फूल का अद्भुत संगम।
दोनों ही मिलकर रचते प्रकृति का सुंदर मनोरम चित्रण।

तितली व फूल का संगम में दोनों का बंधता रिश्ता नाता।
प्रकृति के इस सुंदर रूप में खुशियाँ बनती आहिस्ता आहिस्ता।

वो बचपन की यादें

वो बचपन की वो यादें, जो कभी नहीं भूला पाते,
नन्हे से दिल में, ढेर सारे सपने भी बुनते जाते।
माँ के आंचल में दुनियां सुरक्षित व प्यारी लगती,
गिरने व लड़खड़ाने पे मां की बाहों को पकड़ लेते।
दोस्तों के साथ वो कंचो से मोहल्ले में खेलना होता,
पेड़ पर झूलों से हंसते-खिलखिलाते व शोर मचाते।
मिट्टी के खिलौने व कागज की पतंगें उड़ाया करते,
नन्हीं खुशियाँ से गिरने पड़ने का दर्द भुलाया जाता।
जादू जैसे वो बुने सपनों के सफर में चलते जाते,
दिन की चहल से मज़ा व रात के अंधेरे में डर जाते।
बारिश की बौछारें वो कागज़ की नाव उत्साहित करती,
वो अविस्मरणीय यादें आज दिल में गूंज कर बस जाती।
वो बचपन खो गया पर यादें हर पल दिल में समा जाती।

रिश्ता क्या कहलाता है?

रिश्ता वो संबंध कहलाता है, जो दिलों को बांधता है,
दूरियों के फासले, बस पलभर में पाटकर मिलाता है।

न रंग, नस्ल, जाति, धर्म और क्षेत्र का भेद जनता है,
यह तो बस भावुक एहसास है,जो दिल में ही बसता है।

मां की ममता में बसता है, पिता की अनन्य छाया में,
भाई की हिफाजत में, बहन की दुआ, पत्नी के प्यार में।

दोस्त की दोस्ती में, साथी के संग तकरार व इकरार में,
रिश्ता संवेदना और भावुकता के हाथों हर रूप में बसता।

कभी हंसी और खुशी में ढलता, कभी भावनाओं में बहता,
कभी नाराजगी में छुपता तो कभी खामोशी में चुप रहता।

रिश्ते का अपना एक अनूठा रंग कभी खुशी व ग़म होता है,
कभी धूप जैसा गर्म चमकता, कभी छांव सा ठंडक देता है।

रिश्ता नाम ही नहीं चाहता अपितु बंधनों की जान बनता है,
एक-दूजे की भावना समझना उसका सही अरमान होता है।

रिश्ता वो जज़्बात है जो दिलों से जुड़े हर बंधन को बांधता है,
कभी खुशी से खिलता और कभी आंसुओं में छलक जाता है।

रिश्ता वो दर्पण है, जो सत्यता व विश्वास का अर्पण होता है,
यह मां रूपी ममता,पिता का सहारा, बहन का प्यार होता है।

रिश्ता हर रूप में बसता और दुआओं में सदा ज़िक्र होता है,
कभी खामोशी में छुपता कभी नाराजी में परेशान करता है।

सच्चा रिश्ता ही हर परेशानी में अडिग साथ खड़ा रहता है,
अतः रिश्तों की अहमियत व महत्त्व को समझना होता है।

वरना संबंधों की डोरी संवेदनशील डोरी पल में टूट जाती है,
अंततः रिश्ते ही हैं जो जीवन का रहस्य, अर्थ और रंग देते हैं।

राजस्थान की कविता

रेत के समंदर में हर दिशा में बिखरे शौर्य की निशानी।
केसरिया रंग से रंगी ये धरती, वीरों की कहानियों से पहचानी।

मरूभूमि का गूँजता संगीत रंगीली पगड़ी और घूमर यहां की निशानी।
किले, महल और हवेलियाँ प्रदेश की बढ़ाते हैं सबकी हैरानी।

संस्कृति के रंग में रमकर सबको सराबोर करता एक राजस्थानी।
कभी कुंभलगढ़ की दीवारें,कभी जैसलमेर की सोनल गढ़ी की कहानी।

मरुधरा की मिट्टी जोश, हिम्मत व अद्वितीय शौर्य से पहचानी।
यह धरा है सपनों की, वीरों के वीरता हौंसला और अपनापन की ।

किले, महल, हवेलियाँ, शान शौकत की अद्भुत कहानी,
थार के रेगिस्तान की हवाओं में संगीत, ऊंटों की मस्तानी।

जोधपुर सूर्य नगरी, जयपुर गुलाबी नगरी की कहानी।
केसरिया बाना, माटी की खुशबू, और कला की निशानी।

मेहमानों का दिल से स्वागतम के जज़्बे की कहानी।
राजस्थान ने इतिहास में छोड़ी अमिट छाप व निशानी।

वीरों की धरती न कभी रुकी, कभी न थकी जवानी।
राजपूताना कहलाता देश की अद्भुत विरासत व अमर निशा

रहस्यमय दृश्य

धुएं व परछाइयों में लिपटी काली रात,
घड़ी की टिक-टिक में छुपे राज की बात।
कुछ सन्नाटा सख्त कदमों की आहट,
दरवाजे की चरमर में छुपी है हल्की आहट।
चांदनी रोशनी में मद्धम प्रकाश के दीये का प्रकाश,
हल्की हवा में डर और खामोशी का दफन राज।
कौन है जो इन गलियारों में चुपके से चलता?
किसके पास है वो राज़ जो अपने पास रखता?
हर अंधेरी परछाई में छुपा है एक अनजाना खेल।
गहरे अंधेरे में छिपा है रहस्यमय राजों का मेल।
धुंध की चादर रात की चाल, छिपा अदृश्य जाल का मेल।
सन्नाटे में कोई बसी कोई चाल, हर कोने में छुपा रहस्य खेल।
दरवाजे पर दस्तक, हवा की सरसराहट में छुपी दास्तान।
धुंध में बसा है एक रहस्य, कदमों के आहट पर हर कोई अंजान।
सवालों के घेरे जवाब कहीं दूर, हर मोड़ पर जैसे इंतजार का नूर।
कौन है जो छाया में छुपा-सा खड़ा?
किसके इशारे पर ये सुरूर।
बस खोजता मन, गहरी सोच में गुम,
रहस्य के साए में बसा एक भ्रम।

सांत्वना

जब मन हो भारी, बोझिल से सपने,
अंधेरों में डूबे हो सारे जवाब दे अपने
तब धीरे से आती एक मीठी ठंडी हवा,
रूह को तसल्ली देती दिलासा सी दवा।

सांत्वना के लफ्ज़ जैसे मलहम लगे,
हर पीड़ा दर्द ख़ुद ही खुद में सहे।
एक नरम स्पर्श, जीवंत सा एहसास,
अंधेरों में जलता उजाले का प्रकाश।

आँसुओं को पोंछती मुस्कान सजाती,
पीड़ा युक्त दिल को धीरे से सहलाती।
बताती है कानों में, “तू सिर्फ अकेला नहीं,
तेरे साथ हूँ मैं, तेरे नयन अब बेबस नहीं।”

सांत्वना का यह मधुर प्यार सा संयोग,
हर मुश्किल में बनता ईश्वर का प्रयोग।
थामे रखता हमें नहीं होने देता वियोग,
पीड़ित, दर्दयुक्त दिल में सुकून का योग।

संयोग

संयोग की बेला, दो आत्मा का आलिंगन होता है,
किस्मत की रेशमी डोर से बंधा ये जीवनहोता है।
चाँदनी रातों में, जब एक दूजे के सपने खिलते हैं,
अंतर मन की गहराइयों में, रंगीन लम्हे छिपे होते हैं।
तारों की झिलमिलाहट में जैसे बातें करती है,
हर पल में छिपे नए एहसास की धड़कन होती है।
कभी टकराती नजरें जैसे जादू की छड़ी होती है,
दिल की धड़कन में, बसी प्यार की कड़ी होती है।
संयोग की मिठास मीठा फल मिलता है,
सुख-दुख में संग रहे एक-दूसरे का साथ मिलता है।
जिंदगी की इस राह में, हमें साथ चलना होता है,
संयोग के बंधन में सपनों के ताने बाने बुनते हैं।
संयोग का ये रिश्ता वियोग में नहीं होता है,
संयोग के संग हर लम्हा प्रेम से जीते हैं ।
संयोग की धारा,सदा जीवन में बहती है,
दो आत्माएं मिलती एक साथ चलती हैं।
खुशियों और दुख में साथ निभाती है,
संयोग की शक्ति, जीवन को अर्थ देती है।
मिलने की वो घड़ियाँ यादें बन जाती हैं,
साथ बिताए पल, जीवन को सुंदर बनाती हैं।
संयोग की बातें दिल की गहराई से आती हैं,
जीवन की सच्चाई, संयोग से ही मिलती हैं।
संयोग के पथ में, हम सब साथ चलते हैं,
जीवन पथ पर चुनौती का सामना होता हैं।
परन्तु संयोग की शक्ति हमें जीवन की हर
मुश्किल को पार करने की ताकत देती है,
संयोग की भावना सच्ची खुशी भर देती है।
संयोग की अनुभूति जीवन समृद्ध बनाती है,
दो आत्माएं मिलकर जीवन को बनाती हैं।
संयोगवश यात्रा में जीवन का दर्पण होता है,
संयोग की भावना जीवन में खुशी भरती है।

वियोग ( विरह )

चले गए प्रिया दूर कहीं तुम, वियोग की जुदा राह कठिन सी लगती है।
छोड़ गई यादों का साया, छुपी हुई मुस्कान उभरी सी लगती है ।
दिन व रात में बदल गया हर पल अब मुझे बेगाना सा लगता है।
तुम्हारी विरह की गूंज में मेरा यह जहां वीराना सा लगता है।
वियोग में छिपा है दर्द तुम्हारा हर धड़कन में नाम छपा लगता है।
तुम्हारे विरह का अहसास जैसे पतझड़ पेड़ वीरान हुआ लगता है।
आसमान के असंख्य सितारे उन ख्वाबों को संजोये भरे लगते हैं।
अगर तेरा साथ न हो तो सपने भी अब अधूरे से लगते हैं ।
यादों के स्मृतियों में प्यारी बातें, हर दिन तन्हा बीता सा लगता है।
यादों से लबालब तेरी बातें भी बिन तेरे अंधियारी सी लगती है।
वियोग व विरह के इस सागर में जीवन वीरान सा लगता है।
तेरे बिन प्रिया इस जीवन को चाँद का ग्रहण सा लगता है।
तेरे बिन जीवन का पथ भी नामुकम्मल सा लगता है।

बढ़ के चल बढ़ के चल।।

बढ़के चल बढ़ के चल, प्रकाश पुंज बन के चल।
क़दम से क़दम बढ़ा, ज्ञान की मशाल लेके चल।
अज्ञानता को दूर कर, ज्ञान का विकास कर।
प्रकाश मान हो चहुं दिशा, सत्य कर्म ही तू कर।
डर नहीं तू थक नहीं, शनै कदम बढ़ाके चल।
विकार मन के दूर कर, पुकार सिर्फ़ दिल की सुन।
प्रचंड तेजवान बन, ज्ञानवान और धैर्यवान बन।
अदम्य ओजवान बन और साहसी जवान बन।
समाज का कर्त्तव्यवान बन, शौर्य कीर्तिमान बन।

सौहार्द साहसी तू बन, कौमी एकता का दूत बन।
इंसान की आन बान शान का, मान स्वाभिमान बन ।।

साहसिक अनुभूतियां

ज़िंदगी के पथ पर साहसिक अनुभूति का जोश,
अनुभूतियों की धारा में हुआ मेरा मन मदहोश।
नई चुनौतियों का सामना करने का गुरूर और सुरूर,
अपने सपनों, इच्छाओं को पूरा करने साहसिक जुनून।
नई चुनौतियों का सामना करने की ताकत, सपने पूरा करने की हिम्मत।
साहस की अग्नि में जलने की प्रत्याशा,
अज्ञात यात्रा को पूर्ण करने की अभिलाषा,
दुर्गम कठिनाइयों का सामना करने की हिम्मत,
ख़तरों से अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की ताक़त।
अनुभूतियों की गहराई में डूबकर साहसिक पराकाष्ठा को छूना।
जीवन की राहों में आगे बढ़कर साहसिक अनुभूतियों को जीना।
यात्रा का आगाज़ अनजान राहों पर साहस की आग में दिल धड़कना।
हर कदम पर आत्मिक अनुभव को झंकृत करता जीवन का अर्थ खोजना।
ऊँचे पहाड़, गहरे समुद्र, विस्तृत मैदान, जंगलों की गहराई नापना।
हर जगह, एक नया सबक, जिंदगी को समृद्ध बनाना।
अनुभव की धारा की यात्रा में मिले अनेक लोग उनकी कहानियाँ,
मेरे दिल को छू गईं, संस्कृतियों का मेल, और परंपराओं की स्मृतियां।
यात्रा की अनुभूतियाँ दिल में बसा एक अनमोल खजाना।
जीवन की असल कीमत मैंने उस यात्रा में पाई, अनुभव की आँखों से देखना।
साहस की आग में जलने की इच्छा,
अज्ञात की ओर बढ़ने की उड़ान।
खतरों का सामना करने की हिम्मत,
अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की दृढ़ता।
अनुभूतियों की गहराई में डूबना,
साहस की पराकाष्ठा को छूना।
जीवन की राहों में आगे बढ़ना,
साहसिक अनुभूतियों को जीना।
मेरी यात्रा शुरू हुई, अनजान राहों पर
साहस की आग में, मेरा दिल धड़कता था।
हर कदम पर नया अनुभव मेरी आत्मा को झंकृत करता, जीवन का अर्थ खोजता था।
एक नया सबक जिंदगी को समृद्ध बनाता विस्तृत अनुभव की धारा में संजोता था।

चांद तेरी भी क्या बात है

चांद तेरी भी क्या बात है, तू रोशनी का साथी है।
तेरी चमक से जगमगाती है रात, तेरे बिना अंधेरा है।
तेरी खूबसूरती को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता,
तेरी रोशनी से दिल खुशियों से भर जाता है।
तू जीवन का एक अहम हिस्सा है,तेरे बिन जीवन अधूरा है।
चांद तेरी भी क्या बात है, तू रोशनी का साथी है।
तेरी चमक से जगमगाती है रात, तेरे बिन अंधेरा है।
चांद, तू आकाश का राजा है, रोशनी का प्रतिबिंब, जीवन का साथी।
तेरी चमक से जगमगाती है रात, तेरे बिना अंधेरा है।
तेरी खूबसूरती को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता,
चांद, तू प्यार का प्रतीक है,जीवन की खुशियों का साथी।
* चांद की फेज़ के अनुसार जीवन में बदलाव:
पूर्णिमा – जीवन में पूर्णता
अमावस्या – जीवन में नई शुरुआत
चंद्रमा की कलाएं – जीवन में परिवर्तन
चांद की रोशनी से जीवन खिल जाता है,
चांद की खूबसूरती से दिल खुश हो जाता है।

दीपावली पर विशेष सन्देश

चाँदनी में सजता है घर आँगन प्यारा,
दीपों की रोशनी से छा जाता है सारा।
हर दिशा में खुशियों की बयार बहती,
दीपावली का पर्व, उल्लास में भरती।
सुख-समृद्धि का प्रतीक है यह पर्व,
एकता, सौहार्द भाईचारे हो यथार्थ।
दिल में बसी प्रेम व एकता की ज्योति,
जीवन के अंधकार में प्रकाश की प्रीति।

मिलकर करें हम सब ले एक वचन,
बुराई दूर कर करे हम प्रगति रचन।
दीवाली पर प्रण लेकर नव आगाज़ ,
घृणा, द्वेषता को खत्म का हो प्रयास।
मन में बसा हो प्यार बंधुत्व उजाला।
सजती है दुनिया दीपों का प्रकाश,
दीपो की माला सबके लिए विशेष।
उजाला फैलाए अंधकार करे दूर,
सहिष्णुता,सौहार्द बने जीवन का नूर ।

प्रेम की पाती

प्रेम की निगाहों में बसी है जादू की बातें।
ज़रा से ख्वाबों में छुपी हैं अनकही यादें।
जब वो लिखती मुझको घडी थम जाती है।
हर सांस में गूंजती उसकी वो जादुई बातें।

मोहब्बत की आँखों में, बागों की खुशबू है।
हर पल ये एहसास, जैसे कोई ताजगी है।
दिलकी धड़कन बढती जब वो पाती लिखती है।
पाती लेखनी आग से दीवाना जलाती हैं।

मुझे डालती सोच में प्रेमपाती की लेखनी।
छुपी होती इन पाती में एक गूढ़ कहानी।
जितनी मोहक हैं यह उतनी ही ये वीरानी।
दिल की दुनिया की बड़ी सुनसान दीवानी।

प्रेम पाती प्रतीक्षा के साये में जहाँ बंध जाएं।
हर लम्हा साथ प्यार का सपना सजाए।
इस कातिल प्रेम पाती से बंधी उसकी कहानी।
उस पाती में प्यार छुपा व जज़्बे की निशानी।

क़ातिल निगाह

कातिल निगाहों में बसी है जादू की बातें।
ज़रा से ख्वाबों में छुपी हैं अनकही यादें।
जब वो देखती मुझको घडी थम जाती है।
हर सांस में गूंजती उसकी वो जादुई बातें।

मोहब्बत की आँखों में, बागों की खुशबू है।
हर पल ये एहसास, जैसे कोई ताजगी है।
दिलकी धड़कन बढती जब वो मुस्काती है।
कातिल निगाहें आग से दीवाना जलाती हैं।

पर सावधान ये कातिल निगाहों की रवानी।
छुपी होती इन आँखों में एक गूढ़ कहानी।
जितनी मोहक हैं यह उतनी ही ये वीरानी।
दिल की दुनिया की बड़ी सुनसान दीवानी।

कातिल निगाह के साये में जहाँ बंध जाएं।
हर लम्हा साथ प्यार का सपना सजाए।
इस कातिल निगाह से बंधी उसकी कहानी।
उसके प्यार में छुपी है जज़्बे की निशानी।

वेदना विरह की

तारे गिनते रात भर, आकाश को निहारूँ,
विरह के हर पल, कैसे ख्बाब में गुजारूँ।

पलकों पर बसी यादें, हर सांस में उसका नाम,
उसके बिना ये दिल का हाल, जैसे सूखा रेगिस्तान ।

गुलाब की खुशबू जैसे उसकी मुस्कान का असर है,
लेकिन अब बस खालीपन, हर ओर छाया है अंधेर है।

आँखों की नमी बयां करे, बिछड़ने का ये दर्द,
वो है दूर मुझसे लेकिन, दिल में है उसका ही दर्द।

कौन कहता है कि भुला दूँ, उससे जो रिश्ता है,
विरह की इस वेदना में, सिर्फ उसका ही चेहरा है।

हर सुबह की किरण में, उसका चेहरा याद आया,
यादों के सागर में भी उसकी कहानियों को गुनगुनाया।

कब तक रहेगी जुदाई, कब होगा विरह से मिलन,
अब तो बस उसकी राह देखूँ, बस लौट आए सजन।

उत्कंठा

मन में छिपी एक तरंगित उत्कंठा,
ज़िंदगी सुनहरा रंग भरती उत्कंठा।
हर पल बसी एक आशा है उत्कंठा,
सपनों की एक परिभाषा है उत्कंठा।

आसमान में उड़ान भरती उत्कंठा
हर धड़कन में पाए जिंदगी उत्कंठा
खुद से किये है मैंने वादे उत्कंठा,
मुश्किल को आसान करेगी उत्कंठा।

अनजानी राहों का सफर उत्कंठा,
हर मोड़ पर छिपा असर उत्कंठा।
जब तरस रहे हों ख्वाब हो उत्कंठा,
उत्कंठा से देगी नया जवाब उत्कंठा।

हर कौशिश में छिपा प्रीत संगीत,
सपनों की दुनिया में करती है जीत।
मन में जगाए हर रंगीन हसीं ख्वाब,
उत्कंठा से भरी यह जीवन की आब।

आगे बढ़ना नाम ही नहीं है उत्कंठा,
मुश्किल को पार लगाना है उत्कंठा।
हृदय भावना को जी लेना है उत्कंठा
हर पल उम्मीद दीप जलानाउत्कंठा।

तुम हो मेरे प्रिय साथी उत्कंठा,
हर कठिनाई में हो तू मेरी प्रत्याशा।
सपनों की ओर बढ़ चली है उत्कंठा,
तुमसे ही तो है ये जिंदगानी है आशा।

जीवन साथी

हम राही है जीवन के साथी,
मिलकर चलना है साथी।

हर मोड़ पर व हर कदम पर,
साथ देना एक दूजे का साथी।

जीवन की राहों में खुशियाँ,
मिलकर बांटना है साथी।

हर दुख में सहारा देना,
हर सुख में साथी बनना।

हम राही हैं जीवन साथी,
मिलकर चलना है साथी।

साथ चलने से सपने होंगे पूरे,
आज नहीं निश्चित कल साथी।

तुम मेरी धूरी हो, मैं तुम्हारा साथ,
मिलकर चलना है जीवनराह साथी।

तुम मेरी ज्योति हो और मैं प्रकाश
मिलकर पाना है जीवन का आकाश।

एक दीवाना

चाँद की चांदनी में, बैठा था एक दीवाना,
सपनों के महलों में, खोया था वो परवाना।

हवा में लहराते, उसके जज़्बात थे गहरे,
दुनियादारी फिक्र नहीं, मस्ती में थे गहरे।

दिल में धड़कन थी जैसे गिटार की तान,
हर लम्हा जीता जैसे कोई मीठा अरमान।

फूलों की रंगो खुशबू में खोया हुआ था वो,
रंग बिरंग मौसम व रंजोगम को भूला वो।

खुद से बातें करता, सन्नाटों में डूब जाता था,
अंधेरे में उजाले की वह ख़ुद बाते करता।

लहरों की गर्जना में, सुनता है वो गीत,
लोगों से अनजाना, पर रखे सबसे प्रीत ।

सपनों की दुनिया में, वो गाना गाता है सदा,
जीवन के सफर में, प्यार की होती सदा।

दीवाना बनकर किसी प्यार में था वो खोया,
दिल के सागर में प्यार ही प्यार पाया था।

महात्मा बुद्ध पर कविता

महात्मा बुद्ध की करुणा की धारा,
शांति, अहिंसा का सन्देश प्यारा।

ज्ञान की ज्योति प्रज्वलित करके,
अज्ञान की अंधेरी रात को हर के।

विपश्यना सत्य का मार्ग दिखाया,
जीवन के क्लेश से मुक्ति दिलाया।

बोधि वृक्ष के नीचे अन्तर ध्यान लगाया,
निर्वाण, सत्य मार्ग लोगों को समझाया।

करुणा, प्रेम, और मैत्री का पाठ पढ़ाया,
जीवन का सही रहस्य सब को समझाया।

अनमोल विचार ने महात्मा बुद्ध बनाया,
जीवन को सरल, सहज व उदार बनाया।

उनकी शिक्षाएँ और जीवन सबक देता है।
सत्य, अहिंसा और करुणा देता है।
बौद्ध दर्शन का अनमोल खजाना बनाया,
ज्ञान और

मध्य मार्ग, ज्ञान की अद्भुत शिक्षा देता,
संयम, साधना, और सच्ची दीक्षा देता।

दुःख के कारण रहस्य को समझाया,
अष्टांगिक मार्ग का ज्ञान दिलाया।

सही दृष्टि और सही संकल्प बताया,
सही वाणी और सही कर्म सिखाया।

चार आर्य सत्य का अद्भुत ज्ञान बताया,
दुःख, समृद्धि, निर्वाण पहचान कराया।

अनित्य, अनात्म, जीवन कष्ट समझाया
जीवन में स्थिरता,अनवरत ज्ञान बताया।

बोधिसत्व शून्यता का सत्य समझाया,
मोह-माया तज कर लोक कल्याण बताया।

जीवन को अद्वितीय, अनमोल समझाया,
शांति, करुणा, और मैत्री का भार बताया।

सावन के संग आशाएं

सावन की बूँदें लाई, नई-नई आशाएं,
धरती पर उतरी जैसे, हरी-भरी रचनाएं।

काले-काले बादल घिरते, बरसती जब रिमझिम बूँदें,
हर कोने में गूंज उठती, सपनों की मीठी धुनें ।

पेड़ों पर पत्ते नए नए गीत गा रहे हैं,
मन के कोने में छुपी इच्छाएं जगा रहे हैं।

बरखा के संग संग उड़ी, मन की तरंगे सारी,

आकाश को छूने की, हर दिन नई कोशिशें हमारी।

सावन की इस बारिश में, दिल की हर चाहत सजाएं,
आशा अभिलाषा के नए रंग ज़िंदगी में भर जाए।

वर्षा की बूंदों में छुपी, कितनी मधुर आशाएं,
हर कोने में गूंज उठी, सपनों की प्रत्याशाएं ।

सोंधी-सोंधी मिट्टी की खुशबू दिल को भाती है,
भीगी-भीगी राहों में नई मंजिल भी ओझल होती है।

काले बादल जब घिर आते, मन में उमंग जगाते हैं,
बारिश की बूंदों के संग अनगिनत सपने बह जाते हैं।

पेड़ों की शाखाओं पर, बिछ जाती हरियाली,
हर एक पत्ता कहता है, आशाओं की नव कहानी।

वर्षा का हर एक कतरा, लेकर आता है नया संदेश,
नवीनता का, ताजगी का, जीने की उमंग का परिवेश।

इस बारिश में हम खो जाएं नई आशाओं के संग,
जीवन की हर बूंद को, संजोएं इस मस्ती के रंग।

एक व्यक्ति, चेहरे अनेक

एक व्यक्ति, पर चेहरे पर मुखौटा होता हजार,
हर सुबह नया मुखौटा, हर शाम अलग प्रकार।

दिखावटी हंसी होती बाहर, अरमान के आँसू छिपे अंदर,
गुस्सा करे सिर्फ बाहर, प्यार के शब्द मन में दबाए अंदर।
हर चेहरा दुनिया दिखावटी बाहर, मन की बात न जाने कोई बाहर।

कभी मासूमियत, तो कभी चालाकी का आवरण
हर एक रूप में, छिपी है बहुत बारीक पर्यावरण।
हकीकत, असल मे क्या है, ये खुद से भी छिपाए,
हक़, सत्य वास्तविक आईना, खुद से भी मिटाए।

एक व्यक्ति, चेहरे अनेक, हर एक के पीछे, छुपा एक रहस्य,
जब देखे आईना, स्वयं की पहचान की चाह कर दे विस्मय।

एक व्यक्ति चेहरे अनेक, हर पल में रूप होते अदृश्य।
घर में प्यारा, बाहर सख्त, हर दिशा में, बदले दृश्य।

भीतर छुपाए गहरे राज़, बाहर सिर्फ मुस्कान की आभा।
दुनिया देखे एक चेहरा, मन के भीतर विविध प्रभा।

कभी सच्चा कभी दिखावा, हर चेहरे में छुपा एक दावा।
कभी सरल, कभी जटिल, हर रूप में छिपे भाव कुटिल।

एक व्यक्ति चेहरे अनेक, हर दर्पण में अलग प्रस्तुति।
सच कहाँ है, झूठ कहाँ है,समझ पाना है एक चुनौती।

यादें हमारे बाल जीवन की।

हमारे बालजीवन की दुनिया थी,कल्पनीय रंग-बिरंगी और सतरंगी,
सपनों की अटूट लहरें थीं और बालमन की उम्मीदों की चिंगारी।

मम्मा के संग बालकपन रात में तारों से बातें, चाँद से चंदा मामा खेलें,
चचेरे के संग बारिश में नाले, नदी की लहरो में कागजी नाव से खेले।

बालमन में रहती थी आकाश को छूने और उड़ने की जिज्ञासाऐं,
हर बार और हर पल कुछ नया करने की आशा और प्रत्याशाऐं ।

मिट्टी की खुशबू में रिमझिम बारिश के पानी की अविरत फुहार,
सावन की बरखा भी बालमन में मस्तियां और खुशियाँ लाती थी बारंबार।

बचपन के बाल साथियों के संग होती थी लड़ाई और हँसी-ठिठोली,
बालमन में उनके संग सदैव चलती थी ईद, होली और दीपावली।

बालक जीवन में नहीं थी कोई किसी परेशानी, भय और अड़चन,
स्वछंद किलकारिया,शोर, मस्ती व कोलाहल युक्त था बचपन।

दादी और नानी के संग रात्रि कहानी में खो जाता था बाल मन ,
उन कहानी में भूत और परियों की दुनिया में चल जाता था अबोध तन।

रंग-बिरंगे फूलों की होती थी हरी भरी और पुष्पित गुलाबी क्यारियां,
बालकपन में फुल तोड़ते, डोलते आच्छादित पुष्पित फुलवारियां।

बालकजीवन होता था हर बड़े, बुजुर्ग और परिजन का प्यारा,
बालमन होता था सच्चा,सरल,सहज, अबोध व सबका दुलारा।

बालक जीवन खेल-खेल में अपने स्वप्न से उड़ान के रंग भरता,
हर दिन , प्रति पल, बाल बुद्धि सबअपने खेल बारंबार रचता।

इश्क बेहिसाब

तेरा इश्क बेहिसाब, अनगिनत है
तेरी मोहब्बत में पिघल जाना है
तेरी आँखों में सब कुछ समाया है
तेरे दिल में मेरी याद बस गई है।

तेरी मुस्कान से खुशगवार जीवन
तेरी आवाज में मेरा यह आसमान
तेरी बातों से मुझे सुकून तसकीन
तेरे प्यार में बसा है मेरा अरमान।

इश्क बेहिसाब,अनगिनत, बेमोल है
तेरी मोहब्बत में सब खो जाना है
तेरी यादों में सब बातें घुल जाना है
तेरे प्यार से लगती दुनिया सुहानी है।

नेपाल भारत मैत्री संबंध पर अहम कविता

हिमालय की छांव गोद में बसा नेपाल, भारत का सदा प्यारा मित्र रहता है।
सांस्कृतिक धरोहर का अतुल्य खजाना नेपाल ही हमारा न्यारा मित्र होता है।

काठमांडू की गलियों में विचरण विहार से अपनेपन की याद ताज़ा होती है।
माउंट एवरेस्ट की ऊंचाइयों पर नेपाल की गरिमा, मान और शान होती है ।

नेपाली चाय की मिठास की चुस्कियों में हमारी दोस्ती की बातें होती हैं।
नेपाली लोगों की मुस्कान में हमारी मित्रता की वास्तविक गहराई होती है।

हिमालय की वादियों में खो जाऊं,नेपाल मित्र है भारत की याद ताज़ा होती है।
नेपाल की संस्कृति में रच बस मिल जावे हमारा मित्र है यही इरादों में होती है।

हिमालय की छाया में बसे दो अभिन्न मित्र भारत और नेपाल साथ रहते हैं।
सांस्कृतिक धरोहर का अटूट बंधन दो देशों को हमेशा जोड़े रहता हैं।

गंगा और कोसी की धाराओ में दोनो देशों की प्यार की मैत्री बहती है।
स्वतन्त्रता संग्राम के साथ में भी दोनो देशों की स्वाधीनता रचती बसती हैं।

धार्मिक, सांस्कृतिक व पारंपरिक बन्धन
दो देशों की मैत्री सदैव ख़ास रहती है।
प्यार, सहिष्णुता, सद्भाव व सौहार्द का संगम दोनो देशों को जोडे रहता है।

भारत और नेपाल ही वास्तव में दो दिल एक धड़कन होती है।
सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध व बंधन दोनो देशों में बसता है।

इन दो देशों की मैत्री ऐसे ही अविरल उन्नति व समृद्धि बढ़ती रहे।
सदा दोनो देश कंधे से कन्धा मिलाकर साथ प्रगति तरक्की करते रहें।

यादों का सफर

यादों का सफर हमें ले जाता है वहां,
गुजरे हुए दिनों की याद, स्मृति में,
खो जाते हैं हम उन लम्हों, पलों में,
जब वो थे हमारे संग साथ हर जगह।

यादों की राहें, हमें आवाज़ देती है,
गुजरे हुए समय की याद व स्मृति में,
मुस्कुराते थेहम उन लम्हों व पलों में,
जब जिंदगी थी सहज व आसान थी।

यादों का सफर, हमे ले जाता है,
गुजरे हुए दिनों की याद स्मृति में,
खो जाते हूँ, हम उन पलों लम्हों में
जब वो थे हमारे आस पास व साथ ।

यादें मिटती नहीं, भुलाई जाती नहीं,
यादें रहती हैं, हमेशा हमेश के लिए,
यादों का सफर, हमें ले जाता है,
गुजरे हुए दिनों की याद, स्मरण में।

भारत के दो युगपुरूष गांधी और शास्त्री

दोनो का एक ही दिन,जन्म दिवस है वो एक ऐतिहासिक दिन,
दोनो भारत के गर्व के प्रतीक दो अद्भुत महान व्यक्तित्व का दिन।
सादगी, शालीनता , सहजता से भरा जीवन गांधीवादी विचारों के नेता।
शांत स्वभाव, उच्च कोटि की सोच की अतुल्य शख्सियत थी उनकी।
2 अक्टूबर है देश के गांधी-शास्त्री महान सपूतों का यौम ए पैदाईश का दिन।
शास्त्री जी छोटे कद, साहस हौंसले से परिपूर्ण महान गुणों के मालिक थे,
उनका हृदय कोमल पर स्वाभिमान और सादगी के स्वामित्व थे।
दो अद्वितीय महान दिग्गज विभूतियों के स्मरण का दिन है दो अक्टूबर का दिन।
गांधी अहिंसावादी, स्वदेशी के आंधी थे, निडर,साहसी और आत्मविश्वासी थे,
सत्य के पथ पर चलते थे पर तूफानो से नहीं डिगते और डरते थे।
स्वतंत्रता या स्वाधीनता के भारत का अपना सपना आँखो में संजोया था,
सब कहते उन्हें बापू, महात्मा पर उनका नाम मोहनदास करमचंद गांधी था।
गांधी और शास्त्री की अद्भुत जीवन यात्रा, दृढ़ संकल्प, स्वाधीनता के पीछे,
ध्येय था इंसानियत, लोक कल्याण, समता सौहार्द व पराधीनता से मुक्ति का।
सबको समता, न्याय दिलाना और आज़ाद भारत बनाने का।
ध्येय था स्वाधीन भारत और स्वछंद हवा में सांस लेने का।
तारीख़ रहेगी सर्वदा साक्षी शास्त्री- गांधी के अमूल्य योगदान का।
जब तक यह इतिहास रहेगा तब तक विश्व याद करेगा इनके कर्मों को।
शताब्दियों तक याद रखेगा, विश्व इनकी अद्भुत महान करतूतों को।
जब देश पर विपदा आई, शास्त्री ने दिया जय जवान जय किसान का नारा था।
देश की आज़ादी और स्वाधीनता में दोनों ने अपना सर्वस्व, सर्वत्र त्याग किया।
आज, देशवासियों हम सब मिलकर करते याद गांधीजी व शास्त्री जी (दो ऐतिहासिक शख्सियतों ) को याद!! इस महान दिवस दो अक्टूबर के मौके पर।। जय हिंद।।

पथ पथिक

पथ है जीवन राह का पथिक है हमारा मन,
मंजिल की ओर क़दम पर क़दम बढ़ते हुए तन।
क़दम कदम पर चुनौती मंजिल की ओर बढ़ने की।

पथिक की आशा इच्छा, पथ को पार करने की,
मंजिल तक पहुँचने की है आस प्रत्याशा।
पथ की मुश्किलें पथिक को मजबूत,
बनाती हैं और आगे बढ़ने को तैयार।

पथ और पथिक, दोनों एक दूसरे के साथ में चलते हुए, आगे बढ़ते हैं।
पथिक की यात्रा, पथ की मुश्किलों से, मंजिल तक पहुँचने की कहानी।

पथ है जीवन का रास्ता पथिक है हम मंजिल की ओर बढ़ते हुए।
हर कदम पर, नई आशा प्रत्याशाए,
नई मंजिल की ओर बढ़ते हुए ।

गरबा नृत्य

गरबा की धुन पर थिरकती रात,
नवरात्रि की खुशियों का साथ।
चमकती लाइट्स, रंगीन परिधान,
गरबा नृत्य की होती है शुरुआत।

गुजरात की संस्कृति का प्रतीक,
गरबा नृत्य की अनोखी झलक।
देश में ही नही बल्कि विदेशों में भी,
गरबा नृत्य की हो गई है पहचान।

डांडिया रास की होती है थाप,
गरबा नृत्य की बनती है ताल।
नृत्यांगनाओं में होती मुस्कान,
गरबा नृत्य की खुशी और थकान।

गरबा नृत्य की रंगीन रातों में,
जश्न का माहौल अविरत होता है।
हर कोई थिरकता है डांडिया हाथ,
गरबा नृत्य संगीत की धुन के साथ।

नवरात्रि की पहली रात से ही,
गरबा नृत्य की होती शुरुआत।
नवरात्रि की असीम खुशियों में,
गरबा नृत्य का बन गया महत्व।

पर्यटन दिवस पर विशेष कविता

आओ पर्यटन दिवस पर स्वागतम् खुली बाहों से,
खुले दिल से, खुले मन से और खुली आँखों से।
देखें दुनिया की सुंदरता प्रकृति की जुस्तजू ,
महसूस करें समृद्ध इतिहास व नए अनुभव और आरज़ू।

पर्यटन दिवस पर कराए नित नए आभास,
नई जगहों व नए रास्तों पर प्रवास।
खोजें इतिहास की गहराइयाँ व वृद्धि।
महसूस करायें देश संस्कृति, तहज़ीब व समृद्धि।

पर्यटन यात्रा पर देश विदेशी मेहमानों का खेरमकदम ,
खुले मन से,खुले दिल से सभी जनों का सर्व स्वागतम् ।
देखें प्रकृति की सुंदरता, मनमोहकता और मधुरता ,
आभास करें जीवन में नई खुशी, उल्लास व सरलता ।

है अनेकता में एकता और अखंड देश की सांस्कृतिक समृद्धि।
आओ मिलकर दे देशी विदेशी पर्यटन को उच्चतर वृद्धि।
पर्यटन दिवस पर हम सबका एक नया संदेश ,
भारत को एक बेहतर व उत्कृष्ट पर्यटन बनाएं एक देश।

आज की नारी पर कविता

आज की नारी में साहस, हौंसले और योग्यता की प्रेरणा है।
इनकी आवाज में एक तरन्नुम, संगीत का जादू और सरगम है।
इनके कदम चाल में एक नवीन संघर्ष और अतुल्य संघर्ष है।
इनकी सोच में समता, समभाव, सद्भाव, सौहार्द और न्याय है।
आज की शिक्षा,शिक्षण, प्रशिक्षण जागरण की प्रतीक नारी है।
इनकी पहचान में हया, ज़मीर, गैरत, आत्म अनुभूति व गरिमा है।
इनके हाथों में कला, शिल्प, लगन और मेहनत का अद्भुत सृजन है।
इनके मन में सहानुभूति, वात्सल्य, करूणा, प्रेम और सहानूभूति है।
नारी जीवन के हर क्षेत्र में सामर्थ्य व सशक्तिकरण की प्रतीक है।
इनकी शक्ति का संबल सिर्फ़ रब का अनंत और अपार वरदान है।
नारी की उपलब्धियों से जगमगाता संसार बहुत गर्वित और आशान्वित है।

खुद की खुद से मुलाकात

मैं खुद से मिला, एक अनजान सा लगता है
अपने ही घर में, एक अजनबी सा लगता है
मैंने खुद को पूछा, तुम कौन हो?
मिली आवाज, मैं तुम्हारा अपना हूँ

मैं खुद से बोला, तुम्हारी कहानी क्या है?
मिली जवाब, मेरी कहानी तुम्हारी है
मैं खुद से पूछा, तुम्हारी पहचान क्या है?
मिली प्रतिक्रिया, मेरी पहचान तुम्हारी है

मैं खुद से मिला, एक नया साथी मिला
अपने ही दिल में, एक नया जीवन मिला
मैं खुद से बोला, तुम्हारे साथ रहूँगा
मिली मुस्कराहट, हमेशा साथ रहूँगा।

शीर्षक रब का वरदान है बेटी

घर के आंगन की महक व चमक है बेटी।
माॅं के आंचल और बाप की दुलार है बेटी।
रब की अद्भुत व अद्वितीय वरदान है बेटी।
तहज़ीब और संस्कृति की शान है बेटी।
माॅं- बाप की मान और अभिमान है बेटी।
माॅं-बाप की इज्जत और सम्मान है बेटी।
बेटों से किसी भी कीमत में कम नहीं है बेटी ।
जीवन के हर क्षैत्र में आसमान छू रही बेटी।।
फातिमा, लक्ष्मीबाई, दुर्गावती, इंदिरा है बेटी ।
मन की ऑंखों से देखने में हीरा है बेटी।
प्रेम, ममता, करूणा, दया की रूप बेटी।
बहन, पत्नि और माॅं के किरदार है बेटी।
सृष्टि की सबसे खूबसूरत रचना है बेटी।
वर्णमाला की सबसे सुंदर अक्षर है बेटी।
अल्फाज़ के सबसे सुंदर लफ्ज़ बेटी।।

“दोस्त के बिना जीवन अधूरा”

दोस्त के बिना जीवन अधूरा है,
जैसे बिन सूरज के सवेरा,
जैसे बिन चाँद के रात,
जैसे बिन खुशियों के कोई बात।

जो दिल को हंसा दे,
जो दुखों को मिटा दे,
वो दोस्त ही तो होता है,
जो जीवन को सजा दे।

साथ उसके हर ग़म हल्का लगता,
हर खुशी में और रंग भरता।
वो हाथ पकड़कर चलता साथ,
अकेलेपन में भी होता वो पास।

बिन दोस्त के यह सफर मुश्किल,
जैसे सूने रास्तों का दिल।
दोस्त के बिना यह संसार वीरान,
उसके साथ ही तो जीवन में जान।

दोस्त के बिना यह जीवन अधूरा है,
उसके बिना हर सपना अधूरा है।
दोस्ती का रिश्ता जो है खास,
उसी से है जीवन का एहसास।

धर्म और कर्म

धर्म के नाम पर झगड़ते हैं लोग,
भूल गए हैं कर्म का सच्चा योग।
मंदिर-मस्जिद के झगड़े में पड़े,
मानवता की राह से भटके हुऐ।

धर्म का कर्म क्या है वो सिर्फ नाम,
सद्कर्म बनाता है इंसान को महान।
जैसा बीज बोएंगे, वैसा फल पाएंगे,
सद्कर्म के धर्म ही भाग्य बनाएंगे।

धर्म इल्म है उस पर अमल है कर्म,
कर्म ही सिखाता हैं जीवन का मर्म।
सदविचारों के अमल से होता कर्मज्ञ,
सच्चाई की राह में कर्म होता धर्मज्ञ।

सत्य धर्म से बनता सद्कर्म महान,
सद्कर्म से मिलता जीवन वरदान।
धर्म निभाना है तो कर्म को पहचान,
नेककर्म से पूरा जीवन का अरमान।

धर्म व कर्म जीवन के दोनो पहिए,
कर्म से धर्म की पहचान को पढ़िए।
जीवन की नश्वरता को तुम पहचाने,
महशर में कर्म के हिसाब को जानें ।

शतरंज की बिसात

चौपड़ बिछी होती सामने और चालों से होती मात,
जीवन के हर मोड़ पर शतरंज की होती बिसात।

घोड़े की चाल होती है, हाथी का भी होता भय,
हर मोहरे में छुपी होते है, कई-कई नए रहस्य।

राजा खड़ा अकेला, रानी होती है उसके साथ,
सियासत के इस खेल में होती है सबकी मात।

प्यादा जो आगे बढ़ता रखे कदम सँभालकर,
छल-कपट का ये खेल है हर कोई है बेहाल।

बाजी जो पलट देते है वो बनते हैं यहाँ शहंशाह,
जो ना समझे इस चाल वो हो जाते वहां तबाह।

जीवन का भी यह खेल है, कुछ ऐसा ही खास,
हर चाल में छुपा हुआ है, यहां कोई गहरा राज।

शतरंज की बिसात पर दुनियाँ में जीत वही पाते हैं,
जो दिल से खेले चाल, और कुछ और समझाते है ।

परवाज़ परिंदों की

आसमान की गहन ऊँचाइयों में,
परवाज़ परिंदों की दिखती है।
हवा के संग वो खेलते दिखते हैं,
आज़ादी की महक बिखरती है।

पंखों में पूर्ण विश्वास भरा है,
सुदूर क्षितिज को वे छूते हैं।
जैसे प्यार के पंख लगाकर,
दो दिल भी संग संग उड़ते हैं।

प्रेम भी एक परवाज़ जैसा ही है,
दो दिलों की प्रकाष्ठा तक उड़ना है।
यहां कोई बंधन, कोई सीमा नहीं,
बस एक-दूसरे संग संग रहना है।

आसमां ईहसागर बड़ा या छोटा हो,
प्यार के पंख थकते व थमते नहीं।
जैसे परिंदे बेख़ौफ़ स्वछंद उड़ते है,
प्रेम में भी ये डरते किसी से नहीं।

हमराही हो जो सच्चा अपना,
हर उड़ान सरल व सहज लगे।
जैसे परिंदे संग संग उड़ान भरते,
वैसे प्यार में भी जीवन सरस लगे।

संगत की रंगत पर कविता

संगत की रंगत अद्भुत व निराली है,
ऊंचे नीचे रास्ते बदलकर चलती हैं।
जैसे रंग, रंगों में मिलकर खो जाए,
उसके सांचे में सोचें भी ढलती हैं।

अच्छी संगत बनाता नया सवेरा,
जीवन में देता एक नया उजियारा।
मन मे सुकून, सब्र दिल में देता प्यार,
हर दिन लगता सुख, शांति का डेरा।

बुरी संगत का रंग चढ़ता भारी,
धुंधलाती है भविष्य की राहें।
जिन्हें हम समझें सच्चे साथी,
वही देते हैं भविष्य की बर्बादी।

संगत का अगर रंग चुनना है,
जैसे चुनते हैं हम कपड़े नए।
जितनी साफ, जितनी सुन्दर,
जीवन भी होता वो सहज,सरल।

अच्छी संगत का साथ निभाएं,
रंग जीवन का मुखर खिल जाए।
बुरी संगत से तुम परहेज़ रखिए,
जीवन में नया उजियारा आए।

हिंदी में है वो बात

हिंदी हमारी शान है, हिंदी हमारी जान,
जन-जन की भाषा ये, भारत की पहचान।

शब्दों का ये सागर, ज्ञान का अम्बार,
संस्कृति की धारा, इसमें बसा संसार।

हर अक्षर में छुपी है, भावनाओं की भरमार,

राजभाषा का मान रखो, इसे दिल से अपनाओ,
हिंदी दिवस पर प्रण करो, इसे और आगे बढ़ाओ।

इसकी मिठास अनमोल है, इसका आदर करो,
हिंदी से भारत चमके, इसका सत्कार करो।

हिंदी दिवस पर है संदेश यही,
राष्ट्रभाषा को प्यार मिले, यश मिले सही।

भारत के हर कोने में गूंजे इसकी वाणी,
हिंदी से विश्व में भारत की पहचान मानी।

द्रौपदी : एक आईना*समाज का

द्रौपदी एक आईना है, सच का प्रतीक,
जिसमें दिखते हैं समाज के खोखले लीक।
वह लाज है, उसकी अस्मिता चुप हुई,
महलों में बैठे नायक उस पीड़ा से दूर हुए।

उसके आँसू नहीं थे कमजोरी का प्रमाण,
बल्कि वो बन गए संघर्ष का अपार निदान।
उसने दिलाया नारी को शक्ति का ध्यान।
समाज के अन्याय से लड़ने का अभिमान।

द्रौपदी एक आईना है उस स्त्री का,
जो अब भी सवालों में जी रही है।
उसकी व्यथा,पुकार आज भी गूंजती है,
जो न्याय के लिए अब भी झुकी नहीं है।

वह केवल महाभारत की पात्र नहीं,
अपितु हर उस स्त्री की पहचान है।
जो समाज के बंधनों को तोड़कर,
अपने अस्तित्व का खुद ही प्रमाण है।

इंतज़ार

इंतज़ार के लम्हे भी अजीब होते हैं,

हर पल सदियों जैसे महसूस होते हैं,

दिल में बसती है हल्की सी उम्मीद,

दूर कदमों के निशान करीब होते हैं।

आँखें राहे इंतज़ार में टिकी रहती हैं,

जैसे वो उस में ही खोई रहती हैं यूं,

हवा भी उसकी की खबर लाती है ,

फिर दिल क्यों बेकरार सा रहता है।

इंतज़ार प्यार के धागों जोड़ता है।

समय की धड़कन थम जाती है।

आसमान मौन, तारे कुछ कहते हैं।

इंतज़ार की रात दिल बहलाती है।

शिक्षक ज्ञान की ज्योति है

शिक्षक ज्ञान की ज्योति है,
अंधियारे को मिटाते है ।

ज्ञान का दीप जलाकर,
जीवन को सार्थक बनाते है ।
शिक्षक ही है मार्गदर्शक,
संघर्षों का परिचय कराते हैं।
हर कठिनाई से लड़ने का,
जीवट हमें सिखलाते हैं।
वो पुस्तक का पृष्ठ ही नहीं,
जीवन जीने का पाठ पढ़ाते हैं।
सपने सच करने के मंत्र बताते हैं।
उनकी दुआ और मार्ग दर्शन से
शिष्य सदा आगे बढ़ते जाते हैं ।
ज्ञान रूपी अमृत से जीवन को,
सहज, सरल और सफल बनाते हैं।

शब्द नहीं हैं काफी, शिक्षक का आभार जताने को।
ज़िंदगी में उनकी सीख, हमें हमेशा याद रखने को ।

अधूरी चाहत

अधूरी चाहत मिलकर भी नहीं मिली,
दिल की ख्वाहिशें फिर भी अधूरी रहीं,

मिले थे हम तो यूं लगा था जैसे,
हर ख़्वाब अब हकीकत बन जाएगा।

मगर ये दूरी, ये फ़ासले बने रहे,
दिल के करीब होकर भी हम दूर ही रहे।

ख़्वाहिशें लबों पर आकर रुक गईं,
आंखों में बसे अरमान धुंधला गए।

मिलकर भी वो कशिश न रही,
अधूरी चाहत आज भी अधूरी ही रही।

दिल ने चाहा था जिसे अपना समझना,
वो एहसास भी अब बेज़ुबान सा लगने लगा।

मिलकर भी मन की तृप्ति न मिली,
अधूरी चाहत मिलकर भी अधूरी ही रही।

अधूरे सपने

रातों में सजते थे, वो सपने अधूरे रह गए।
आँखों में चमकते वो आँसू बनकर बह गए।
इमारतें जो खड़ी थीं, वो रेत के घरोंदे थे।
हसरतों के झरोखों से, न जाने कितने थे ।

मंज़िल को बढ़ते पांव,थम कर रुक गए,
उम्मीदों के पंख, वक्त की आंधी में टूट गए।
हर मोड़ पर देखा, नया रास्ता भटक गए।
पर मंज़िल की तलाश में, हम खो गए ।
जो सोचा था, वो हो न सका, वो खास है।
दिल की आवाज़ से दिल में एक आस है,

कि अधूरे सपने एक दिन जरूर पूरे होंगे।
ये अधूरे सपने, एक दिन सच हो जाएंगे।
हौसले की उड़ान में, आकाश को छू पाएंगे।
बीते को भूलकर, नए सपने बुन पाएंगे।

अधूरे हैं तो क्या हुआ, ये तो शुरुआत है।
सपनों को पूरा करने की, एक आगाज़ है।
हर टूटे ख्वाब से मिलेगी एक नई राह।
अधूरे सपनों में है, नयी सुबह की चाह।

लफ्ज़

लफ्ज़ों के धागे में, बंधे हैं कई अरमान,
कभी बनाते संबंध, कभी करते फ़रमान।
दिल की गहराइयों से उठते हैं ये आवाज़,
कभी सुकून देते कभी दे जाते हैं राज़।

कभी कोरे कागज़ पर, सजते हैं ये हर्फ़,
कभी चुपचाप, बस आंखों में कराते शर्म।
कभी इनसे बनती हैं कहानियां अनकही,
कभी ये तोड़ देते हैं, आकांक्षा की लड़ी।

हर लफ्ज़ में छिपी है, एक अनकही दास्तां,
कभी बनाते विश्वास कभी बिखरती आस।
लफ्ज़ों की ताकत, कोई समझ नहीं पाया,
कभी ये ज़ख्म देते, कभी बनते हैं मरहम।

लफ्ज़ों की शब्दावली में,सब खो जाते,
दिल से दिल मिलाते,कभी जुदाई देते।
लफ्ज़ों का ये सफर, कभी थमता नहीं,
हर दिल की गहराईयों से उठते है यही।

कभी लफ्ज़ों से जुड़ते हैं, रिश्तों के तार,
कभी ये बुनते हैं, सपनों के नए संसार।
लफ्ज़ों की इस बुनाई में, खो जाते सभी,
कभी जोड़े दिलों को,कभी तोड़े हदें भी।

संभाल कर रखो, इन लफ्ज़ों का खेल,
कभी ये संजीवनी, कभी ज़हर का मेल।
हर लफ्ज़ में है छुपी है अहम निशानी,
इन्हें समझकर बोलने से नही है परेशानी।

फुहार

बरसात की फुहारें जब धीरे-धीरे गिरती हैं,
धरती की प्यास वो शीतलता से भरती हैं।
हवा में घुली मिट्टी की सौंधी सी मंद महक,
फुहारों की छांव में, मन को ये बहलाती हैं।

नन्ही नन्ही बूंदों का वो मोती सा स्प्रे स्पर्श,
पेड़ों की पत्तियों पर एक नया रंग चढ़ता है।
चिड़ियों के गीतों में नई ताजगी आती है,
फुहारें मानो धूप से रूठी खुशियां लाती हैं।

खिड़की के पार से जब देखते ये दृश्य,
बचपन की यादें कोई कहानी बुनता हूं।
वो कागज़ की नाव बारिश में खेलते दिन,
ये फुहारें जीवंत हरियाली संदेश लाती हैं।

फुहारों में छुपी है एक प्यारी दास्तान,
हर दिल में उम्मीद की लौ जलाती है।
वर्षा की फुहार में कुछ है अनमोल,
कुदरत ने खुद ही वर्षा ऋतु बनाई है।

शिक्षक पर कविता

गुरु ज्ञान की ज्योति है, अंधियारे को मिटाते है ।
ज्ञान का दीप जलाकर, जीवन परिपूर्ण करते है ।
शिक्षक है मार्गदर्शक, संघर्षों से परिचित कराते हैं।
हर कठिनाई से लड़ने का, हौंसला हमें सिखाते हैं।
वो पुस्तक का पन्ना नहीं, जीवन का पाठ पढ़ाते हैं।
सपनों को सच में बदलने की, राह हमें दिखाते हैं।
उनका आशीर्वाद लेकर, शिष्य आगे बढ़ते जाते हैं ।
ज्ञान के इस अमृत से, जीवन सफल हो जाते हैं।
शब्द नहीं हैं काफी, शिक्षक का आभार जताने को।
ज़िंदगी में उनकी सीख, हमें हमेशा याद रखने को ।
इस शिक्षक दिवस पर, गुरु को प्रणाम और सलाम ।

मजदूर हूं, मजबूर नहीं हूं

मजदूर हूं, मगर कमजोर नहीं हूं,
हाथों में है मेहनत, तकदीर से दूर नहीं हूं।
ईंटों से सपनों की इमारतें खड़ी करता हूं,
पर मेरे अरमानों का न कोई वजन नहीं है।

मिट्टी से सना, फिर भी साफ दिल रखता हूं,
पसीने की बूंदों से ये जमीन सींचता हूं।
हर कदम पर लड़ता हूं, झुकता नहीं हूं,
क्योंकि मैं सिर्फ मजदूर हूं, लेकिन मैं मजबूर नहीं हूं।

दिन भर की मेहनत से जब मैं थक जाता हूं,
रोटी के टुकड़ों में, मैं अपनी ख़ुशी पाता हूं।
तूफानों में भी दीवारें खड़ी मै कर देता हूं,
पर अपने हक़ की लड़ाई में, मैं पीछे नहीं हटता हूं।

मेरे खून-पसीने से बनते हैं महल,
पर मेरे लिए कहीं भी छत नहीं है।
समय बदलेगा, यह मेरी आस है,
मैं मजदूर हूं, मगर मजबूर नहीं हूं।

बेपरवाह जिंदगी

बेपरवाह है ये जिंदगी, बस अनवरत सी चलती जाती,
इसकी राहें कभी सीधी तो कभी उलझी सी अविरत होती।

चाहे कितनी भी तपिश हो या बेतहाशा बरसात,
कभी बेमौसम बरसात हो या ठिठुराती सर्द रात।

कभी मुस्कान, कभी आँसू की सौगात, कदम बढ़ाए जा ए ज़िंदगी,
न सोचे कल की, न डरती आज यह बेपरवाह जिंदगानी।

छोटी-छोटी खुशियों में ढूंढ़ लेती अपना सुकून,
दुनिया की फिक्र से आज़ाद, ये बेपरवाह इसका जुनून।

हर ठोकर को ये समझती व समझ कर करती है पार,
संभल कर चला करो कि जीना है सिर्फ एक बार।

न कल की चिंता, ना ही कभी है प्रलय का ख्वाब,
बस दिल से जीने का रखती है अलग हिसाब।

ये बेपरवाह जिंदगी है अपनी काल यात्रा में व्यस्त,
इसका साथ दो तो हो जाओ मस्त, अन्यथा हो जाओ त्रस्त।

नारी सुरक्षा

ज़माना चाहे जितना भी बदले,नारी सम्मान कभी ना झुके।
उसके आँचल, मुस्कान,आत्मविश्वास की सुरक्षा कभी ना डिगे।

कोई नहीं करे उस पर अत्याचार, वह बने हर डर की तलवार।
नारी शक्ति वो जीवन का सार, उसकी सुरक्षा में है समाज का उद्धार।

उसे मिले उसका वो हक जो सदा सच्चा और अडिग रहे।
संकल्प हो उसका सम्मान रखना उसके हक को सलाम करें।

क्या कसूर था

क्या कसूर था उस नारी का….
जो बिन बोले सब सहती गई,
सपनों की उड़ान में पंख बांध,
फिर भी हर दर्द छुपाती गई।

क्या कसूर था उस नारी का….
जो हर रिश्ते को सींचती रही,
फूलों की तरह मुखरी, बिखरी,
फिर भी कांटों से बचती रही।

क्या कसूर था उस नारी का…..
जो आँसू में मुस्कान तलाशती रही
दुनिया के हर कटाक्ष को भूलकर,
अपने दिल के घाव को छिपाती रही।

क्या कसूर था उस नारी का…
जो जीवन अर्पित करती रही,
अपनी इच्छाओं को भूलकर, सबके
अधिकार और अपने कर्तव्य निभाती रही।

उस नारी का बस यही कसूर था…
कि खुद को भुलाकर, सबके लिए जीती रही,

खुद दूसरे की आशाओं और प्रत्याशाओं में कहीं खो गई, मिट गई।

रक्षा बंधन

यह धागों का रिश्ता बड़ा अनमोल है,
इसमें छिपा हर भाव का बेतोल है।
राखी के धागे में बंधी सभी दुआएं,
बहन के दिल की अनकही कथाएं।

रक्षा बंधन का धागा, एक विश्वास है,
भाई की कलाई पर बहन खास है।
कठिनाई में साथ निभाने का वादा,
हर मुश्किल में मुस्कुराने का इरादा।

रक्षा धागों में स्नेह प्यार का प्रतीक,
दिलों की दूरियां मिटाने का तरीक।
रक्षा धागा जो बार बार कह रहा है ,
भाई-बहन का रिश्ता पुकार रहा है।

रिश्तों की यह ताज़गी हमेशा ही रहे,
रक्षा बंधन का प्रण सदैव अमर रहे।
प्रति वर्ष यह त्यौहार यूं ही आता रहे ,
भाई-बहन में प्यार यूं ही बढ़ाता रहे।

भाई बहन का रिश्ता

सुनहरे धागों में बंधा, प्यारा सा ये अनमोल बंधन,
भाई-बहन का रिश्ता है, जीवन का ये अमूल्य धन।

कभी हंसी, कभी ठिठोली, कभी प्यार भरी मजाके,
जैसे मौसम बदलते, भाई बहन की मोज मस्ती ठहाके।

लड़ते हैं, झगड़ते हैं, फिर भी स्नेह है अटूट और बेमोल,
भाई के बिना बहन का, बहन के बिना भाई का बंधन अनमोल।

राखी के धागों में, बंधी है ये प्यार स्नेह की डोर,
हर मुश्किल में साथ खड़े, चाहे हो कोई भी दौर।

भाई का हाथ थामे, बहन चलती है ज़िंदगी की हर राह,
साथ में हंसते-गाते, बनते हैं वो एक-दूसरे की चाह।

ये रिश्ता है अनमोल, इसमें छुपी है दुनिया सारी,
भाई-बहन के इस प्यार में, छुपी है सच्चाई न्यारी।

ये बंधन रहे हमेशा यूं ही अटूट और अनवरत,
जैसे सुबह के बाद आती है हर बार खूबसूरत रात।

स्वतंत्रता: स्वाधीनता: आजादी

आजादी की कीमत को जानो, इसमें वीरों की कुर्बानी है।
रक्त से सींचा इस धरती को, तब मिली ये आजादी है।

स्वतंत्रता की इस प्यारी धुन में, वीरों का साहस गूंजा है।
उनके हौंसले और त्याग से, हर भारतीय का सिर ऊंचा है।

कैसी थी वो अंधियारी रातें, चारो ओर आग जलाई थी।
हर दिल में एक ही सपना था, कि मातृ भूमि आज़ाद होनी थी।

कितनी माएं रो पड़ी थीं, अपने लाल को खोने पर।
गर्व से वो इंकलाब कहती थीं, बेटा न्योछावर होने पर।

आजादी की इस मधुर घड़ी में, उनके बलिदानों को याद करें।
उनके त्याग, तपस्या और बलिदान को, हर दिल उनसे सलाम करें।

अब हमारी जिम्मेदारी, इस स्वाधीनता को बनाए रखना।
हर भारतीय को प्रेरित करें, यह धरोहर को सहेज कर रखना।

किसान हमारे अन्नदाता

किसान देश की जान हैं, धरती के ये आन बान शान, सम्मान हैं,
खेतों में ये परिश्रम करते, उनसे ही सजीव ये सारा जहान है।

सूरज उगने के संग जगते हैं, मिट्टी में अपने सपने बोते हैं।
हमारी धरती मां की गोद में, अन्न, फ़सल के बीज ये बोते हैं।

धूप में तपते, बारिश में भीगते, हर मौसम को ये सहते हैं,।
बीज को उगा, पल्लवित कर ये देश में अन्न का अंबार भरते हैं।

इनके हाथों की लकीरों में, देश की समृद्धि की आधारशिला होती है।
मिट्टी का ये रोशने चिराग हैं, हर घर में प्रकाश का स्तंभ हैं।

इनके बिना सूना देश, किसान ही देश की असली जान हैं।
कभी अतिवृष्टि कभी ओला वृष्टि, सूखा और बाढ की खान हैं।

कभी हंसते, कभी रोते, पर देश के लिए हमेशा महान हैं।
इनकी मेहनत का हम पे कर्ज है, किसान हमारे, देश की जान हैं।

कृषक हमारे अन्नदाता हैं, धरती के हैं ये वीर सपूत और रखवाले।
मिट्टी को हाथों से सोना बनाकर अन्न का भंडार भरते श्रम वाले।

सूरज की पहली किरण के साथ खेत में पसीने की बूँदों से सींचते हैं,
फसलें होती हैं हरी-भरी, इनके बल से हम जीवन जीते है।

धूप हो, बारिश हो या हो ठंडी रात, इनकी फसल अविरल चलती है,।
उसका ये कठोर परिश्रम, हर मौसम, हर हाल में फसल उपजती है।

कभी नहीं थकते, कभी नहीं रुकते, भूख बर्दाश्त करते हैं।
ये अन्नदाता अपने पसीने से देशभर का जीवन सींचा करते है।

नाव की कविता

नदी की लहरों पर चलती नाव,
सपनों की तरह बहती जाती,
जीवन की धारा के संग संग,
मंज़िल की ओर बढ़ती जाती।

चप्पू की हर एक आवाज़ में,
जीवन की एक नई धुन है,
कभी ठहरे तो कभी ये बहती,
ये नाव एक अनजानी गाथा है।

सूरज की किरणें संग खेलें,
चाँदनी रात में ये मस्त बहें,
नदिया की गोद में यह कश्ती,
जैसे कोई बालक सी शांत रहे।

तूफ़ान भी आता है कभी-कभी,
लहरें भी उठती हैं उफान पर,
पर नाव की हिम्मत ना टूटे,
चलती रहती है, हर हाल में।

कभी शांत तो कभी चंचल,
कभी तूफानों में, कभी बाढ़ में,
नाव हमारी ज़िन्दगी की तरह,
निरंतर चलती,बढ़ती सफ़र में।

भाई

भाई का प्यार अनमोल होता,
हर दुःख-सुख में साथ निभाता।
बचपन की शरारत साथी होता,
जीवन भर वो हौंसला बढ़ाता।

हर मुश्किल में हाथ जो थामे,
वो भाई सच्चा साथी कहलाए।
उसकी हंसी से मन खिल जाए,
दिल में तरंग व उमंगें भर जाए।

भाई दूर हो चाहे कितना भी,
दिल से नही जुदा कभी भी।
भाई प्यार वो अनमोल रिश्ता,
जिसे न तोड़ा जाता, न भूला।

जब भी हो जरूरत किसी की,
भाई दौड़ा आता हमदर्दी से।
उसका साथ है अनमोल रत्न,
जो दिल का सुकून बिना यत्न।

सिर्फ भाई का साथ हो जब तक,
राह आसान रहती तब तक।
उसके बिना ये जीवन अधूरा,
भाई के प्यार से सजीव हो पूरा।

यह तो आम है

यह तो आम है,
जो रोज़ की कहानी है।
सूरज का उगना,
और फिर ढल जाना भी,
सब कुछ जैसे,
एक अनकही जुबानी है।

यह तो आम है,
पत्तों का गिरना,
फूलों का खिलना,
बसंत का आना,
और फिर पतझड़ में ढलना।
हर मौसम का बदलना,
एक रीत पुरानी है।

यह तो आम है,
हर चेहरे पर मुस्कान,
कभी आंसू की रवानी है।
हर दिन की शुरुआत,
और रात की जुबानी है।
जीवन का यह सिलसिला,
बस यूं ही चलता रहता है,
जैसे यह भी कोई,
सपनों की कहानी है।

यह तो आम है,
दुख और सुख का आना,
हर रोज़ नई उम्मीदों का सजाना।
कभी हार, कभी जीत,
जैसे जीवन की हर गली,
अपनी एक कहानी है।

यह तो आम है,
हर दिल की धड़कन में,
एक सपने की रवानी है।
हर आंख के कोने में,
एक चाहत की निशानी है।
जीवन के इस सफर में,
हर मोड़ की अपनी जुबानी है,
सच में, यह तो आम है,
पर यही तो हमारी ज़िंदगानी है।

एक व्यक्ति, चेहरे अनेक

एक व्यक्ति, पर चेहरे पर मुखौटा होता हजार,
हर सुबह नया मुखौटा, हर शाम अलग प्रकार।

दिखावटी हंसी होती बाहर, अरमान के आँसू छिपे अंदर,
गुस्सा करे सिर्फ बाहर, प्यार के शब्द मन में दबाए अंदर।
हर चेहरा दुनिया दिखावटी बाहर, मन की बात न जाने कोई बाहर।

कभी मासूमियत, तो कभी चालाकी का आवरण
हर एक रूप में, छिपी है बहुत बारीक पर्यावरण।
हकीकत, असल मे क्या है, ये खुद से भी छिपाए,
हक़, सत्य वास्तविक आईना, खुद से भी मिटाए।

एक व्यक्ति, चेहरे अनेक, हर एक के पीछे, छुपा एक रहस्य,
जब देखे आईना, स्वयं की पहचान की चाह कर दे विस्मय।

एक व्यक्ति चेहरे अनेक, हर पल में रूप होते अदृश्य।
घर में प्यारा, बाहर सख्त, हर दिशा में, बदले दृश्य।

भीतर छुपाए गहरे राज़, बाहर सिर्फ मुस्कान की आभा।
दुनिया देखे एक चेहरा, मन के भीतर विविध प्रभा।

कभी सच्चा कभी दिखावा, हर चेहरे में छुपा एक दावा।
कभी सरल, कभी जटिल, हर रूप में छिपे भाव कुटिल।

एक व्यक्ति चेहरे अनेक, हर दर्पण में अलग प्रस्तुति।
सच कहाँ है, झूठ कहाँ है,समझ पाना है एक चुनौती।

ख्वाहिशें

ख्वाहिशें दिल की, जैसे चमकते सितारे,
आसमान में फैलीं, मगर हाथ से दूर सारे।

हर सुबह एक नई उम्मीद, प्रत्याशा जगाएं,
हर रात, खामोशी की आगोश खो जाएं।

ख्वाहिशें मासूम, जैसे बचपन सी जिज्ञासा,
कुछ हठ धर्मी पर्वत जैसी अचल विश्वास।

कभी होतीं पूरी, कभी ख्वाहिशें अधूरी ,
कभी होता गम कभी खुशी, ये होती पूरी।

कभी खुदा से दुआ, कभी खुद को मनाएं,
ख्वाहिशों में खोकर हम दुनिया नई बसाएं ।

कुछ ख्वाहिशें मीठी, कुछ होतीं कड़वी।
जीवन का सच, इनके बिन जिंदगी अधूरी।

ख्वाहिशें हैं, जीवन के सफर की धड़कन,
हर दिल की चाह, हर धड़कन की तपन।

ख्वाहिशों में ही छिपा एक सफर निरंतर,
पूरी हो या न हो, ये सफर होता है अनवरत।

तुलसीदास काव्य*शिरोमणि

तुलसी लेखनी से निकली, रामायण की गाथा,
हर शब्द में बसी है, राम प्रेम की अथाह कथा।

रघुकुल के रत्न की, अद्भुत जीवन रचना,
हर चौपाई में गूंजती, राम के आदर्शों की संरचना।

तुलसी रामायण का हर पृष्ठ, सत्य के sधर्म का मान,
अयोध्या से लंका तक, फैला राम का गुणगान।

सिया राम की मिसाल, आदर्श नारी की पतिव्रता,
हर कण में बसती है, सीता की सच्ची पवित्रता।

अरण्य में वनवास की पीड़ा, सीता की व्यथा,
तुलसी ने संवारा, अपने शब्दों में वो दुख भरी गाथा।

तुलसी की लेखनी में, लक्ष्मण का भ्राता प्रेम सदा,
भरत का माया मोह त्याग व सिंहासन त्याग सर्वदा।

लंका की ज्वाला में भी, सत्यता का दीप जलाया,
राम ने रावण को मार, असत्य का अंत कर दिखाया।

तुलसी की रामायण में, है जीवन का सार,
हर युग में राम कथा, देती नई राह का आधार।

तुलसी का ये महाकाव्य, अमर है, अविरल धारा,
तुलसी के शब्दों में, काव्य शिरोमणि की विचार धारा।

रामायण पाठ में मिलता है, जीवन का एक संदेश,
तुलसीदास जी के संग, पाते हैं हम सत्य का प्रवेश।

यादें हमारे बाल जीवन की

हमारे बालजीवन की दुनिया थी,कल्पनीय रंग-बिरंगी और सतरंगी,
सपनों की अटूट लहरें थीं और बालमन की उम्मीदों की चिंगारी।

मम्मा के संग बालकपन रात में तारों से बातें, चाँद से चंदा मामा खेलें,
चचेरे के संग बारिश में नाले, नदी की लहरो में कागजी नाव से खेले।

बालमन में रहती थी आकाश को छूने और उड़ने की जिज्ञासाऐं,
हर बार और हर पल कुछ नया करने की आशा और प्रत्याशाऐं ।

मिट्टी की खुशबू में रिमझिम बारिश के पानी की अविरत फुहार,
सावन की बरखा भी बालमन में मस्तियां और खुशियाँ लाती थी बारंबार।

बचपन के बाल साथियों के संग होती थी लड़ाई और हँसी-ठिठोली,
बालमन में उनके संग सदैव चलती थी ईद, होली और दीपावली।

बालक जीवन में नहीं थी कोई किसी परेशानी, भय और अड़चन,
स्वछंद किलकारिया,शोर, मस्ती व कोलाहल युक्त था बचपन।

दादी और नानी के संग रात्रि कहानी में खो जाता था बाल मन ,
उन कहानी में भूत और परियों की दुनिया में चल जाता था अबोध तन।

रंग-बिरंगे फूलों की होती थी हरी भरी और पुष्पित गुलाबी क्यारियां,
बालकपन में फुल तोड़ते, डोलते आच्छादित पुष्पित फुलवारियां।

बालकजीवन होता था हर बड़े, बुजुर्ग और परिजन का प्यारा,
बालमन होता था सच्चा,सरल,सहज, अबोध व सबका दुलारा।

बालक जीवन खेल-खेल में अपने स्वप्न से उड़ान के रंग भरता,
हर दिन , प्रति पल, बाल बुद्धि सबअपने खेल बारंबार रचता।

अगर मौका मिला तो

अगर मौका मिला तो,
कुछ नया कर दिखाएंगे।
ख्वाबों को हकीकत में,
हम जरूर मिलाएंगे।

अगर मौका मिला तो,
उम्मीदों के पंख लगाएंगे।
रुके हुए सपनों को,
आसमान तक पहुंचाएंगे।

अगर मौका मिला तो,
मुश्किलों से लड़ जाएंगे।
राहों में जो अंधेरा है,
उसे रोशनी से भर जाएंगे।

अगर मौका मिला तो,
दिल की बात कह जाएंगे।
जो कह नहीं सके अब तक,
सब कुछ खुलकर बतलाएंगे।

अगर मौका मिला तो,
दुनिया को दिखाएंगे।
अपनी मेहनत और लगन से,
हम भी सितारे बन जाएंगे।

बाल कविता

बालक की दुनिया रंग-बिरंगी,

सपनों की लहरें, उम्मीदों की चिंगारी।

तारों से बातें, चाँद से खेलें,

नदी की लहर में कागजी नाव खेले।

आकाश को छूने की जिज्ञासा,

हर पल कुछ नया करने की आशा।

मिट्टी की खुशबू, बारिश की फुहार,

बालमन की खुशियाँ होतीं बारंबार।

साथी संग हँसी-ठिठोली,

बालमन का हर समय हो होली।

बिना किसी परेशानी, बिना किसी डर,

बालमन की किलकारी है स्वतंत्र भरपूर।

नानी की कहानियों में खो जाता बाल मन ,

परियों की दुनिया में चला जाता अबोध तन।

रंग-बिरंगे फूलों की हरी भरी बगिया,

बालक में बसी चहुं ओर हरित क्यारियां।

बालक है हर छोटे-बड़े का प्यारा,

बालमन सच्चा, सरल, और दुलारा।

खेल-खेल में बचपन के रंग भरता,

बाल बुद्धि अपने स्वप्न को बारंबार

हमारा प्यारा हिन्दुस्तान

मोहब्बत है हमें वतन से,
रूह में बसी इसकी खुशबू।
बाजुओं में ताकत, दिल में हौसला,
इसकी रक्षा का है हरदम अरमान।

सरहद पर खड़ा हर सिपाही,
हमें गर्व है उसकी कुर्बानी पर।
वतन पर जान फिदा करना ही
उनका मकसद है जवानी का।

मादरे वतन की इस माटी में,
बसता है हमारा दिल और जान।
मादरे वतन की मुहब्बत से,
बढ़कर कोई नही है सम्मान।

वतन की मिट्टी भी अहसास दिलाती है,
हम अपने दिल में हिन्दुस्तान रखते हैं।
तिरंगा प्यार की निशानी का संदेश देता है,
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई शौर्य दिखाते है।

सरहदों पर बसा है प्यार,
रगों में बहती इसकी धार।
इसकी आन, बान, और शान,
सबसे बढ़कर, सबसे महान।

मां की ममता, बहन का प्यार,
सब है इसमें समाहित।
वतन की खातिर जीते-मरते,
हर दिल में है ये निहित।

मिट्टी की सौंधी खुशबू में,
हमने अपना दिल लगाया।
वतन से मुहब्बत हमने,
दिल की गहराइयों से निभाया।

क्रोध पर कुछ काव्याँश

क्रोध की ज्वाला में जल न जाएं,
शांति का पथ हम सब अपनाएं।
वाणी में मिठास हो, मन में समर्पण,
क्रोध को दूर रखें, करें आत्मावलोकन।

क्रोध जब मानव में धधकता है,
सुख-शांति सब कुछ जलता है।
क्रोध में जो भी बोला हमने,
वह तीर बनकर वापस आता है।

जीवन में मधुर संतुलन बनाएं,
क्रोध को स्वयं पर हावी न होने दें।
मधुर वाणी और धैर्य का दामन थामें,
सच्ची शांति और स्नेह का दीप जलाएं।

शांति से जो काम किए जाएं,
क्रोध की आग में न जल जाएं।
संतोष का अमृत पीकर हम,
क्रोध पर नियंत्रण पाकर हम,
प्रेमबंधूता और धैर्य का संकल्प लें।

शिक्षा में दीक्षा

शिक्षा का दीप जलाए जो,
दीक्षा का मंत्र सिखाए वो।
ज्ञान की गंगा बहाए जो,
वही सच्चा गुरु कहलाए वो।

शिक्षा से हो जीवन प्रकाशित,
अंधियारा हो जाए निष्कासित।
शिक्षा सदैव अर्जित करे जो,
सपनों को वो साकार करेंवो।

गुरु की दी गई ज्ञान की दीक्षा,
जीवन की बने आधार शिक्षा।
शिक्षा से तहज़ीब मिले जो,
सच्चाई, प्रेम और ज्ञान जगे वो।

ज्ञान का दिव्य प्रकाश फैलाकर,
अंधकार को समाज से मिटाकर।
शिक्षा की दीक्षा के पवित्र यज्ञ में,
विद्या प्रज्ञा को हम जगाएँ मन में।

शिक्षा के महत्व को समझें,
शिक्षा में दीक्षा का पालन करें।
जीवन को सार्थक बनाएं,
सपनों को साकार करें।

शिक्षा का दीप जलाए जो,
दीक्षा का मंत्र सिखाए जो।
ज्ञान की गंगा बहाए जो,
वही सच्चा गुरु कहलाए जो।

दीक्षा से हो जीवन प्रकाशित,
हर अंधियारा हो जाए निष्कासित।
शिक्षा की धारा में जो बहें,
सपनों को साकार करें।

गुरु की दी हुई दीक्षा,
जीवन की बने आधार।
शिक्षा से हम सबको मिले,
सच्चाई और संस्कार।

ज्ञान का प्रकाश फैलाकर,
अंधकार को हम मिटाएँ।
दीक्षा के इस पवित्र यज्ञ में,
हर मन को हम जगाएँ।

शिक्षा का महत्व को सब समझें,
शिक्षा में दीक्षा का पालन करें।
जीवन में इस कर्म को सार्थक बनाएं,
जीवन के सपनों को सार्थक करें।

शिक्षा में दीक्षा का मिलन,
जीवन का ये अनुपम धन।
ज्ञान की राह पर चलकर,
बनें सभ्य और सच्चे इंसान।

शिक्षा की ये पावन धारा,
सपनों का साकार किनारा।
ज्ञान का दीप जलाए जो,
हर अंधियारे को मिटाए वो।

गुरुजन की दी हुई शिक्षा,
बनती है जीवन की दिशा।
सत्य, धर्म और प्रेम की सीख,
हर शिक्षार्थी को मिले दीक्षा।

शिक्षा का ये अनमोल रत्न,
सजगता का करे प्रदर्शन।
कर्तव्यों की राह दिखाए,
हर बाधा को सरल बनाए।

दीक्षा में मिले जो ज्ञान,
शिक्षा से हो उन्नति अपार।
ज्ञान की हो ऐसी ज्योति,
हर दिशा में फैलाए रोशनी।

जीवन एक वरदान है कविता

जीवन का यह अनुपम वरदान,
रब से मिली हमें सजीव पहचान।
जीवन है सपनों, संघर्षों का संग्राम,
प्यार और विश्वास, यही है अरमान।

जीवन का यह वरदान अनमोल,
समझें इसे, सतकर्म करे बिना तौल।
हर पल को जिएं, हर दिन करे प्रयास,
जीवन को संवारें, यही है मूल संदेश।

जीवन है ईश्वर का अनमोल उपहार,
हर पल में छिपा है स्नेह का संचार।

हर सुबह नई उम्मीद का सूरज उगता,
सुख दुःख का संगम नव स्वप्न संजोता।
समय की धारा में बहता है जीवन,
हर लम्हा सिखाता है नया प्रयोजन।

कभी विकट डगर और अप्रत्याशित सफर,
जीवन का हर मोड़, सिखाता है नया हुनर।
निराशा के अंधकार में परिवार है सहारा,
जीवन में हर रिश्ता, एक नाता गहरा।

संघर्षों में निखरता, सफलता में चमकता,
जीवन की तपस्या का अद्भुत रंग निखरता।
हर कठिनाई में छुपा है एक रहस्य संदेश,
जीवन का यह वरदान, रब का आदेश।

दोस्ती एक रिश्ता

दोस्ती इक रिश्ता है अनमोल बंधन,
जैसे चाँदनी रात में प्यारा सा चंदन।

मन का मिलन है सच्चा और प्यारा,
सुख-दुख में साथ जैसे भ्राता न्यारा।

कभी रूठना, हंसाना कभी मनाना,
दोस्ती का यह खेल है बड़ा सुहाना।

मुश्किलों में भी दोस्ती साथ निभाते,
दोस्ती रुपी दीपक हर डगर जलते।

विपत्ति व आपदा ज़िंदगी के साथ में,
दोस्त के साथ ये निकल जाए पल में।

दोस्ती का बंधन, हमेशा रहे अमर,
दोस्ती की छाँव में, जीये सुखकर।

हरियाली का रस

हरे-भरे ये वन, ये बाग,
जीवन को देते अमृत का स्वाद।
पत्तों की छांव में बसेरा,
प्रकृति का यह अद्भुत बसेरा।

घास की नर्म चादर ओढ़े,
धरती माँ का आंचल है फैला।
फूलों की महक, ताजगी की बयार,
हरियाली का यह अनुपम उपहार।

सुनहरी धूप की किरणें,
पेड़ों के बीच से छनती।
पक्षियों का मधुर संगीत,
मन को हर पल रसमय करती।

तालाबों में क्रीड़ा करती मछलियाँ,
जल में भी हरियाली का बसेरा।
सजीवता से भरपूर यह जीवन,
प्रकृति का यह सुंदर नजारा।

बारिश की बूँदें जब गिरें,
धरती माँ की गोद में समा जाएँ।
हर कोना हरा-भरा हो जाए,
जीवन में हरियाली समा जाए।

संभालें इसे, बचाएं इसे,
हरियाली का यह उपहार।
धरती को सुंदर बनाएं,
प्रकृति का यह प्यार।

मित्रता

मित्रता की डोर हो अटूट,
जैसे सागर का पानी,
जो भी आ जाए उसमें,
हो जाए उसका दीवानी।

मित्रता हो गहरी,
जैसे धरती और आकाश,
जिसमें न कोई दूरी हो,
न कोई हो उपहास।

साथी हो ऐसा प्यारा,
जैसे चाँदनी रात,
जिसके बिना अधूरी हो,
हर सुबह की बात।

मित्रता का रंग हो,
सबसे सुंदर और प्यारा,
जो भरे जीवन में,
खुशियों का सितारा।

मित्रता की ये मिसाल,
सदा रहे अमर,
जिसमें बसा हो स्नेह,
और हो सच्चा सफर।

मित्र का साथ हो,
जैसे हो सुखद हवा,
जो हर दुख में बांटे खुशी,
और हो सदा मृदुल धरा।

मित्र के बिना जीवन,
जैसे हो सूनी राह,
जिसमें न हो कोई हँसी,
न हो कोई उल्लास।

मित्र का हाथ हो थामे,
जैसे हो सुदृढ़ दीवार,
जो हर तूफान से बचाए,
और दे स्नेह का उपहार।

मित्रता का ये रिश्ता,
हो सबसे अनमोल,
जिसमें हो सिर्फ प्यार,
और खुशियों का बेमोल।

मैं कवि हूं

मैं कवि हूं मैं मैं कवि हूं, मैं लिखता हूं, मन की बात सुनाता हूं,
शब्दों के सागर में गोते लगाता, जज्बातों का चित्र बनाता हूं।

हर भावना को रंगता हूं, कल्पना के पंख लगाता हूं,
सुख-दुख की अनुभूतियों को, कविता में पिरोता हूं।

जिंदगी के हर पहलू के दृश्य को, कागज पर उतारता हूं,
प्रकृति, प्रेम और विरह के, भावों गीतों को संवेदित करता हूं।

कभी हंसाता, कभी रुलाता, कभी सोच में डुबाता हूं,
कवि हूं मैं, शब्दों की महक से दुनिया को महकाता हूं।

जो कह न सकें लोग, वो मैं कविता में कह जाता हूं,
दिल के जज़्बातों को, हर पंक्ति में बुनता जाता हूं।

मैं कवि हूं, मैं लिखता हूं, मन की बात सुनाता हूं,
शब्दों के सागर में गोते लगाता, भावों का चित्र बनाता हूं।

स्वाधीनता पर कविता

स्वाधीनता की ज्योति जलाकर, हर दिल में उल्लास हो।
भारत राष्ट्र की सेवा सुश्रुषा ही सदा हमारा काम हो।
वीरों ने बलिदान दिया था ताकि सब हम आज़ाद हो।
हमारी धरती पर कहीं भी, न फिर कोई अत्याचार हो।
सब मिलकर संकल्प लें, नवभारत का निर्माण हो,
स्वाभिमान और समानता, हर ह्रदय का आभास हो।
स्वाधीनता के पथ पर चलकर देश का मान सम्मान हो,
विकास और प्रगति की पथ पर, हर कदम हमारा खास हो।
संविधान ऊंचा रहे हमारा, इसका मान कभी कम ना हो,
शहीदों के सर्वस्व बलिदान का, सबका सर्वदा मान हो।
शांति, बंधुता और देश प्रेम से हम सबका का सम्मान हो।
नफ़रत, वैमनस्य और असहिष्णुता का बारम्बार अपमान हो।
देश में हर जाति धर्म पंथ रंग नस्ल का बारंबार सम्मान हो।
स्वाधीन देश में संविधान मूल का हर बार सबका ध्यान हो।
स्वाधीन देश की “अनेकता में एकता” का हर नागरिक को भान हो ।

अतिथि देवो भव

अतिथि देवो भव, यही है हमारी तहज़ीब महान,
मेहमानों का ख़ैर मकदम होती है यहाँ की पहचान।

जब भी कोई आए अपने द्वार, बनें हमारे वो मेहमान,
दिल खोल कर करें स्वागतम और मान-सम्मान।

रोटी, कपड़ा और मकान, में जो भी हो सके, करे प्रदान,
मन की अपनी सहिष्णुता उदारता से, बढ़ाएँ उसका मान।

वेद-पुराण में भी, इसको कहा गया है बारंबार,
अतिथि को देव समझें, यही मानवता का सार।

मन के पवित्रता समानुभूति से हो हर कार्य संपन्न,
मेहमान नवाजी से कभी नहीं होते कोई विपन्न।

आओ सब मिलकर के इस अद्भुत श्लोक को अपनाएं,
अतिथि देवो: भव: का, संदेश को हर दिल में बसाएं।

स्वाधीनता पर मुक्तक

१. स्वतंत्रता की रोशनी, हर दिल में जल रही है,
शहीदों की कुर्बानियाँ, ये कहानी कह रही है।
आओ मिलकर सब मनाएँ, आज़ादी का ये पर्व,
भारत वर्ष की जयकार, गगन में गूंज रही है।

२. वतन के वीरों की गाथा, सदा हमें प्रेरित करती,
उनकी अटल निष्ठा से, धरती अम्बर हिलती।
चलो उनके पथ पर हम, बढ़ाएँ कदम मिलाकर,
देशप्रेम का ये जज्बा, हर दिल में भरती।

३. तिरंगे की शान में, हर लहराते हैं,
हम उस मिट्टी के वासी हैं, वीरों की भूमि कहाते हैं।
देश के सरहद की रक्षा करना, हमारा परम धर्म,
देश के उन वीरों को सलाम सदा करते हैं।

४. स्वाधीनता की बात जो आती है,
हर दिल में एक ज्योति जगाती है।
बलिदानों की धरती पर खड़े हम,
भारत के गौरव की महिमा गाती है।

५. वीरों का लहू जहाँ बहा था,
आज़ादी का सूरज वहाँ उगा था।
सलाम उन शहीदों को बार-बार,
जिन्होंने हँसते-हँसते जीवन दिया था।

चूल्हा चौका

चूल्हा चौका, हर गाँव की रीत,
जहाँ हर दिन बनती नयी प्रीत।

चूल्हे की आँच में माता का प्यार,
उसमें पकता स्नेह प्यार अपार।

सब्जियों की महक, दाल की खुशबू,
चूल्हे पर पकता जीवन का जादू।

घी की चुपड़ी रोटी और पराठों का स्वाद,
सजीव कर देता हर दिन खाने मे प्याज।

सुबह का सूरज, जब चमके आँगन में,
चूल्हे की रौनक, बिखरे चारों दिशामें।

चूल्हा चौका, यह हमारी अनमोल धरोहर,
संस्कारों की जड़े, इससे जुड़ी रहें मनोहर।

तो आएं, हम इस परंपरा को आगे बढ़ाएँ,
चूल्हा चौका के संग, सद्भाव के गीत गाएँ।

प्रकृति प्रेम पर कविता

यह धरा, यह अंबर, शीतल पवन का अद्भुत स्पर्श,
प्रकृति के इस अनुपम उपहार में बसा वैभव हर्ष।

हरियाली की चादर ओढ़े, पेड़ों की छांव से धरती प्यारी,
अम्बर से मेघ बरसते, पृथ्वी को करते हरित क्यारी।

फूलों की सुरभित बगिया, पक्षियों का मधुर गान,
प्रकृति की गोद में है सजीवता का अद्भुत विज्ञान।

नदी की मचलती धारा, पर्वतों का शांत सहज स्वरूप,
प्रकृति की सुंदरता में बसा हर दिल का सुखद रूप।

तूफानों की गरज में भी, है एक नई कहानी,
प्रकृति के हर रंग में छुपी है कुदरत की रवानी।

प्रकृति का यह अनुपम दृश्य, हमें सिखाता प्यार की भाषा,
इसके हर अंग में बसी है, जीवन की सच्ची परिभाषा।

तो आओ, हम भी इसके संग, प्रकृति प्रेम का उत्सव मनाएँ,
प्रकृति के इस अद्वितीय उपहार को, सदा-सदा अपनाएँ।

टूटते हुए सपने पर कविता

सपनों की किरणें थीं, चमकती थीं रातों में,
आशाओं के दीप जलते थे, हर एक साँसों में।
नींद की गोद में बसी थीं, उम्मीदें अनगिनत,
किसी ने सोचा भी न था, ये होंगे क्षणिक।

वक्त के हाथों में था, खेल किस्मत का,
अचानक एक झोंका आया, ध्वस्त हुआ सपना।
बिखरे अरमानों की आवाज, सुनाई दी चारों ओर,
आँखों में आँसू, दिल में दर्द, न कोई संबल था और।

टूटते हुए सपने, खामोश चीखते हैं,
अधूरी कहानियाँ, अपने हिस्से की माँगते हैं।
फिर भी जिन्दगी चलती है, नए सपनों की तलाश में,
कभी न हारने वाले, उठते हैं फिर आशा में।

हर टूटन में है छिपा, एक नया संबल,
हर बिखरे सपने में है, नई उम्मीद का पल।
तोड़कर हर बंधन, हम फिर से उठें,
सपनों की दुनिया में, फिर से नए रंग भरें।

प्रेमचंद: साहित्य के शिल्पकार

साहित्य के शिल्पकार थे प्रेमचंद महान,
कथाओं के रचनाकार, थे अद्भुत उनकी पहचान।

कलम के जादूगर, सजीव चित्र उकेरे,
समाज के यथार्थ को, शब्दों में पिरोते थे।

कहानियों में गरीब की पीड़ा और संघर्ष,
अमीर-गरीब, हर किसी के दिल की बात करते थे।

‘गोदान’ से ‘गबन’ तक, हर रचना थी अनमोल,
प्रेमचंद की लेखनी, मानो शब्दों की माला हो।

सच्चाई की आवाज, उनके शब्दों में गूंजती,
हर पात्र में जीवन की, कोई नई कहानी छिपी।

जीवन के हर रंग को, उन्होंने बखूबी उकेरा,
प्रेमचंद की रचनाएँ, सदा प्रेरणा का बसेरा।

हमेशा रहेंगे हमारे दिलों में, प्रेमचंद के विचार,
उनकी कहानियाँ हमें सिखाए, जीवन का सच्चा सार।

मित्र

बड़े भाग्य से मित्र मिलते हैं,
मित्रता से ही जीवन खिलते हैं।
मित्र ही सच्चे साथी होते हैं,
सुख-दुख में सदा साथ होते हैं।

मित्रता का बंधन अनमोल है,
यह जीवन का सच्चा रस है।
मित्रता से दिल की बातें कहें,
दूरियों को भी पास लाएं।

सच्चे मित्र का साथ मिले,
हर मुश्किल में हौंसला मिले।
मित्रता की मिठास न भूले,
साथ-साथ चलें, साथ-साथ झूमें।

मित्रता का रिश्ता सदा रहे,
हर दिल में यह धड़कन बने।
सच्चे मित्र का सम्मान करें,
जीवन में खुशियाँ अपार भरें।

अनजान राहों के हमराही

अनजान राहों के हम राही,
मंज़िल की तलाश में निकले,
हर कदम पर है एक नया मोड़,
हर मोड़ पर हैं सपनों के मेले।

सफ़र की इन कठिन राहों में,
दिल ने ठाना है चलते जाना,
न हार मानेंगे न रुकेंगे हम,
हर मुश्किल को है पार पाना।

हवाओं का संग, नदियों की धुन,
इनके संग गाते हैं अपने गीत,
हर पल को जीते हैं हम खुलकर,
खुशियों से भरते हैं जीवन की रीत।

सपनों की चादर ओढ़े हुए,
चलते जाते हैं अनजाने पथ पर,
सफर में ही है असली मजा,
मंज़िल तो है बस एक पड़ाव भर।

जो भी मिले हमें इस राह में,
उससे सीखते हैं कुछ नया,
हर चेहरा एक कहानी कहता,
हर कहानी से बढ़ता है अपना हौंसला।

अनजान राहों के हम राही,
मन में उम्मीदों की लौ जलाए,
चलते हैं हम निर्भीक होकर,
सपनों को साकार बनाने के लिए।

मेरी पहली रेल यात्रा (पद्य)

रेल की पटरियों पर धक धक की आवाजें,
यात्रा की शुरुआत में खोया स्वप्न सजाएँ।
स्टेशन की भीड़, झलक एक नई दिशा की,
मन में समा गई उमंग तरंग और आशा भी।

टिकट लेकर ट्रेन के कोच सीट को जाना,
धड़कनें बेताब, रेल की पटरी पर चलना।
कोच की खिड़कियों से बाहर मैं झाँका,
हर दूर दृश्य नया, मेरे भारत में पाया।

फूलों से लदे खेत, हरे-भरे चहुंओर जंगल,
रात की ठंडी हवा,चंदा मामा का रंग चंचल।
गाँव की झोपड़ियां, बच्चे मुस्कान बिखेरते,
जैसे गांव की ओर भारत की सैर करवाते।

चाय के कप में भी उबलती मन की बातें,
यात्रा की मीठी लहरें, देखी दिन और रातें।
साथ में यात्रियों की कहानियाँ की साझा,
हर पल में बसी, नई दुनिया की नई बातें।

हर स्टॉपेज पर स्टेशन में दृश्य है हलचल,
जीवन की इस यात्रा, दिनरात है कोलाहल।
गंतव्य पहुँचते ही, ट्रेन के रुकने का समय,
प्रथम रेल यात्रा स्मृति से मन रहा सुखमय।

भूल सुधार कविता

भूलें सबके जीवन में आतीं,
उनसे मत घबराओ,
भूल सुधार का अवसर पाकर,
नव पथ पर बढ़ते जाओ।

गलतियाँ सब करते हैं यहाँ,
मनुष्य का ये स्वभाव है,
भूलों से सीख जो पाए,
वही सच्चा नवाब है।

जब तक धड़कन है इस तन में,
तब तक सुधार की आस है,
भूलों को स्वीकार कर लो,
यही जीवन का विशेष आभास है।

हर भूल एक पाठ है,
जिससे जीवन संवरता है,
जो सुधार की राह पर चले,
वही सच्चा पथिक कहलाता है।

अंधकार से उजाले तक,
भूल सुधार की राह है,
कदम-कदम पर सीख मिलती,
यही जीवन की चाह है।

इसलिए मित्रों, ना पछताओ,
भूल सुधार कर आगे बढ़ो,
जीवन का यही है मर्म,
हर पल नया सवेरा गढ़ो।

कारगिल के वीर

बर्फीली चोटियों पर जब दुश्मन ने सारा डेरा डाला था,
वीर सपूतों के बढ़े कदम से, मौत को भी मात देता था।

रक्त से रंजित वो भूमि, जहां शौर्य का इतिहास लिखा था,
हर कदम पर साहस की गाथा, हर सैनिक ने अपूर्व दिखा था।

वो बर्फीली हवाएं भी जिनसे कंपकंपा जाए तन-मन,
उन हालातों में भी लिए दिलों में देशप्रेम का प्रण।

कभी न पीछे हटे जो, कभी नही भय से झुके वो,
इस धरती माँ के लाल वो, अद्वितीय साहस के प्रतीक जो।

याद है वो तिरंगा लहराता, दुश्मन को धूल चटाना था,
हर सैनिक के दिल मे सपना, देश को विजय दिलाना था।

कारगिल के वीर तुमको, शत-शत सलाम हमारा है,
तुम्हारी शौर्य गाथा से, गौरवित देश हमारा है।

उनके बलिदान की सोंधी महक जो हर घर-आंगन में फैली थी,
वीरता की ये गाथा जो सदियों तक नही पुरानी थी।

देश के वीर सपूतों को, हर जन का प्रणाम हो,
कारगिल के योद्धाओं को, हमारा सदा सलाम हो।

काश कुछ ऐसा होता।

काश कुछ ऐसा सभी को नसीब होता,
न्याय, समता, बंधुता का जहां सजता,
चहुँ ओर खुशियों की बरसात होती,
हर दिल में अनन्य प्यार,समानुभूति बसती।

नदियाँ करूणा,दया,प्रेम का संगीत गातीं,
फूलों में एकता की खुशबू का रंग भरता,
आकाश अनेकता में एकता के इंद्रधनुष से,
प्रतिपल मानवीय सौहार्द का सवेरा होता।

मानवीय मूल्यों का अखण्ड गीत गूंजता,
नफ़रत और धार्मिक उन्माद का अंत होता,
वैमनस्य, द्वेष, ईर्ष्या, प्रतिशोध खत्म होता,
काश जहाँ हर व्यक्ति प्रेमसद्भाव से झूमता।

मनमानी पर कविता

मन की बातों को ना करना, मनमानी कहीं भारी है,
अपनों के दिल को तोड़कर, सच्चाई बड़ी न्यारी है।

जो चाहा वो ही करना, ये आदत नहीं अच्छी है,
सुनो सबकी, मानो सही की, यही राह सच्ची है।

मनमानी में भले सुख मिले, पर पीड़ा भी आएगी,
स्वार्थ की इस राह पर, आखिर में अकेलापन पाएगी।

मनमानी छोड़कर, सच्चाई को अपनाओ,
अपने और परायों में, प्रेम की जोत जलाओ।

समझो सबकी भावनाओं को, और दिल से प्यार करो,
मनमानी छोड़ दो, जीवन को सार्थक और सुंदर करो।

जीवन का सार और उद्देश्य

जीवन या हयात ए जिंदगानी का सार उद्देश्य क्या है, ये प्रश्न महान?
ढूंढते हैं उत्तर इसका अपने कर्म, धर्म, मर्म और परमार्थ मे सदियों से इंसान।

कुछ कहते हैं मोज, मस्ती में, ऐश व इशरत में है जीवन का है सार,
दूसरे बताते आपस के प्रेम में, सेवा, सौहार्द में मिलता हमें आधार।

सत्य ज्ञान की खोज में, कुछ लगाते हैं अपनी माल और जान,
धर्म, कर्त्तव्य परायणता की राह पर, चलता है कोई इंसान।

मगर असल में जिंदगानी का सार या उद्देश्य है बस इतना,
हर पल को ईमान, सब्र, शुक्र से जीना और खल्क की खिदमत करना।

दूसरों के दुख में बांटना अपना हाथ और उनके लिए दुआ करना,
खुशियों में, सभी की सहभागिता और खुदा का शुक्र अदा करना।

जीवन का सार उद्देश्य है, स्नेहता, दया और करुणा फैलाना,
हर दिल में खुशियों की रोशनी का रौशन दीपक बनाना।

स्वयं को जानो, और जानो उस सृष्टि रचयिता का संसार,
जीवन का का क्या उद्देश्य है, जानो उसकी कुदरत का असली सार।

जीवन की राहें कितनी भी विकट कठिन होती हैं, मंज़िलें दुर्गम,
फिर भी चलते रहो सदैव ईमान, विश्वास और उम्मीदों के संग।

रोज़ हंसते हुए रोते हैं, रोते हुए हंसते चले जाते है इंसान,
जीवन के इस अनोखे खेल में, हर पल का सदुपयोग और जाने ईमान।

सच्चे सपनों की ऊँचाईयों में, ईमान के हौंसले की दो परवाज़,
मुश्किलें चाहे जितनी हों, बढ़ते रहना है खुदा के करम से आज।

प्रेम, दया, करुणा, श्रद्धा,अनुभूति सहानुभूति का जीवन में दे स्थान,
इनके बिन व्यर्थ है उसका जीवन और बिल्कुल अधूरा है हर एक इंसान।

समय की निरंतर धारा में, यूं ही बहते रहें हैं हम सब इंसान,
आज ही सदकर्म करो,कल की तो फिक्र भी नही करता पशु हैवान।

जीवन का सार यही है, अपने कर्तव्यों और नेक अमल में लग जाना,
हर दिए पल को खुलुस दिल से, अपना अमल व सद्कर्म बनाना।

इंतजार (वक्त का)

वक्त के आँगन में बिछा इंतजार, उम्मीद की किरणें फूटें नित सवेरे,
धैर्य रूपी धागे में खामोशी की चादर में लिपटी उम्मीद भरें।

वक्त का पहिया घूमता निरंतर, कभी खुशी कभी गम का सुरूर,
इंतजार में है एक अनोखा सुकून,मोहब्बत का जुनून।

तूफानों में उम्मीद की नाव, इंतजार के सफर में ले चलती लहरे,
इंतजार का यह सफर मे वक्त के हर पल में मिलन का रंग भरे।

इंतजार की ये रात, हर सुबह की दहलीज़ पर बिछी प्रत्याशा।
आएगा वो दिन, जब प्रेयसी के इंतजार का मिलेगा फल और आशा।

रिश्तों की महक

रिश्तों की महक है अस्तित्व जीवन की जीवंत धारा,
जैसे खुशहाल पुलकित बगिया में खिलता पुष्प प्यारा।

माँ की ममता में मिले, सुखद छत्रछाया शीतल छांव,
पिता के साये में मिले, अदम्य सुरक्षा का भाव।

भाई-बहन की नोक-झोंक, स्नेह का अनूठा तार,
सखी-सखा संग हँसी, बाँटे हर दुख का भार।

प्रेम , विश्वास की खुशबू दिलों में बसाती है महक,
जैसे खिलती है बगिया, हर कोने में पक्षियों की चहक।

दूरियों में भी बसी रहे, ये मिठास की गहराई,
मगर रिश्तों की महक, कभी न हो पाए धुंधलाई।

सच्चे दिल से हर बंधन की कसौटी पे हम खरे उतरे।
प्यार व विश्वास का स्वर्ग जमीं पर हरदम उतरे।

रिश्तों की महक में है, जीवन की सच्ची मिठास,
इनसे ही होता है, हर दिल में होता सच्चा एहसास।

हर दिन प्रतिपल खुशियों की हो अनंत बहार।
परिजन के दिल में बसे, अनन्य प्रेम की अमृत धार।

गुरु

गुरु हैं प्रकाश की किरणें, अंधकार को हरने वाले,
ज्ञान के दीप जलाकर, हमें सच्चाई सिखाने वाले।

जीवन की कठिन हो राहों में, जब हम भटक जाते हैं,
गुरु का ज्ञान वो दीप हैं, जो सही मार्ग दिखाते हैं।

आध्यात्मिक का ज्ञान हो या हो जीवन की सत्यता,
गुरु ही सिखाते हैं हमें, जीने की सच्ची प्रबलता।

उनके सत्य वचनों में है सुख, उनकी वाणी में मिठास,
गुरु है ज्ञान का सागर, जो करता है जीवन को खास।

शिक्षा के मंदिर में, गुरु की महिमा है स्वाभिमान,
उनके बिना अधूरा है, जीवन का हर अरमान।

गुरु की महिमा अपरम्पार, उनका योगदान अमूल्य,
उनके सत्य वचन, शाश्वत शिक्षा, हमें बनाती है बहुमूल्य।

गुरु पूर्णिमा के दिन, हम सब करते हैं सलाम,
गुरु की सद वचनों में समर्पित, है हमारा प्रणाम।

गुरु का ज्ञान, स्नेह और आशीष, हमें बनाता महान,
उनकी आशीर्वचनों से ही होता है, हमारा हर सपना साकार।

प्यार का मोल कोई ना जाने पर कविता

प्यार का मोल कोई ना जाने,
दिल की बातें दिल ही माने।
बिन बोले सब कुछ कह जाए,
ये वो भाषा, सबको ना भाए।

सपनों में भी रंग भरता है,
जीवन को मधुर बनाता है।
दुख में भी मुस्कान सजाए,
हर दुःख,दर्द को सहलाता है।

प्यार में कोई शर्त नहीं होती,
ये दिल की सच्ची बात होती।
सिर्फ एहसासों का है ये खेल,
जिसमें जीत हार समान होती।

दौलत से नहीं तोला जाता,
सच्चे दिल से पाया जाता।
प्यार का मोल कोई ना जाने,
अनमोल जीवन रहस्य को जाने।

पर्यावरण आधारित काव्यांश

धरती माँ की गोद हरी, हरियाली से भरी-भरी।
प्रकृति का उपहार महान, संभालो इसका मान-सम्मान।
पेड़ पौधे हैं जीवनदाता, प्रकृति के सच्चे संरक्षक।
हवा, जल, मिट्टी, वनस्पति,सबका करो तुम रक्षक।
नदियाँ बहती शुद्ध जल से, जीवन का है ये अमृत रस।
रखो इन्हें स्वच्छ और निर्मल, संभालो इनका अद्भुत जल।
प्रकृति का संरक्षण ज़रूरी, हरितिमा को रखो पूरी।
कम करो प्रदूषण का बोझ, धरती को दो सच्चा स्नेह।
संवेदनशील और जागरूकता से,पर्यावरण का रखो ख्याल।
हमारा फर्ज़ है सबसे पहले, पृथ्वी की करो उचित देखभाल।
हरी-भरी पृथ्वी हमारी, जीवन की ये धारा प्यारी।
पेड़-पौधे, फूल-कलियाँ, प्रकृति की ये अनमोल क्यारी।
नदियाँ बहती निर्मल जल से, जीवन की प्यास बुझाती।
साफ हवा, नीला आसमान, प्रकृति का है ये वरदान।
पर्यावरण की करो रखवाली, बन जाओ इस धरोहर के माली।
मत करो इसे प्रदूषित, धरती को रखो सजीवित।
हम सबका कर्तव्य है ये, प्रकृति का संरक्षण करें हर दिन।
आओ मिलकर प्रण ये लें, पर्यावरण को संरक्षित करें।
हरी-भरी ये धरती बचाएं, सुंदर भविष्य का स्वप्न सजाएं।

एक गज़ल

मौसम की गुफ़्तगू में रंग-ए-ख़्वाब बुनते हैं,
हम अपने हाले-दिल की दास्तां सुनते हैं।

हर साँस में बसी है यादों की एक किताब,
हम चाँदनी रातों में हर क़िस्सा चुनते हैं।

दिल के शहर में बिछड़ा है कोई क़रीब-सा,
हम राह-ए-जिंदगानी में अब भी सुकूनते हैं।

आँखों में है समंदर, अश्कों में है सफ़र,
ख़्वाब-ओ-ख़्याल के हर मंज़र बुनते हैं।

वो आएगा शरीफ़ कभी उम्मीद है हमें,
हम उसके इंतज़ार में अब भी जीते हैं।

क्या खोया क्या पाया

जब जीवन की राह पर, चलता हूँ मैं अकेला,
सोचता हूँ, क्या खोया मैंने, क्या पाया मैंने।

बीते हुए लम्हों की छाया, मन में झलकती है,
कुछ हँसी, कुछ आँसू, यादों की परतें बनती हैं।

सपनों के शहर में, खो गए कितने अरमान,
फिर भी हिम्मत रखी, जीतने की ठानी मैंने।

मित्रों की मुस्कान में, पाया एक सच्चा साथी,
पर कभी-कभी अकेलापन भी, रहा साथी मेरा।

प्यार की धुन में, खोया दिल कहीं,
पर पाया सुकून, जब उसने मुझे अपनाया।

संघर्ष के दिनों में, खोया चैन और नींद,
पर पाया सफलता, जब मेहनत रंग लाई।

क्या खोया, क्या पाया, यही जीवन की कहानी,
हर पल, हर क्षण, कुछ खोते-पाते रहे हम।

आखिर में, यही समझ पाया मैं,
खोने और पाने का, खेल है ये जीवन।

जनसंख्या नियन्त्रण पर कविता

बढ़ती जनसंख्या का भार,
धरती का कर रही है संहार।
सोचो ज़रा, भविष्य के हाल,
कैसा होगा हमारा संसार।

पेड़ों की जगह इमारतें खड़ी,
जल स्रोतों पर है आफत बड़ी।
प्राकृतिक संसाधनों का हो रहा नाश,
जनसंख्या बढ़ती जा रही है ख़ास।

सोच समझ कर कदम उठाओ,
परिवार को छोटा रख पाओ।
शिक्षा का अलख जगाना है,
जनसंख्या को नियंत्रित बनाना है।

छोटा परिवार, सुखी परिवार,
यही है प्रगति का आधार।
समय रहते चेत जाओ,
धरती को बचाने का संकल्प उठाओ।

जीवन के रंग अपनों के संग

जीवन के रंग अपनों के संग,
खिलते हैं फूल बाग़ में रंग-बिरंग।
खुशियों की बारिश होती हर पल,
जब होते हैं प्रियजन हमारे संग।

स्नेह प्यार की डोरी बांधते अपने ,
उम्मीदों के अरमान रंगीन बनाते।
हर दुःख और दर्द को हर जाते ,
हँसी और प्यार अपनों के संग होते।

हर पल मिलता हौंसला और ताकत,
मुश्किल में मिलता संबल व ईनायत।
जीवन का संगीत अपने सुरों से व्यक्त,
पल पल बनते अनमोल रिश्ते सशक्त।

इस रंगीन जीवन की बस यही सच्चाई,
अपनों के संग है खुशियों की परछाई।
आओ मिलकर सर्व जन मनाएं हर दिन,
जीवन को बनाएं रंगीन अपनों के संग।

मान मिले तो अच्छा है

मान मिले तो अच्छा है, सम्मान की हो बयार,
जीवन की इस यात्रा में, बने रहें हम सदाचार।
सम्मान की माला पहन, दिल खिल उठता है,
अपने कर्मों की खुशबू से, जीवन महक उठता है।

मान मिले तो अच्छा है, पर ना हो अहम का भार,
सरलता और विनम्रता से, बहे जीवन की धार।
सम्मान के सागर में, न डूबे आत्मा की नाव,
अपने सच्चे स्वरूप जान ले बिना दबाव।

मान मिले तो अच्छा है, पर सच्चाई का हो सम्मान,
झूठ और छल से दूर रहें, मानवता की पहचान।
सम्मान का असली अर्थ, अपने भीतर ढूँढो,
परहित में जीवन जीना, सच्चे सुख को पाओ।

मान मिले तो अच्छा है, पर न हो घमंड का भार,
हर रिश्ते में हो स्नेह, न बिखरे विश्वास का तार।
सम्मान का यह सुख, सबके साथ बंटाए,
समभाव के सूरज से, हर दिल में रौशनी बांटे ।

मान मिले तो अच्छा है, पर न हो स्वार्थ की छाया,
सच्चे दिल से सबका हित हो, यही हो जीवन का माया।
सम्मान का यह अद्भुत सपना, जो सबकी आँखों में छाए,
सहिष्णुता का सर्वत्र फूल खिले और दुनिया को महकाए।

मान मिले तो अच्छा है, पर सहानुभूति, मानवता बनी रहे,
दया, प्रेम और करुणा से, हर दिल की बगिया सजी रहे।
सम्मान का सच्चा मूल्य, तब ही हम जान पाएं,
जब हर दिल में बसकर, एक सच्चा इंसान बन पाएं।

मन का दर्पण

मेरे मन का दर्पण, सच्चा और पवित्र,
हर भावना की छवि, इसमें है चित्रित।

सुख की मुस्कानें, दुःख के आँसू,
हर लम्हा है इसमें, जैसे हो जादू।

प्रेम की रंगतें, नफ़रत की छायाएँ,
इसमें झलकती हैं, जीवन की कथाएँ।

सपनों की उड़ान, और हकीकत की राह,
हर दिन के संघर्ष, और जीने की चाह।

मेरे मन का दर्पण, हर पल का साथी,
हर सवाल का जवाब, हर दर्द की गाथा।

ये दर्पण है, मेरी आत्मा की आवाज़,
सच का प्रतीक, और खुद से संवाद।

तन्हाई पर आधारित कविता।

तन्हाई में ऐसा आलम ऐसा छाया,
जिंदगानी का ये एकाकीपन आया।

नभ में चन्द्रमा की रौशनी आई,
पर एकांत दिल में अंधियारी छाई।

फूलों की खुशबू फीकी पड़ जाए,
संगीत की धुनें भी धीमी पड़ जाए।

इस तन्हाई में स्वयं खुद को ढूंढे,
ख्वाबों के पंछी स्वप्नों में खो जाये।

दिल समझा लो, वो वक्त भी जाएगा,
तन्हाई का इक दौर भी चला जाएगा।

शब्दों के जाल में आधारित कविता।

शब्दों के जाल में बनती मनतरंग,
भावनाओ को देता खुशी और गम।

शब्द अर्थ में छुपी होती कहानियां,
कभी खुशीयां, कभी परेशानियां।

शब्दों से बनता हर संवाद विवाद,
इनमें बसा है प्रेम द्वेष का स्वाद।

कभी बनते हैं ये गीत, कभी प्रीत,
हर पंक्ति में छुपा होता है एक मीत।

शब्दों का जादू होता है अनमोल,
इनसे जुड़ते हैं रिश्ते, नाते बेमोल।

हर शब्द करता है किस्सा बयां,
शब्दों के जाल में बंधा है जहां।

बरसात का मौसम

बरसात की रिमझिम बूँदें,
धरती पर बरसें जैसे मोती,
मन में जगाएं उल्लास नए,
पृथ्वी ओढ़े चादर हरियाली।

आसमान में काले बादल,
झूम-झूम कर गाते गीत,
बादलों में बिजली चमके,
प्रकृति का संगीत कड़के।

खुशबू मिट्टी की फैल जाए,
साँसों में भर दे नई ताजगी,
नदी-नाले सब भर जाएं,
जीवन में पानी की बाढ़ आए।

पेड़-पौधे सब खिल जाएं,
पत्तो, फूलों पर बूँदें मोती।
प्रकृति का अद्भुत इशारा,
वर्षा के मौसम का नज़ारा।

बच्चों की किलकारियां गूंजें,
कागज की नावें तैरतीं जाएं।
बरसात में सब मिल धुल जाएं,
खुशियों की रिमझिम हो जाए।

बरसात का ये प्यारा मौसम,
दिल को छू जाए हर दम,
जीवन में भर दे नई उमंग,
धरती पर छाए अद्भुत तरंग।

मुक्तक काव्य पर

पहला मुक्तक :

“चाँदनी रात में, सागर की लहरों का संगीत,
दिल के तारों को छू जाता है, बनता है अतीत।
जिन लम्हों में बसी हो सच्ची खुशी की धुन,
वो कभी नहीं भूलते, चाहे हों जितने भी दूर।”।

दूसरा मुक्तक:

“जाते-जाते ये मत पूछना हमसे, कि क्यों आँखें नम हैं,
विदा के इस पल में भी दिल में बसी वो छवि का गम है।
मिलेंगे फिर कभी, ये उम्मीद नहीं छोड़ते हैं हम,
पर अभी इस विदाई का दर्द, बस ये पल का सितम है।”

तीसरा मुक्तक:

“बिछड़ते वक्त आँसू आँखों में छलक जाते हैं,
यादों के फूल मन के बाग में महक जाते हैं।
विदाई की घड़ी में कुछ कह न पाते हम,
पर दिल की गहराई में अनगिनत अरमान रह जाते हैं।”।

चौथा मुक्तक:

चाँदनी रात हो या हो सवेरा,
तेरी यादों का रहता है बसेरा।
दिल की गहराई में बसा है तू,
तेरे बिना ये जीवन अधूरा सा लगता है मेरा।

पांचवा मुक्तक:

पलकों पे सपनों की बारात है,
दिल में यादों का साथ है।
तुम संग जो बिताए पल,
वो ही तो जीने की असली सौगात है।

प्यारा भारत

भारत की माटी, गंगा जल, हर दिल में बसी कहानी है,
रंग-बिरंगी धरा हमारी, हर कण में बसी जवानी है।

वेदों की ध्वनि, ऋषियों की वाणी, यह संस्कृति महान है,
भक्ति-भावना, प्रेम-पुष्पों की, यह पावन पहचान है।

हिमालय की चोटी ऊँची, सागर की गहराई है,
धरती का स्वर्ग कहाया, इसकी सुंदरता निराली है।

कश्मीर की कली खिलती, केरल की हरियाली,
राजस्थान की मरूभूमि, सबकी बातें निराली।

यहाँ की फसलें सोना उगाएँ, यहाँ का किसान महान,
त्योहारों की मस्ती, मिठास में बसी मिठाईयों की जान।

भाषाओं का मेल है यहाँ, अनेकता में एकता,
हर भाषा में बसी यहाँ, दिलों की मधुरता।

वीरों की भूमि, शूरवीरों की कहानी,
त्याग, बलिदान, वीरता, हर दिल में बसती निशानी।

ऐसा है मेरा भारत, प्यारा देश हमारा,
हम सब मिलकर इसे सजाएँ, यह कर्तव्य हमारा।

—*—

*आज का विषय”वसुंधरा या धरती की अपील” शीर्षक का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण और धरती की रक्षा के लिए लोगों को जागरूक करना है। यह कविता धरती के माध्यम से मनुष्यों से अपील करती है कि वे पर्यावरण को सुरक्षित रखें, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इसका आनंद ले सकें। यहाँ एक संभावित कविता दी गई है:

वसुंधरा की अपील

सुनो मेरी पुकार, ओ मानव मेरे प्यारे,
मैं वसुंधरा हूँ, तुमसे कुछ कहने को बेताब।

नीले आसमान के तले, हरे-भरे जंगलों में,
खिलते हैं जो फूल, बहती हैं जो नदियाँ,
ये सब मेरे हैं, मेरी ही धरोहर।

तुम्हारे घर-आंगन की खुशबू मैं हूँ,
तुम्हारे जीवन की हर सांस में हूँ,
फिर क्यों मुझे भुलाते हो,
क्यों मेरा दर्द नहीं सुनते हो?

कटते जंगल, सूखती नदियाँ,
बिखरता जीवन, मुरझाते फूल,
क्या यही है तुम्हारी प्रगति का मूल?

संभालो इस धरती को, बचाओ इसकी सुंदरता,
वरना ये हरियाली, ये खुशबू सब खो जाएगी,
और तुम भी समझोगे, कितनी बड़ी गलती हो जाएगी।

आओ मिलकर प्रण लें,
धरती को स्वच्छ और हरा-भरा बनाएँ,
हम सबका कर्तव्य है, इसे संजोएँ और बचाएँ।

*यह कविता धरती की ओर से मानवता से की गई एक मार्मिक अपील है, जिसमें पर्यावरण की रक्षा और संरक्षण की जरूरत पर जोर दिया गया है।

योग पर कविता

प्रातः काल की शीतल बयार,
ले आती है योग से प्यार अपार।

योगआसन की मधुर तपस्या,
अंत करे रोग व दुखद समस्या।

तन की निष्क्रियता करे ये दूर,
मन को मिले एक ऊर्जा ज़रूर।

योग से हो हर रोग को बहिष्कृत,
जीवन बने स्वस्थ, सुखद, परिष्कृत।

वज्र आसान या योग की हो बारी,
प्राणायाम की सारी लहरें न्यारी।

आसन, ध्यान और प्राणायाम,
सभी दे जीवन को नया आयाम।

योग की शक्ति को अपनाओ,
तन-मन को स्वस्थ बनाओ।

जीवन में योग का हो संचार,
हर दिन बने उत्सव का त्यौहार।

बरखा बहार

आ गई फिर से बरखा बहार,
लिए संग में खुशियों का उपहार।

झूम उठे सब बाग-बगीचे,
बूंदों की मधुर आवाज में सजीचे।

धरती ने ओढ़ी हरियाली चूनर,
पवन संग गूंजे पंछियों का घूमर।

बच्चे खेलें कागज की नाव,
नदी किनारे वो चले तेज बहाव।

सोंधी महक से महका संसार,
बरखा ऋतु का है अनुपम उपहार।

मोर और पक्षी नाचे पंख फैलाकर,
प्रकृति स्वयं नए रंगों में सजा कर।
हम सब भी बरखा संग झूमें,
सुख और समृद्धि की बौछार में डूबें।

बरखा बहार का ये अद्भुत नज़ारा,
हर दिल को दे रहा प्रेम का प्यारा इशारा।

रक्त दान दिवस के उपलक्ष में

बूँद-बूँद रक्त की, जीवन संजीवनी है,
हर धड़कन में बसी, अमूल्य संपत्ति है।

जीवन की यह धारा, रग-रग में बहती,
दुर्भाग्य की घड़ी में, उम्मीद की कली है।

दान करो इस रक्त को, निस्वार्थ भाव से,
रखो इंसानियत का मान, सेवा के रथ पर।

किसी की जिंदगी को, संजीवनी जो दे,
ऐसी पुण्य कृति से, न कोई बड़ा कर्म है।

रक्त दान की यह गाथा, प्रेरणा बन जाए
सब मिलके करें, जीवन का सम्मान बढ़ाएं।

बूँद-बूँद रक्त की, जीवन संजीवनी है,
हर धड़कन में बसी, ये अमूल्य संपत्ति है।

पिता जी दिवस पर विशेष कविता

पिता जी मेरे अस्तित्व, आप ही हैं आधार,
पिता के बिना जीवन, जैसे सागर बिन पार।
पिता की छांव में बसी, मेरी हर एक सांस,
उनके बिना यह दुनिया, लगती है उदास।

उनकी मेहनत तपस्या जीवन की धरोहर,
उनकी सीख मुश्किल में लगी बड़ी मनोहर।

उनकी सीख, धैर्य, मुझे मिला वरदान।
उनकी प्रेरणा जीवन का है सम्मान।

उनकी गोद में, सिमटा था संसार,
उनके मिजाज मे था सुख अपार।
उनके बिना, अधूरा है मेरा हर पल,
उनके साथ मिली सफलता हर पल।

पिता ही मेरे अस्तित्व का प्रमाण,
उनकी दुआ से बना हूं इंसान।
उनका सम्मान, मेरी सांस में बसा,
पिता ही मेरे जीवन का प्रमाण।

आपके बिन अधूरी है मेरी कहानी,
पिता मेरे जीवन की अमिट निशानी।
उनकी दुआ से मुश्किल हुई आसान,
पिता मेरे अस्तित्व के हैं ही महान।

प्रकृति की पुकार पर्यावरण संरक्षण

हरी-भरी धरती और नीला आसमान,
नदियाँ बहतीं और सरिता करे गान।

पर्वत ऊंचे ऊँचे, झरने बहते झर-झर,
प्रकृति का प्रतिपल संदेश, सुनो हर क्षण।

वृक्षों की ठंडी छाँव, फूलों की महक ,
जीवन का संगीत, पपक्षियों की चहक।

पंछी गाते, नदियाँ बहे पृथ्वी की गोद,
परिंदे उड़े, नीले आकाश में चहुं ओर।

पर्यावरण संरक्षण, सबकी ज़िम्मेदारी,
धरती का सम्मान, रहे ज़्यादा ज़रूरी।

प्लास्टिक का त्याग, प्रदूषण से मुक्ति,
स्वच्छ हवा, शुद्ध जल की करें युक्ति।

धरती, प्रकृति हमारी, हमको इसे बचाना,
प्रकृति का संदेश, हर दिल में बसाना।

जागरूकता जगाएं और चेतना को जगाएँ,
प्रकृति की पुकार को सब दिल से अपनाए।

जल ही जीवन, जल का संरक्षण

नीला अमृत, धरती का गहना,
जीवन का आधार, सबका सपना।
बूँद-बूँद में बसी है दुनिया की भलाई।
जल है तो सब है, यही है सच्चाई।
नदियाँ, तालाब, सागर का किनारा,
हरियाली सींचे, जीवन संजोए हमारा।
बिना जल के, सब कुछ है सूना,
जल की महत्ता, सबको है सुनना।
जल ही जीवन, जल ही प्राण,
इसके बिना सब कुछ निष्प्राण।
आओ मिलकर संकल्प उठाएँ,
जल को बचाने का वचन निभाएँ।
नल से टपकती बूँदें ना जाएँ व्यर्थ,
हर बूँद में छुपा है जीवन का अर्थ।
वृक्ष लगाएँ और जल को संजोएँ ।
इन सबसे प्रकृति को हम सब बचाएँ।
बिना जल के, बंजर होती दुनियां,
सूखे तालाब, सूखी रहती नदियां।
संवेदनशील बनें, जल का मूल्य और मोल समझें,
जल संरक्षण के नियम अपनाएँ, इस ओर सभी कदम बढ़ाएँ।
आओ जागें, जन-जन को जगाएँ,
जल संरक्षण का संदेश फैलाएँ।
हर बूँद की कीमत को जानें,
जीवन के अमूल्य अमृत को बचाएँ।

प्रकृति की पुकार और जल संरक्षण

हरी-भरी धरती, नीला आसमान,
नदियाँ बहतीं, सरिता के गान।
पर्वत ऊँचे, झरने झर-झर,
प्रकृति का संदेश, सुनो हर पल।
वृक्षों की छाँव, फूलों की महक,
जीवन का संगीत, प्रकृति की चहक।
पंछी गाते, नदियाँ बहे धरती की गोद।
पर्यावरण संरक्षण, सबकी ज़िम्मेदारी,
धरती का सम्मान, रहे ज़्यादा ज़रूरी।
प्लास्टिक का त्याग, प्रदूषण से मुक्ति,
स्वच्छ हवा, शुद्ध जल की करें युक्ति।
धरती हमारी, हम सबको बचाना,
प्रकृति का संदेश, हर दिल में बसाना।
आओ जागें, चेतना को जगाएँ,
प्रकृति की पुकार, दिल से अपनाएँ।

लोकतंत्र और मताधिकार प्रयोग

लोकतंत्र की सर्वत्र ध्वजा लहराए, जन जन को उसके मत का अधिकार समझाएं।।

जनता की शक्ति की आवाज,जनता अपनी अभिव्यक्ति की आज़ादी और मत से करवाए ।

न्याय, समता, बंधुआ, और स्वतंत्रता से देश के विकास का मार्ग अपनाए।

मताधिकार प्रयोग से लोकतांत्रिक देश के संविधान की गरिमा और महिमा बढ़ाए ।

प्रजातंत्र के संविधान के मूल्यों से लोकतंत्र में गणतंत्र का स्थान और मान बनाए।

जन जन के मत की सक्रिय भागीदारी से हर सपना स्वतंत्र और साकार कराए।

मताधिकार की स्वतंत्रता की अवधारणा को सर्वत्र अमल में लाकर कर्तव्य निभाएं।

जनता के मतदान दिवस को, स्वतंत्र लोकतंत्र का एक अद्भुत महापर्व बनाये।

सबको अपने कर्तव्य से अवगत, करके उनके जीवन का हक अधिकार दिलाए ।

लोकतंत्र की मर्यादा और महिमा का अपने मत से सर्वजन को जागरूक कराए

मताधिकार से अपने प्रतिनिधि को देश की सर्वोच्च पंचायत मे अपनी बात को रखने भेजिए ।

विश्व में बड़े लोकतांत्रिक देश के मतदान से जनमत की अलख जगाए रखिए।

मां ईश्वर का वरदान

मां, ईश्वर का वो अपने अद्भुत वरदान,

जो हमें देती हैं प्यार और सम्मान।

मां के कदमों में जन्नत नसीब होती है

जो हमे देती है दुलार और स्वाभिमान।

मां की ममता ही होती है अनमोल, निर्मल और पवित्र,

हर दुख-सुख में हमारे संग निर्झर, प्रबल और सर्वत्र।

मां की ममता करुणा में ही स्थित है ईश्वरीय वरदान,

जो हर आपदा व विपत्ति का करतीं है प्यार से निदान।

उसके प्यार, करुणा और ममता में सुख-शांति है अथाह,

मां अपने बालक की रक्षा के खातिर नही करती है परवाह।

मां, ईश्वर की अनमोल, अमूल्य कृति और उसका साक्षात वरदान,

यह जीवन अमूल्य है, हमें हर पल रहना है उसका कद्रदान ।

मां, अल्लाह की वो नियामत का स्वरुप,

जो हमें देती हैं प्यार और शांति का रुप।

उसकी ममता हर परेशानी और कठिनाई को करती पार।

मां की करुणा में ही अल्लाह की नियामत बारंबार ।

उनके प्यार में हमें सुख-शांति मिलती है अपरंपार,

प्रभु की कृपा से ही हमें मिलती है सच्ची दौलत बारंबार।

मां, अल्लाह की नियामत है अद्वितीय और अनमोल,

उसके बिन जीवन अधूरा है, हर पल समर्पित बिना तोल ।

मां के कदमों में जन्नत है, उसकी सेवा में सुख व शांति है अपार,

उसकी ममता में विश्वास है, और कदमों में सुख-समृद्धि का सागर।

मां के आशीर्वाद,आशीर्वचन से खुलती है बच्चों के भविष्य की राहें,

उसके साथ हर विपदा, कठिनाई की डगर को पार करते हैं प्यारे।

मां के कदमों में ही सच्चा आनंद और सुख से युक्त,

उनके प्रेम में ही हमारा सर्वोत्तम स्थान है, दुखों से मुक्त।

शरीफ़ ख़ान

( रावतभाटा कोटा राजस्थान )

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