मकर संक्रांति का आगमन
मकर संक्रांति का आगमन
पूस माह की
ठंडी ठिठुरती रातें
और मकर संक्रांति का
आगमन,
लोहड़ी, बिहू, उगादि, पोंगल
देते दस्तक दरवाजों पर,
मन प्रसन्न हो उत्सव
के जश्न में जुट जाता,
समझा जाता
तिल, गुड़, खिचड़ी,
दान- धर्म – पुण्य
के महत्व को।
छोड़ सूर्यदेव दक्षिणायन को,
प्रस्थित होते उत्तरायण में।
थमें हुए समस्त शुभ-कार्य
प्रारम्भ होते
इस दिन से।
इसी दिन त्यागी देह,
भीष्म पितामह ने,
माँ यशोदा ने
व्रत अनुष्ठान किया।
माँ गंगा ने अवतरित हो,
सगर पुत्रों को
मोक्ष प्रदान किया।
पूर्व -पश्चिम,
उत्तर – दक्षिण,
खेतिहर का उत्सव
यह
मांगे ईश्वर से संपन्नता
बनी रहे कृपा
सब पर।
रंग – बिरंगी पतंगे है
द्योतक
आशा और विश्वास
की
छुए सफलता को
नये वर्ष में
ऊँचाइयाँ नभ की।
आलोकित हो मन
अघ्यात्म की अनुभूति में
जाता
प्रणन्य है यह पर्व हमारा
अन्तस् हिम में
अग्नि से भरता।

डॉ पल्लवी सिंह ‘अनुमेहा’
लेखिका एवं कवयित्री
बैतूल ( मप्र )
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