मानवता हनन | Manavata hanan par kavita
मानवता हनन
( Manavata hanan )
हे प्रभु इस धरती पर नर को दानवता क्यों भाती है।
ईर्ष्या द्वेष नफरते हावी सारी मानवता खा जाती है।
लालच लोभ स्वार्थ में नर इंसानियत क्यों भूल गया।
मतलब कि इस दुनिया में क्यों मझधार में झूल गया।
लूट खसोट भ्रष्टाचार की नर राहें क्यों अपनाता है।
पतन का मार्ग चुन क्यों दलदल में धंसता जाता है।
कलयुग की काली छाया से बढ़ता जाता अंधकार।
संस्कृति का हनन हो गया घट गये घर से संस्कार।
स्वार्थ में सब अंधे हो गये वो अतिथि सत्कार कहां।
मां बाप को नयन दिखाते वो अपनापन प्यार कहां।
आस्तीन में सर्प पल रहे फुफकारते अजगर भारी।
धोखा द्रोह दुर्गुणों से अपनी घिर चुकी धरती सारी।
मौत का तांडव होता है नर को चकाचौंध लुभाती है।
हे प्रभु इस धरती पर नर को दानवता क्यो भाती है।
रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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