मन्नत | Mannat
मन्नत
( Mannat )
रूपसी हो तुम्हीं मेरी प्रेयसी हो
ग़ज़ल हो मेरी तुम्हीं शायरी हो
बहार हो तुम ही तन्हाई भी हो
जीवन की मेरे शहनाई भी तुम्ही
दो गज ज़मीन हो मेरी तुम ही
तुम ही फलक की रोशनी भी
कल्पना हो मेरे जज़्बातों की
तुम ही नर्म चादर हो खुशियों की
तुम ही से है धड़कन दिल की
तुम्हीं से है चैन ओ सुकून मेरा
दर्द भी तुम ही हो दवा भी तुम्हीं
निराशा और जुनून भी तुम्ही हो
कौन हो तुम मेरी पता नहीं मुझे
यकीन तो इतना है कि मेरी हो
तुमसे ही है अब यह वजूद मेरा
तुम ही मेरी अंतिम आरज़ू भी हो
देख ही नहीं पाते सिवा आपके
आप ही दोजख़ हो जन्नत हो
आप ही पूजा हो इबादत हो
आप ही मेरी आखिरी मन्नत हो
( मुंबई )