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बेपरवाही | Beparwahi

बेपरवाही

( Beparwahi )

 

खंडहर बोलते तो नहीं कुछ
फिर भी बयां कर देते हैं बहुत कुछ
रही होगी कभी हवेली शानदार
अपनों की किरदार में ही बचा ना कुछ

समय मुंह से तो कुछ नहीं कहता कभी
पर आगाह जरूर करते रहता है
संभल जाते हैं जो वक्त के हालात पर
नामो निशान उन्हीं का बचा रहता है

हालाते दौर से कौन कब नहीं गुजरा
कुछ वक्त के लिए रहे कुछ वक्त से
निकल जाती है कश्तियाँ भी भँवर से
कुछ ऐसे भी हैं जो डूब जाते हैं पहले ही वक्त के

समस्याएं तो खड़ी हो ही जाती हैं
उनके समाधान में समझौते भी जरूरी हैं
झूठे स्वाभिमान की अकड़ तोड़ देती है
या फिर आदमी अपने चलते ही टूट जाता है

धैर्य के साथ-साथ समझदारी भी जरूरी है
खजाने तो मियां कारुन के भी नहीं रहे
सामर्थ्य हो या धन , कम होना ही है उनका
जो चले नहीं संभलकर , वो कहीं नहीं रहे

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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