Mere Pitaji

मेरे पिता जी | Mere Pitaji

मेरे पिता जी

( Mere pitaji ) 

मेरे पापा पं. श्री शिवदयाल शुक्ला जी की तृतीय पुण्यतिथि पर
उन्हीं की याद में…..

 

छोड़ के इस जगत् को आप,जाने किस देश में बस गए।
सच तो यह है पापा आप,मेरी अंतस यादों में बस गए।

जब भी डांट लगाती माॅ॑,पापा बीच में आते थे।
कहकर मुझको मेरी गुड़िया,बहुत दुलार जताते थे।

आज भी वो दिन मुझको याद बहुत ही आते हैं।
हर क्षण यादों में बसकर,मन को बहुत तड़पाते हैं।

जब भी पापा ऑफिस जाते,मुझ पर बहुत स्नेह लुटाते थे।
खेल खिलौने और लड्डू पेड़े,वो सब मेरे लिए ले आते थे।

हमेशा कहते मुझसे यही,बिटिया तू माॅ॑ सी लगती है।
तेरी एक- एक बात में ,माॅ॑ की छवि झलकती है

याद कर उन अनमोल लम्हों कोमन आहत सा रहता है।
अब ऐसी प्यारी -प्यारी बातें कोई मुझसे नहीं कहता है।

अब यादों के सहारे ही,ये बाकी जीवन कटता है।
बिन आपके पापा मेरे,ये जग भी अधूरा लगता है

जब भी करती मैं प्रार्थना,यही ईश्वर से कहती हूॅ॑।
सब कुछ छीनना तुम लेकिन,किसी के माता -पिता न छीनना तुम।

 

कवयित्री: दीपिका दीप रुखमांगद
जिला बैतूल
( मध्यप्रदेश )

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