मीठी वाणी मीठी बोली | Kavita
मीठी वाणी मीठी बोली
( Mithi vani mithi boli )
एक सैलानी मुझसे बोला क्या करते हो गदेना,
गुठियार में ऐसा क्या है यार तेरे गढ़वाल में।
मुस्कुराते हुए मैंने कहा मीठी वाणी मिट्ठी पाणी है मेरे गढ़वाल में।
हिमालय का चौखंबा बसा है मेरे पहाड़ में 52 गढ़ है मेरे गढ़वाल में।
मां के हाथ की थिचौणी रोटी, में बाबा के फटकार में।
वह मिठास नहीं मिल सकती है तेरे “बिग बाजार” में।
पूरा शहर फर्स्ट चुका है मैकडी डोमिनोस पिज़्ज़ा के जाल में।
पर वह स्वाद नहीं मिल सकता जो मिलता है उत्तराखंड के काफल,बेडू, बुरास में।
गधेना, धारा, पंदेरा के सामने फेल हैं फिल्टर आ रो, बिसलेरी के जार में।
बारहमासी ठंडी हवा जो मेरे पहाड़ों में मैं आती है,
कूलर, एसी, से वैसी हवा न मिल पाती है।
तुम्हें अपने सारे रिश्ते अनजान से लगते हैं,
मेरे पहाड़ में आज भी सांझा चूल्हा एक दिया सलाई से जलते हैं।
तेरे कैलेंडर में जितने हैं रविवार,
उससे कहीं ज्यादा मेरे गढ़वाल में है खुशियों के त्यौहार।
जो आनंद मिलता है चार धाम में, वह मिल नहीं सकता तेरे सुपर मॉल में।
लेखिका :-गीता पति ( प्रिया) उत्तराखंड
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