Mitti ki Kaya

है ये मिट्टी की काया | Mitti ki Kaya

है ये मिट्टी की काया!

( Hai ye mitti ki kaya ) 

 

मैंने खुद को तपा करके,
जीवन को सजाया है।
था कर्म मेरा अच्छा,
तब जनम ये पाया है।

कुदरत के आंगन में,
बड़े मजे से खेला है।
ये बीत गया जीवन,
अब जाने की बेला है।

पुरुषार्थ किया हमने,
अब मोक्ष को पाना है।
मेरे कर्म बताएँगे,
क्या साथ ले जाना है।

माया से भरी दुनिया,
कुछ ऐसा प्याला है।
न तृप्त हुआ कोई,
खुद प्यासी हाला है।

अंगूरी लताओं का,
कोई अंत नहीं प्यारे।
आकंठ पिया जिसने,
वो सबके सब हारे।

छीना -झपटी में तू,
जीवन को बिता डाला।
मत पियो हलाहल को,
जरा ठहर जा मतवाला।

जो दूध पिया माँ का,
वो ऋण क्या चुका डाला?
पावन कर दे आँचल,
जिस गोंद ने है पाला।

जिस काम से आए थे,
वो छोड़ दिए आते।
यदि संयम से जीते,
वो गँठरी ले जाते।

है ये मिट्टी की काया,
तू ले आ वो प्याला।
बस अंतर-मन से पी,
न जाना मधुशाला।

कल देखा नहीं किसने,
लालच को जला डालो।
दो दिन की जवानी है,
कोई रोग न तू पालो।

तू ज्ञानी नहीं उससे,
क्षणभंगुर ये प्याला।
ये दुर्लभ मानव तन,
तू कर न इसे काला।

तू भर सत्कर्मो से,
इन साँसों का प्याला।
कट जाएगा भव-बंधन,
मिट जाएगी उर-छाला।

रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक),

मुंबई

यह भी पढ़ें :-

उसका सितम इनायत से कम नहीं | Sitam

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *