मोहब्बत की दरिया | Mohabbat ki Dariya
मोहब्बत की दरिया
( Mohabbat ki Dariya )
अदाओं का तेरा खजाना चाहता हूँ,
जवानी का तेरा तराना चाहता हूँ।
चलती जिधर फूल खिलते उधर ही,
रजा चलके खुद जानना चाहता हूँ।
दीवानगी कुछ चढ़ी इस कदर है,
कदमों में आँखें बिछाना चाहता हूँ।
भीगी-भीगी रातें जलाती हैं मुझको,
लगी आग को मैं बुझाना चाहता हूँ।
साँसों की गंठरी मेरी वो ले ले,
जिंदगी उसी पे लुटाना चाहता हूँ।
पिलाती निगाहों से बनकरके साकी,
उसके मयकदे मैं सोना चाहता हूँ।
बोझ दुनियादारी का कैसे उठाऊँ,
बना करके दुल्हन लाना चाहता हूँ।
दरीचे से कब तक माशूका को देखूँ,
पर्दा जहां से उठाना चाहता हूँ।
अपनी सफाई में कुछ न कहूँगा,
मिलने का कोई बहाना चाहता हूँ।
नफ़रत का बांध कोई जितना बना ले,
मोहब्बत की दरिया बहाना चाहता हूँ।
रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक),
मुंबई