नैना बावरे जुल्फो में उलझाने लगे
नैना बावरे जुल्फो में उलझाने लगे
दिल मचलने लगे अश्क बहने लगे
हमे तुम्हे याद करके बहकने लगे
नजरे जब भी मिली मुस्कुराने लगे
फूल गुलशन मे देखो गुनगुनाने लगे
खिलकर भवरों के मन बहकाने लगे
दिल को अपने यूॅ भी समझाने लगे
दिल मचलने लगे अश्क बहने लगे
हमे तुम्हे याद करके बहकने लगे
सितारे जमी पे नजर फिर आने लगे
दरिया सागर से मिलने जाने लगे
साँसे थम सी गई आँसू गिरने लगे
तुझको नजरों में यूॅ भी बसाने लगे
दिल मचलने लगे अश्क बहने लगे
हमे तुम्हे याद करके बहकने लगे
एक हँसी शाम देकर बहलाने लगे
शबनब आखो से अपनी बरसाने लगे
उसके आँसूँ से दामन खुदी भरवाने लगे
राहे उलझी सी हम यूँ सुलझाने लगे
दिल मचलने लगे अश्क बहने लगे
हमे तुम्हे याद करके बहकने लगे
शराफत नकाबो में हया दिखलाने लगे
पर्दा आँखो का पाकिजगी बतलाने लगे
जलती लौ से घर खुद जलवाने लगे
लबो पे राज दिलो के यूँ थिरकाने लगे
दिल मचलने लगे अश्क बहने लगे
हमे तुम्हे याद करके बहकने लगे
एक फरेबी की बातो में आने लगे
झूठे ख्वाब पलको मे सजाने लगे
नैना बावरे जुल्फो में उलझाने लगे
ख़ता हँस कर जमाने को बताने लगे
दिल मचलने लगे अश्क बहने लगे
हमे तुम्हे याद करके बहकने लगे
लेखिका : डॉ अलका अरोडा
प्रोफेसर – देहरादून