Kaisa yeh Zamana

कैसा यह ज़माना | Kaisa yeh Zamana

कैसा यह ज़माना

( Kaisa yeh Zamana )

 

देखो न अब आ गया है यह कैसा ज़माना,
हर कोई जुटा है छिनने में दूसरों का दाना,

काटके दरख़्तों को बनाया अपना बिछौना,
बेघर कर छिन लिया परिंदों का आशियाना,

सुबह घर से निकले तो शाम को लौटेंगे ही,
घरका हश्र देख रुके कैसे उनका चिल्लाना,

उन बेज़ुबां के ग़म पे ख़ुदा भी होता नादिम,
वो कहाँ देख पाता आँखों का झिलमिलाना,

गर चाहते चलता रहे साँसों का आना जाना,
फिर..कायम रहने दो परिंदों का चहचहाना!

Aash Hamd

आश हम्द

( पटना )

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