पर्वत पर्वत शिखर श्रृंखला | Parvat parvat shikhar shrinkhala
पर्वत पर्वत शिखर श्रृंखला
( Parvat parvat shikhar shrinkhala )
पर्वत पर्वत शिखर श्रृंखला, मेघ दिखे घनघोर घटा।
अवनि को अम्बर ने देखा,प्रेम मिलन की प्रथम छंटा।
आएगी ऋतु बार बार पर, प्रियतम बोलो कब आओगे,
कल कल छल छल निर्मल जल,सागर मे मिलती खोल जटा।
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मोह
( Moh )
जब मोह खत्म हो जाता है, तब आस बिखर सा जाता है।
उम्मीद टूट कर टहनी से, तरूवर से अलग हो जाता है।
विश्वास का पौधा पत्तों सा, पतझड में अलग हो जाता है,
फिर प्यार पतित हो जाता है, जब मोह खत्म हो जाता है।
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सिमट कर
( Simat kar )
सिमट कर आखिरी पन्नों में ही बस, नाम बाकी है।
हृदय में ही दबा सा रह गया,कुछ जज्बात बाकी है।
टटोलों ना खंगालो दिल को मेरे,आखिरी पल है,
अगर ये शेर जिन्दा है तो वो, एहसास बाकी है।
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कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )