बचपन के दिन और खेल | Poem in Hindi on Bachpan
बचपन के दिन और खेल
( Bachpan ke din aur khel )
कहां गए वो दिन बचपन के ,पचपन खेल हम खेले
नाचे गाए मौज मनाएं ,देखे घूम घूम कर मेले।।
कितनी थी सतरंगी दुनिया ,रंगों का था दिलसे मेल
एक सीध में दौड़ लगाकर ,छू छू कर दौड़ाए रेल ।।
खेल खिलौना मिट्टी का, मिट्टी पर खूब बनाएं
लगाकर मिट्टी का पहिया , खूब मिट्टी मे दौड़ाए।।
सुबह हुई जब बाग में जाएं,खेले दिनभर खेला
लगे टिकोरा जब आमो में ,चुन चुन मारे ढेला।।
पकड़ गौरैया के बच्चे को, मुंह में डालने पानी
कुछ अच्छा कुछ बुरा करे ,करे खूब मनमानी।।
चुनकर छोटे छोटे कंकड़, बैठ कर खेले गोटी
बार-बार जब हारे किस्मत लागे अपनी खोटी।।
कुड़ी कबड्डी लंबी कूद ,धनुष बाण ले करते युद्ध
करे लड़ाई चाहे जितनी ,मन रहता था एकदम शुद्ध।।
सावन में जब मेघ गरजते ,छम छम बरसे पानी
हाथ पकड़ कर यार दोस्त संग, खेले घो घो रानी।।
कूद कूद कर पोखर में ,दिन भर खूब नहाते थे
मम्मी लेकर दौड़े डंडा ,निकल निकल तब आते थे।।
नचा नचा कर लट्टू को, मन लट्टू हो जाता था
हार गया जब अपना लट्टू थोड़ा मन पछताता था ।।
कोयल के संग कुकू करते बच्चों के संग गाते थे
कागज की भी नाव बनाकर पानी में तैराते थे।।
देखकर तितली रंग बिरंगी, मन खूब ललचाये
पकड़ पकड़ जब छोड़े , बहुत मजा तब आये।।
लटक लटक कर डाली पर खेले आती पाती,
थक जाए जब दौड़ भागकर फूले अपनी छाती।।
आइस पाइस लुका छिपी, खेले पहनकर टोपी
चोर साव को जब पकड़े ,तब दौड़ के मारे ठोपी।।
माघ पुस जब तन खूब कांपे,खेले टन टन गोली
फागुन की जब मस्ती छाई ,खेले जमकर होली।।
लंबी लंबी बांधकर डोरी ,दिनभर पतंग उड़ाते थे
मेरी ऊपर तेरी ऊपर ,कहकर खूब चिढ़ाते थे।।
आम के पत्ते तोड़ तोड़कर ,फिरकी खूब नचाते थे
हवा नहीं जब रुक जाए, अंगुली से उसे घुमाते थे।।
बैट बॉल फुटबॉल भी खेले, सावन में खूब झूला झूले
बांधकर पट्टी आंखों पर ,जीवन का गम सारा भूले।।
आंधी आए धूल उड़े जब ,लेकर पहिया भागे
पांव में चाहे कांटा गड़ता,फिर भी दौड़े आगे।।
चोर सिपाही राजा नौकर , बने पुजारी पंडा
बच्चों संग मिलजुल कर खेले लेकर गुल्ली डंडा।।
कितना प्यारा जीवन था ,कितना प्यारा संग
आज उमरिया बदल गई ,बदल गया सब ढंग।।
बचपन बीता आई जवानी, छूट गया सब खेला
“रूप” के मन को भाए अति ,यादों का वह मेला
कवि : रुपेश कुमार यादव ” रूप ”
औराई, भदोही
( उत्तर प्रदेश।)
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