Poem in Hindi on thand

ठंड का प्रभाव | Poem in Hindi on thand

ठंड का प्रभाव

( Thand ka prabhav ) 

 

सुनो ठण्ड दुष्कर हो रहा है तुम्हे सहन कर पाना

सूर्य तापमान का गिरना और देह का कंपकंपाना

 

सुनसान हैं सभी सड़कें और धुंध हर तरफ है छाई

अपने आकर्षण से बहुत लुभा रही है यह गर्म रजाई

 

कभी  नर्म, कभी कड़क धूप का छत पर हमें बुलाना

मूंगफली और गजक की सौंधी महक से मन ललचाना

 

पहाड़ों को रोज बर्फीली चादर ओढ़ाती जा रही  है

संक्रांति,पोंगल,लोहड़ी त्योंहारों की छटा भिखरा रही है

 

चाय की मसालेदार चुस्कियों से थोड़ी राहत मिलती है

अलाव के सामने बैठकर कितनी गर्माहट मिलती है

 

कभी आकाश है स्वच्छ और नीलिमा दिखाई  देना

कभी कोहरे की चादर का आकर सूरज को ढँक देना

 

कटकटा रहे हैं दांत, त्वचा रूखी बेजान सी हो रही है

देह परत-दर-परत स्वेटर और शॉल में सिमट रही है

 

प्रकृति को मनभावन फलों और फूलों से सजा रही है

यह सर्दी स्वादिष्ट व्यंजनों से हमारी सेहत  बना रही है

 

 

वंदना जैन
( मुंबई )

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