प्रशांत भूषण की निडरता | Prashant Bhushan par kavita
प्रशांत भूषण की निडरता!
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यह बोल प्रशांत भूषण के हैं –
न झुकेंगे
न सच का दामन छोड़ेंगे
सच कहते थे
सच कहते हैं
सच कहते रहेंगे।
न सत्ता के आगे घुटने टेकेंगे,
न कोर्ट से डरेंगे।
ना ही माफीनामा दायर करेंगे,
कोर्ट जो सजा देगी-
हंस हंस कर सहेंगे।
भारत में नागरिक अधिकारों और अभिव्यक्ति के लोकतांत्रिक अधिकार-
की लड़ाई लड़ते रहेंगे।
इनके हौसले देखकर कोर्ट ने भी
दो दिन का वक्त दिया है,
सजा का ऐलान नहीं किया है।
लेकिन प्रशांत के तेवर देख ऐसा नहीं लगता
कि वे अपना वक्तव्य बदलेंगे,
या अदालत से मांफी मांगेंगे ?
यह देखना दिलचस्प होगा,
कि आगे क्या होगा?
कोर्ट का निर्णय क्या होगा?
लेकिन सच के सिपाही भूषण के साथ
हमें खड़ा रहना होगा,
उनका साथ देना होगा;
उनके बुलंद हौसले को सलाम करना होगा।
ताकि नेताओं और
मनमाने ढंग से व्यवस्था चलाने वालों का घमंड चकनाचूर हो-
इस व्यवस्था के खिलाफ जो लड़ें,
उसे जनता का साथ जरूर मिले।
समतामूलक समाज की स्थापना और
संवैधानिक दायरे में शासन व्यवस्था चले,
संविधान की सर्वोच्चता बरकरार रहे।
इसके लिए भी इनका साथ देना जरूरी है।
वरना सब खत्म हो जाएगा..
व्यवस्था के आगे सब घुटने टेक रहे हैं,
न्यायालय पर भी इसके प्रभाव पड़ रहे हैं।
अब नागरिक अधिकार धीरे-धीरे समाप्त करेंगे,
उठो ! जागो, चेतो वरना कहीं के ना रहेंगे।
भविष्य में सब छिन्न भिन्न हो जाएगा,
मूर्ख जनता ! तब रो रोकर पछताएगा;
कुछ नहीं तू कर पाएगा।
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लेखक-मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
सलेमपुर, छपरा, बिहार ।
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