मेरी दिली अभिलाषा | Prem Kavita Hindi
मेरी दिली-अभिलाषा
( Meri dili abhilasha )
कुछ रूठा-रूठा लगता है ओ
मन करता है उसे मनाऊं
मीठी-मीठी बात करूॅं और
उसके मन को बहलाऊं
मानकर सारी हठ उसकी मैं
जो चाहे वो उसे मगाऊं
अर्पण कर मैं खुदको उसमें
प्रेम-प्रीत इस भांति निभाऊं
सूरज चंदा तारे-वारे
आसमान से तोड़ लाऊं
इटली,डोसा पिज़्ज़ा-उज्जा
जो खाए वो उसे बनाऊं
कुछ रूठा-रूठा लगता है ओ
मन करता है उसे मनाऊं
उसके दिल का हाल सुनूं और
अपने दिल की हाल सुनाऊं
रहूं उसी में खोई-डूबी
गीत-ग़ज़ल लिखूं और गाऊं
बाग-बगीचे पार्क-वार्क में
जहां कहे घुमूं-घुमाऊं
प्यार-निशानी ताजमहल मैं
उसके चाहत में बन जाऊं
जब भी मुझको याद करे वो
दौड़ी-दौड़ी पहुॅंची आऊं
वो बन जाए कृष्ण-गोपाला
मीरा-सा मैं प्रीत रचाऊं
कुछ रूठा-रूठा लगता है ओ
मन करता है उसे मनाऊं
डॉ. सारिका देवी
अमेठी ( उत्तर प्रदेश )