प्यार हम बार बार करते हैं
प्यार हम बार बार करते हैं
यूँ ख़िज़ां को बहार करते हैं
प्यार हम बार बार करते हैं
मिलना होता है जब किसी से हमें
अक्ल को होशियार करते हैं
कैसे जाऊं न बज़्म में उनकी
रोज़ वो इंतज़ार करते हैं
जो भी आता है ख़ुद निशाने पर
हम उसी का शिकार करते हैं
प्यार मैं सिर्फ़ उनसे करता हूँ
ऐसा वो ऐतबार करते हैं
चैन खोते हैं नींद भी खोते
लोग क्यों इतना प्यार करते हैं
तेरी बातों में आके ही साग़र
हम ये ऐसा क़रार करते हैं
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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