ढूंढते ही रह जाओगे | R K Rastogi poetry
ढूंढते ही रह जाओगे
( Dhundte hi reh jaoge )
बातो में कुछ बाते,
चीजों में कुछ चीजे,
इक्कीसवीं सदी में,
ढूंढते ही रह जाओगे।
घरों में पुरानी खाट,
तराजू के लिए बाट,
स्कूलों में बोरी टाट,
ठेलो पर अब चाट।
ढूंढते ही रह जाओगे।।
आंखो में अब पानी,
कुएं का ताजा पानी।
दादी की अब कहानी,
राजा रानी की कहानी,
ढूंढते ही रह जाओगे।।
शादी में अब शहनाई,
कुरते में अब तुरपाई।
बड़ों की अब चतुराई,
दूसरे के लिए भलाई।
ढूंढते ही रह जाओगे।।
घरों में अब मेहमान,
बड़ों का अब सम्मान।
संतो की अब वाणी,
कर्ण सा अब दानी।
ढूंढते ही रह जाओगे।।
मरने पर चार कंधे
लेजाने को कुछ बंदे।
जलाने को लकड़ी,
तेरहवीं में पगड़ी।
ढूंढते ही रह जाओगे।।
रचनाकार : आर के रस्तोगी
( गुरुग्राम )
बहुत सुंदर