रागिनी | Kavita Ragini
” रागिनी “
सुमधुर गुंजार कोकिल
चमक चपला सी चलन का।
रुचिर सरसिज सुमनोहर
अधर रति सम भान तन का।
गगन घन घहरात
जात लजात लखि लट लटकपन का।
मधुप कलियन संग
लेत तरंगता खंजन नयन का।
पनग सूर्य अशेष
पावत मात दुति मणि दंतनन का।
धरत धर धर
धरधरात सुबासता मलयज बदन का।
निहित कण कण
किंकीणीत जड़ीत मुक्ता काननन का।
सा रे ग म प ध नी
सुनावति दीप भैरव रागनन का।।
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लेखक: शेष मणि शर्मा “इलाहाबादी”
प्रा०वि०-बहेरा वि खं-महोली,
जनपद सीतापुर ( उत्तर प्रदेश।)
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