रीत दुनिया की | Reet Duniya ki
रीत दुनिया की
( Reet Duniya ki )
बह्र का नाम: बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
अरकान: मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
मात्राएँ: 1222 1222 1222 1222
मिला जो इक दफा वो हर दफा मिलता नहीं यारों,
टूटा जो फूल डाली से कभी खिलता नहीं यारों !
लगा चाहे ले जितना ज़ोर लेकिन सच यही है की,
अगर जो हो गया खोटा पैसा चलता नहीं यारों !
खपानी जान पड़ती पेट भरने की जुगत में भी,
बिना महनत के घर चूल्हा कभी जलता नहीं यारों !
नेताओं की झूठीं बातों में आकर के कभी देखो,
गरीबों का फटा कुर्ता ज़ामा सिलता नहीं यारों !
कभी सवेरा कभी तो शाम होना रीत दुनिया की,
सूरज उगना किसी रोके कभी रुकता नहीं यारों !!