सच मानो उस पल | Sach Maano uss Pal
सच मानो उस पल
( Sach maano uss pal )
सच मानो उस पल आँखों में, केवल चित्र हमारा होगा ।
प्रेम कथाओं के पृष्ठों को, तुमने जहाँ निहारा होगा ।।
कभी याद तो करके देखो ,भूले बिसरे चौराहों को ।
कान लगा कर सुनो कभी तुम ,अपने अंतर की चाहों को ।
कभी अधर तो सौंपे होंगे ,अपनी चंदन सी बाँहों को ।
कस्तूरी सी गंध समझ हर, संभव हमें बिसारा होगा ।।
सच मानो उस पल ——–
कई बरस तेरे माथे पर,रख्खी मैंने काजल चिंदिया ।
कहीं उड़ाकर ले जाती थी ,इन आँखों से मेरी निंदिया ।
संभवता कभी लगाई हो ,एकाकी क्षण में वो बिंदिया ।
क्या हुआ कभी आभास नहीं, यहीं कहीं बंजारा होगा ।।
सच मानो उस पल——–
यह सोच खुले ही छोड़ दिये , इस हदय भुवन के द्वार सभी ।
कोई कुछ मुझको कहे मगर ,भेडूँगा नहीं किवाड़ अभी ।
वापस लौट गये यदि तुम तो ,यह ज्वाल न होगी शाँत कभी ।
आहट-आहट कान लगाये, तुमने मुझे पुकारा होगा।।
सच मानो उस पल——–
अब दुल्हन सी तुम सजी धजी ,खड़ी हुई हो इस आँगन में ।
लगा रही हो आग और अब,इस रिमझिम-रिमझिम सावन में ।
और किसी की किन्तु धरोहर, शोभित हो इस मन दर्पन में ।
साग़र मर्यादित प्रश्नों पर ,किंचित नहीं विचारा होगा।।
सच मानो उस पल आँखों में ,केवल चित्र हमारा होगा।
प्रेम कथाओं के पृष्ठों को तुमने जहाँ निहारा होगा।।