श्रृंगार मेरा सब पिया से | Shringar Mera
श्रृंगार मेरा सब पिया से
( Shringar mera sab piya se )
पांव में पायल कान में झुमके,
कंगना बोल रहे जिया से।
गौरी शरमाकर यूं बोली,
श्रृंगार मेरा सब पिया से।
नाक की नथली बाजूबंद,
हार सज रहा है हिया पे।
कमरबंद के घुंघरू बोले,
श्रंगार मेरा सब पिया से।
लाल लाल होठों की लाली,
चूड़ियों की खनखन रे।
माथे का सिंदूर कह रहा,
श्रृंगार मेरा सब पिया से।
गौरी के नाजों नखरे सब,
मोरनी सी मस्तानी चाल रे।
झील सी आंखें बतलाती,
श्रंगार मेरा सब पिया से।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )