सूरज के क़ज़ा होते ही | Suraj ke qaza hote hi | Ghazal
सूरज के क़ज़ा होते ही
( Suraj ke qaza hote hi )
सूरज के क़ज़ा होते ही चाँद जगमगा उठा होगा
मगर हर घर, हर सेहर सो चूका होगा
में थक चूका हूँ इस आबरू के सिलसिले से
ये मेरी बेबसी है की यहाँ एक और हादसा होगा
ज़रा देख हर आँखों में वही छप चूका है
खुदा के आँखों में भी रहनुमा ही दीखता होगा
जिस लाचारी से में मुहब्बत को ढून्ढ रहा हूँ
कभी मुहब्बत भी उसी तालुकात से हमको ढूंढ़ता होगा
जो जिंदगी मावरा तक से नहीं गुज़रता है
वह ग़म के सहारे ये बे-बसर ज़िन्दगी गुज़रता होगा
वो रहगुज़र के सहारे हम तो पहुंचेंगे किसी रोज
मगर वो प्यासा समंदर आब को तरसता होगा
खोया खोया उदासी से भरा हुआ ‘अनंत’
वो जुस्तुजू से लगेगा तुम्हे की बदल गया होगा
शायर: स्वामी ध्यान अनंता