सच का आइना | Sach ka aaina
सच का आइना
( Sach ka aaina )
हिंदू, मुस्लिम तुम आपस में बैर कर
महात्मा गांधी ,अब्दुल कलाम भूल गए,
जाति -जाति हर धर्म ,मजहब के फूल खिले,
तभी तो दुनिया महका गुलशन हिंदुस्तान है,
सब फूलों को पिरो बनाए जो माला
संविधान अंबेडकर भूल गए,
अपनी सत्ता की गलियारों में
संस्कार गरिमा अब सब भूल गए,
न्यायालय खिला कसम गीता की जज
साहब गरिमा भूल गए,
डॉक्टर साहब पैसा खातिर
अपनी मर्यादा भूल गए,
अब देते जो है नारा,
बेटी पढ़ाओ ,बेटी बचाओ
अब डरने लगी हैं बेटियां कहीं
इन्हीं के हाथों इनकी
अस्मत न लुट जाए,
धर्म पर अब बिकते हैं
मौलवी औ पाखंडी बाबा,
अब डरते हैं भक्त कहीं
इन्हीं के हाथों
मां की अस्मत न लुट जाए,
अपनी सत्ता की गलियारों में
संस्कार गरिमा सब भूल गए,
मंदिर, मस्जिद ,गुरुद्वारा में
लेते सब संकल्प
अब नहीं करेंगे गलत,
देखा जो गौर से अंदर -बाहर
संकल्प ,संकल्प न रहा
कर रहे गलत।
ये तो वो दीपक है
जिसके तले अंधेरा है
लिखे जब भी नागा सच
पढ़ने वाले आंखों के है दर्पण टूट गए,
अपनी सत्ता के गलियारों में
संस्कार गरिमा सब भूल गए।
लेखक– धीरेंद्र सिंह नागा
(ग्राम -जवई, पोस्ट-तिल्हापुर, जिला- कौशांबी )
उत्तर प्रदेश : Pin-212218