उलझन

Ghazal | उलझन

उलझन ( Uljhan ) क्यों  उलझा  है  शेर हृदय तू, बेमतल की बातों में। जिस संग मन उलझा है तेरा, तू ना उसके सासों में। मना  ले  अपने चंचल मन को, वर्ना तू पछताएगा, प्रेम पतित हो जाएगा फिर,रूक ना सकेगा आँखो में। इतना ज्ञान भरा है तुझमें, फिर.भी क्यो अंजान रहे। इकतरफा है प्यार…

गजगामिनी

Kavita | गजगामिनी

गजगामिनी ( Gajagamini )   मन पर मेरे मन रख दो तो,मन की बात बताऊं। बिना  तेरा  मै  नाम  लिए ही, सारी बात बताऊं। महफिल में कुछ मेरे तो कुछ,तेरे चाहने वाले है, तेरे बिन ना कटते दिन, हर रात की बात बताऊं।   संगेमरमर  पर  छेनी  की,  ऐसी  धार ना देखी। मूरत जैसे सुन्दर…

चित आदित्य

Kavita | चित आदित्य

चित आदित्य  ( Chit Aditya ) देखो ! उसकी सादगी, गीली मिट्टी से ईंट जो पाथ रही। लिए दूधमुंहे को गोद में, विचलित नहीं तनिक भी धूप में। आंचल से ढंक बच्चे को बचा रही है, रखी है चिपकाकर देह से- ताकि लगे भूख प्यास तो सुकुन से पी सके! खुद पाथे जा रही है।…

जीवन इक कचहरी है,सबको मिलता न्याय

दोहा सप्तक | जीवन इक कचहरी है,सबको मिलता न्याय

 जीवन इक कचहरी है,सबको मिलता न्याय ( Jeevan Ik Kachahari  Hai,Sabko Milata Nyaay )   जीवन इक कचहरी है,सबको मिलता न्याय। बिना मुकदमा केस का,समय सुनाये राय।   रखें मुखौटा बॉंधकर,घूमें मत बाजार। साफ सफाई से करें,कोरोना संहार।   नहीं सियासत में कभी,होता कोई मित्र। किन्तु शुभ संकेत नहीं,इसका रक्त चरित्र।   जीवन के कैनवास…

भाग्य

Kavita | भाग्य

भाग्य ( Bhagya ) जनक  ने चार  चार  पुत्री ब्याही थी, धरती के उत्तम कुल में। मिले थे छत्तीस के छत्तीस गुड़ उनके, धरती के उत्तम वर से।   पूर्व  जन्मों  का  तप था जनक सुनैना, हर्षित होकर इठलाते थे। दिव्य था रूप अवध के उत्तम कुल से, जुडने को है भाग्य हमारे।   कोई…

आजा साथी धूम मचाएं होली में

Holi Par Kavita | आजा साथी धूम मचाएं होली में

आजा साथी धूम मचाएं होली में ( Aaja Sathi Dhoom Machaye Holi Mein )   आजा साथी धूम मचाएं होली में, थिरक थिरक मौज मनाएं होली में   भूलकर सारे राग द्वेष, हम मिल जाएं होली में। ढ़ोल नगाड़े ताशे की गूॅ॑जे, प्रेम रस बरसाएं होली में।   आजा साथी धूम.मचाएं होली में, थिरक-थिरक मौज…

हम भारत के लोग

Kavita | हम भारत के लोग

हम भारत के लोग ( Ham Bharat Ke Log ) ****** हम भारत के लोग हैं सीधे सच्चे सादे इसी का फायदा अक्सर विदेशी मूल के लोग हैं उठाते चंगुल में फंसकर हम उनके सदियों से हैं हानि उठाते। डराते धमकाते बहकाते हमें है आपस में हैं लड़ाते यही खेला खेलकर संसाधनों पर हमारी कब्जा…

काहे बावड़ी पे बैठी राधा रानी

Kavita | काहे बावड़ी पे बैठी राधा रानी

काहे बावड़ी पे बैठी राधा रानी ( Kahe Bawri Pe Baithi Radha Rani )   काहे बावड़ी पे बैठी राधा रानी, चलो चलते है यमुना के घाट पे। आया  सावन   भरा  नदी   पानी, चलो चलते है नदियां के घाट पे।।   बैठ कंदम्ब की डाल कन्हैया, मुरली  मधुर  बजाए। जिसकी धुन पर बेसुध गैय्या, ऐसी …

जंग लगी हो गर लोहे में तो ताले नहीं बनाते

Kavita | जंग लगी हो गर लोहे में तो ताले नहीं बनाते

जंग लगी हो गर लोहे में तो ताले नहीं बनाते ( Jang Lagi Ho Gar Lohe Mein To Tale Nahin Banate )   जंग लगी हो गर लोहे में तो ताले नहीं बनाते  गरीब गर गरीब है तो लोग रिश्ते नहीं बनाते   जर्जर हो गर बुनियाद तो मीनारें रूठ जाती हैं सुखे हो गर…

हमारा संविधान

हमारा संविधान | Kavita

हमारा संविधान ( Hamara Samvidhan ) ***** दिया है हक हमें लड़ने का बढ़ने का डटने का सपने देखने का बोलने का समानता का अपनी मर्ज़ी से पूजन शिक्षण करने का आजादी से देश घूमने का। किसी भूभाग में आने जाने का बसने और कमाने खाने का। न कोई रोक टोक न कोई भेदभाव सभी…