तेरी प्रिय प्रतिभा की मैं रूबाई हूॅ
तेरी प्रिय प्रतिभा की मैं रूबाई हूॅ
कुछ लिखिए, तो मैं भी लिखूँ,
कल से कुछ लिख नहीं पाई हूँ।
सानिध्य ले त्रिवेणी संगम बनूँ,
कुछ बेहतरीन की सोच आई हूँ।
जिक्र न मेरा न तुम्हारा होगा
प्रथम स्थान की परछाई हूँ,
परिवेष्टित स्नेहिल सा संसार,
नेह में आकण्ठ बहुत हरषाई हूँ।
यदा मिले याद करती रहती तुझे,
पर कदा की थाह कभी न पाई हूँ।
जिज्ञासु ढूँढने लगती जब अनुभव,
कहाँ थी तू अब कहाँ परछाई हूँ।
थे गुमनाम हम नाम बनाते रहे,
भटके यौवन की मैं तरुणाई हूँ।
बलवान वक्त के सम्मुख प्रखर,
अब व्यक्तित्व अमिताभ पाई हूँ।
दूर,बहुत दूर तक जाना मुझको,
बॅध नहीं पाऊॅ मैं तो अंगड़ाई हूँ,
आतुर मन करता नित घोर श्रम,
तेरी प्रिय प्रतिभा की मैं रूबाई हूँ।
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई