
किसी का जब मगर बेहतर किया है
( Kisi ka jab magar behtar kiya hai )
किसी का जब मगर बेहतर किया है
जुबां को ही उसनें ख़ंजर किया है
मुहब्बत की करेगा बात क्या अब
दिल उसनें प्यार से बंजर किया है
कभी मिलकर नहीं मुझसे रहा वो
परेशां ही बहुत अक्सर किया है
मुहब्बत से भरा था जो कभी घर
कि उसनें नफ़रतों से घर किया है
हुऐ है वार इतने तंज के कल
बहुत गहरा यहाँ नश्तर किया है
दुखाया दिल यहाँ अपनों ने इतना
आंखों में अश्क़ का मंजर किया है
उसी का तोड़ देता गरूर आज़म
न अपना तल्ख़ ये तेवर किया है
शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )
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