वैश्विक तापवृद्धि

Kavita | वैश्विक तापवृद्धि

वैश्विक तापवृद्धि

( Vaishvik Tap vridhi )

 

पहुँचाकर क्षति प्राकृतिक संपदा को
हे मानव तुम इतना क्यों इतराते हो
यह पर्यावरण तुम्हारे लिए है इसमें
तुम अपने ही हाथो आग लगा कर

वैश्विक   ताप   बढ़ाते   हो  ।।

 

जब जंगल होगा तब मंगल होगा
यही समझना होगा अब सबको!
पर्यावरण को दूषित करने बालों
काट काट कर तुम वृक्षों को सारे

क्यों  वैश्विक  ताप  बढ़ाते हो।।

 

हरी-भरी जब धरती होगी अपनी
ताप रहेगा संतुलन में पृथ्वी का
पर्यावरण की दशा सुधर जाएगी
शुद्ध प्राणवायु फिर लौट आएगी

वैश्विक ताप में कमी आएगी ।।

 

करके नियंत्रित वैश्विक ताप वृद्धि
चारों दिशाओं में फैलेगी समृद्धि
विपदा  सारी  टल  जाएगी  जब
पर्यावरण  मैं  होने  लगेगी  शुद्धि

वैश्विक ताप तब थम जाएगा।।

 

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प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर मध्य प्रदेश

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