वो हक़ीक़त में रूठे थे और रूठे ख़्वाब में
वो हक़ीक़त में रूठे थे और रूठे ख़्वाब में
वो हक़ीक़त में रूठे थे और रूठे ख़्वाब में
कर गये है वो गिले कल रात ऐसे ख़्वाब में
भूल जाता मैं उसे दिल से हमेशा के लिये
वो अगर मेरे नहीं जो दोस्त होते ख़्वाब में
जिंदगी भर जो नहीं मेरे हुऐ है हम सफ़र
मेरे ही वो क्यों मगर फ़िर रोज़ रहते ख़्वाब में
वो नज़ाकत से भरा आता नजर चेहरा मगर
मुस्कुरा कर भी कब वो ही दोस्त मिलते ख़्वाब में
जो हक़ीक़त में नहीं बोले मुहब्बत के कभी
प्यार की ही गुफ़्तगू वो दोस्त करते ख़्वाब में
वो नहीं चेहरा हक़ीक़त में रहा है पास में
आजकल कटती है मेरी उसके रातें ख़्वाब में
जो हक़ीक़त में नहीं आज़म बने है मेरे ही
क्यों मगर फ़िर आजकल वो मेरे रहते ख़्वाब में