ये है कैसी मजबूरी है
ये है कैसी मजबूरी है
ये है कैसी मजबूरी है!
मिलना पर उससे दूरी है
बात अधूरी है उल्फ़त की
न मिली उसकी मंजूरी है
जाम पिया उल्फ़त का उसके
हाथों में अब अंगूरी है
टूटी डोर मुहब्बत की ही
न मिली उसकी मंजूरी है
भौरा क्या बैठे फूलों पे
फूलों में ही बेनूरी है
दीद नहीं दोस्त हुई उसकी
चाह कहा दिल की पूरी है
मांगा उसकी रब से आज़म
क़िस्मत की बस मंजूरी है
️
शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )
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