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मरणशील हो जिस मां ने हमें जीवन दिया है,
वयस्क हो हमने ही उन्हें शर्मिंदा किया है।
झेली असह्य पीड़ा हमारी खुशियों की खातिर,
बर्ताव किया हमने उनसे होकर बड़े शातिर।
जिसने अपनी खुशियों का कर दिया संहार,
हमने उस मां की ममता को कर दिया तार तार।
यह कैसा अपना व्यवहार?
मनुज जरा तू विचार!
मनुज जरा तू विचार!!
मां के त्याग को कभी जीवन में अपने उतार?
तो पता चले!
क्या थी ?
उनके बलिदान की कीमत मेरे यार।
पहले छोड़ा अपना घर बार,
फिर जोड़ा दो घरों को यार।
एक नए घर में आकर कुछ सपने सजाए,
रिश्ते निभाए।
खटी वहां दिन रात,
ताने सुनी बात ही बात;
छलनी हुई कई बार जज़्बात।
फिर भी हुई ना कभी आहत,
लिए मन में एक नन्हे-मुन्ने की चाहत।
फिर एक दिन,
जा मृत्यु के मुख में !
दिया हमें जन्म,
खुदा की कसम।
कसर कोई ना छोड़ी,
सारी ममता हमीं पर उड़ेली।
और हमने !
बना दी उनके जीवन को एक पहेली,
आज पड़ी है वह वृद्धाश्रम में अकेली।
क्या यह सही है सहेली?
बोल ना मेरी मुंहबोली!
क्यों मां की ममता से तू खेली?