शौर्य शिरोमणि महाराणा प्रताप सिंह | Maharana Pratap Singh
शौर्य शिरोमणि महाराणा प्रताप सिंह
( Shaurya Shiromani Maharana Pratap Singh )
है वीरता ना हारती
अधीनता स्वीकारती
हुंकार भर हुंकारती
है चीखती पुकारती
सर कटे या काट लो,मुड़े नहीं जबान से,
झुके नहीं रुके नहीं,टुटे नहीं इमान से।
आज भारती पुकारती
प्रताप संग प्रताप को
शौर्य जिसका सूर्य के
ललकारती है ताप को
मरे भले,लड़े सदा,प्रखर प्रताप शान से,
झुके नहीं रुके नहीं,टुटे नहीं इमान से।
चमक लपक झपक पड़े
सर काटती पलक झपे
थी नाचती लचक लचक
अरि भागते कपे कपे,
मुगलों के काल बन दहाड़ते स्वाभिमान से
झुके नहीं रुके नहीं,टुटे नहीं इमान से।
कदम पड़े जहां जहां
अरि भागते जहां तहां
न बोलते न टोकते
न सूझता चले कहां
लड़े भिड़े मरे कटे,कौन इस तुफान से,
झुके नहीं रुके नहीं,टुटे नहीं इमान से।
रुण्ड मुण्ड झुण्ड कटि
विकट वितुण्ड भू गिरे
ढाल भाल चाल शत्रु
देखि देखि खुद मरे,
गूंजती है आज भी, मेवाड़ यशगान से
झुके नहीं रुके नहीं,टुटे नहीं इमान से।
क्रोध की फुंकार से
भौंहें कमान सी तने
लाल रक्त सक्त बन
बहे नेत्र में सने
पड़े कोई खड़े कहीं सुन भागते दहाड़ से
झुके नहीं रुके नहीं,टुटे नहीं इमान से।
काट-काट छांट- छांट
पाट पाट लाश से
रण बीच युद्ध में
पाला था सर्वनाश से
बिन लड़े भिड़े ही शत्रु, कांपते बलवान से,
पड़े कोई खड़े कहीं सुन भागते दहाड़ से।
अंग भंग रंग देखि
युद्ध के मैदान में
कांपता था रूह मानो
शव पड़े श्मशान में
कांपते थे हांफते अरि महाराणा नाम से,
झुके नहीं रुके नहीं,टुटे नहीं इमान से।
रचनाकार –रामबृक्ष बहादुरपुरी