जो ना मचले जवानी जवानी नहीं | Jawani
जो ना मचले जवानी जवानी नहीं
( Jo na machle jawani jawani nahi )
जो ना मचले जवानी जवानी नहीं।
कह ना सके कहानी कहानी नहीं।
दिल का दर्द उभर लब तक आया।
गले ना पत्थर आंख का पानी नहीं।
याद ना दिलाए निशानी निशानी नहीं।
उड़ानें भर ना सके भाई वो रवानी नहीं।
पंखो में भर लो जान हौसलों की जरा।
बिन हिम्मत बुलंदिया कभी आनी नहीं।
जो ठहर गया पानी वो पानी नहीं।
झरनों सी कल कल वो आनी नहीं।
भावों की भागीरथी निर्मल सी बहे।
दमके मोती आभा कोई सानी नहीं।
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )