Tapan

तपन | Tapan

तपन

( Tapan ) 

 

तपन है जैसे तपती रेत मे नंगे पांव की
मिली न बसर जिंदगी मे किसी छांव की

चलता ही रहा ,फजर से शामेरात तक
मिली न सराय कोई ,शहर से गांव तक

बच्चों ने कहा ,भविष्य है उनके बच्चों का
बेटियों ने कह दिया ,पापा हमे भूल गए

अपनों की जरूरतें भी ,कर न सका पूरी
ख्वाहिशें अपनी भी, दम तोड़ती ही रह गईं

फुरसत ही मिली नही ,खुद को भी देख पाऊं
देखते ही देखते अब तो,नजर भी चली गई

जाने कैसे रखते हैं लोग,अपना खुश जहां
लगता है उस दर भी,मिलेगा न सुकून वहां

 

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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