बिखरा बिखरा | Suneet Sood Grover Poetry
बिखरा बिखरा
( Bikhara bikhara )
बिखरा बिखरा
कतरा कतरा
इधर उधर से
जो मैं
सहेजती हूँ
संजोती हूँ
हवा का इक
झोंका
फिर उसे
बिखरने को
कर देता है
मजबूर
दो हाथों में
कभी
आगोश में
तो कभी
दामन के
पल्लू में
फिर उसे
बचाती हूँ
समेटती हूँ
बाँध कर
फिर रख
देती हूँ
वहीं जहाँ
पहले भी
कई
दबी पड़ी हैं
दिल के मेरे
आले में
शायद अब और
यादें संभालकर
रखने की
गुंजायश नहीं
जगह ही
बची नहीं…
लेखिका :- Suneet Sood Grover
अमृतसर ( पंजाब )
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