अमेरिका में यह क्या हो गया?
अमेरिका में यह क्या हो गया?
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गर है लिखने का शौक ( Gar hai likhne ka shauq ) गर है लिखने का शौक तो कविता चुपचाप चली आती है। टूटे-फूटे शब्दों में भी भावनाएं निकल जाती है। हम तो मिश्रित भाषी हैं कभी हिंदी कभी सिंधी कभी पंजाबी कभी गुजराती निकल जाती है। भाषा के झरोखों से दिल की ऋतु…
भारतीय संविधान को नमन करता हूं ( Bhartiya samvidhan ko naman karta hoon ) गणतंत्र का वंदन करता चले लोकतंत्र सरकार भारतीय संविधान को नमन करता हूं बारंबार सर्वधर्म समभाव एकता संप्रभुता संविधान हर नागरिक भाग्य विधाता शील राष्ट्र विधान न्याय व्यवस्था कार्यप्रणाली अनूठी और बेजोड़ हर दोषी को दंड मिले कानून…
प्रेयसी सी लगती मधुशाला दुःख कष्ट पीड़ा संग, परम मैत्री अनुभूति । असफलता बिंदु पर , नवल प्रेरणा ज्योति । सघन तिमिर हरण कर , फैलाती अंतर उजाला । प्रेयसी सी लगती मधुशाला ।। तन मन पट नव चेतना, उत्साह उमंग अपार । अपनत्व सा मृदुल स्पर्श , अंतर्द्वन्द अवसानित धार । अदम्य हौसली…
संदूकची ( Sandookchi ) मेरे पास एक संदूकची है मैं हर रोज़ एक लम्हा ख़ुशी का इसमें भर देती हूँ अपनों के साथ बिताए सुखद यादों को सुकून के मख़मली पलों में लपेट सँभाल कर रख लेती हूँ शिकायतों की कुछ चवन्नी और दर्द की अठन्नी भी खनकतीं है इसमें कभी कभी पर मैं…
विरह ( Virah ) नयन सुख ले लेने दो प्रियतम तुम जाने से पहले। अधर रस पान करा दो सूरज उग जाने से पहले। सुबह से वही दोपहरी रात कटवावन लागेगी जिया की प्यास बुझा दो मेरी, तुम जाने से पहले। विरह की बात बताऊं, सूना सूना जग लागे है। बहे जब जब पुरवाई,…
वजह ( Wajah ) बेवजह परेशान हो रहे खूब बढ़ गई महंगाई। इसी वजह से घूस बढ़ रही बढ़ रही है तन्हाई। मजदूरी की रेट बढ़ गई झूठा रोना रोते क्यों। कहो वजह सड़कों पे जा धरनो में सोते क्यों। हर चीजों के दाम बढ़े तो वेतन बढ़ा हुआ पाया। आमदनी अनुकूल…
गर है लिखने का शौक ( Gar hai likhne ka shauq ) गर है लिखने का शौक तो कविता चुपचाप चली आती है। टूटे-फूटे शब्दों में भी भावनाएं निकल जाती है। हम तो मिश्रित भाषी हैं कभी हिंदी कभी सिंधी कभी पंजाबी कभी गुजराती निकल जाती है। भाषा के झरोखों से दिल की ऋतु…
भारतीय संविधान को नमन करता हूं ( Bhartiya samvidhan ko naman karta hoon ) गणतंत्र का वंदन करता चले लोकतंत्र सरकार भारतीय संविधान को नमन करता हूं बारंबार सर्वधर्म समभाव एकता संप्रभुता संविधान हर नागरिक भाग्य विधाता शील राष्ट्र विधान न्याय व्यवस्था कार्यप्रणाली अनूठी और बेजोड़ हर दोषी को दंड मिले कानून…
प्रेयसी सी लगती मधुशाला दुःख कष्ट पीड़ा संग, परम मैत्री अनुभूति । असफलता बिंदु पर , नवल प्रेरणा ज्योति । सघन तिमिर हरण कर , फैलाती अंतर उजाला । प्रेयसी सी लगती मधुशाला ।। तन मन पट नव चेतना, उत्साह उमंग अपार । अपनत्व सा मृदुल स्पर्श , अंतर्द्वन्द अवसानित धार । अदम्य हौसली…
संदूकची ( Sandookchi ) मेरे पास एक संदूकची है मैं हर रोज़ एक लम्हा ख़ुशी का इसमें भर देती हूँ अपनों के साथ बिताए सुखद यादों को सुकून के मख़मली पलों में लपेट सँभाल कर रख लेती हूँ शिकायतों की कुछ चवन्नी और दर्द की अठन्नी भी खनकतीं है इसमें कभी कभी पर मैं…
विरह ( Virah ) नयन सुख ले लेने दो प्रियतम तुम जाने से पहले। अधर रस पान करा दो सूरज उग जाने से पहले। सुबह से वही दोपहरी रात कटवावन लागेगी जिया की प्यास बुझा दो मेरी, तुम जाने से पहले। विरह की बात बताऊं, सूना सूना जग लागे है। बहे जब जब पुरवाई,…
वजह ( Wajah ) बेवजह परेशान हो रहे खूब बढ़ गई महंगाई। इसी वजह से घूस बढ़ रही बढ़ रही है तन्हाई। मजदूरी की रेट बढ़ गई झूठा रोना रोते क्यों। कहो वजह सड़कों पे जा धरनो में सोते क्यों। हर चीजों के दाम बढ़े तो वेतन बढ़ा हुआ पाया। आमदनी अनुकूल…
गर है लिखने का शौक ( Gar hai likhne ka shauq ) गर है लिखने का शौक तो कविता चुपचाप चली आती है। टूटे-फूटे शब्दों में भी भावनाएं निकल जाती है। हम तो मिश्रित भाषी हैं कभी हिंदी कभी सिंधी कभी पंजाबी कभी गुजराती निकल जाती है। भाषा के झरोखों से दिल की ऋतु…
भारतीय संविधान को नमन करता हूं ( Bhartiya samvidhan ko naman karta hoon ) गणतंत्र का वंदन करता चले लोकतंत्र सरकार भारतीय संविधान को नमन करता हूं बारंबार सर्वधर्म समभाव एकता संप्रभुता संविधान हर नागरिक भाग्य विधाता शील राष्ट्र विधान न्याय व्यवस्था कार्यप्रणाली अनूठी और बेजोड़ हर दोषी को दंड मिले कानून…
प्रेयसी सी लगती मधुशाला दुःख कष्ट पीड़ा संग, परम मैत्री अनुभूति । असफलता बिंदु पर , नवल प्रेरणा ज्योति । सघन तिमिर हरण कर , फैलाती अंतर उजाला । प्रेयसी सी लगती मधुशाला ।। तन मन पट नव चेतना, उत्साह उमंग अपार । अपनत्व सा मृदुल स्पर्श , अंतर्द्वन्द अवसानित धार । अदम्य हौसली…
संदूकची ( Sandookchi ) मेरे पास एक संदूकची है मैं हर रोज़ एक लम्हा ख़ुशी का इसमें भर देती हूँ अपनों के साथ बिताए सुखद यादों को सुकून के मख़मली पलों में लपेट सँभाल कर रख लेती हूँ शिकायतों की कुछ चवन्नी और दर्द की अठन्नी भी खनकतीं है इसमें कभी कभी पर मैं…
विरह ( Virah ) नयन सुख ले लेने दो प्रियतम तुम जाने से पहले। अधर रस पान करा दो सूरज उग जाने से पहले। सुबह से वही दोपहरी रात कटवावन लागेगी जिया की प्यास बुझा दो मेरी, तुम जाने से पहले। विरह की बात बताऊं, सूना सूना जग लागे है। बहे जब जब पुरवाई,…
वजह ( Wajah ) बेवजह परेशान हो रहे खूब बढ़ गई महंगाई। इसी वजह से घूस बढ़ रही बढ़ रही है तन्हाई। मजदूरी की रेट बढ़ गई झूठा रोना रोते क्यों। कहो वजह सड़कों पे जा धरनो में सोते क्यों। हर चीजों के दाम बढ़े तो वेतन बढ़ा हुआ पाया। आमदनी अनुकूल…