अनमोल धरोहर

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अनमोल धरोहर

( Anmol Dharohar )

 

बेटी हैं अनमोल धरोहर,
संस्कृति और समाज की।
यदि सभ्यता सुरक्षित रखनी,
सींचो मिल सब प्यार से ।।

 

मां के पेट से बन न आई,
नारी दुश्मन नारी की ।
घर समाज से सीखा उसने,
शिक्षा ली दुश्वारी से।।

 

इच्छाओं को मन में अपने,
एक एक कर दबा रही।
एक दिन यह बारूद बनेगा,
ज्वाला आग की धधक रही।।

 

अपने ही न समझे उसके,
निर्मल मन के भावों को।
कोमलता आक्रोश में बदले,
दिखा सके न घावों को ।।

 

भेद भाव बचपन से देखा,
छिनते सब अधिकार गए।
होश संभाला थोड़ा सा जब,
चुन चुन रखते भार गए।।

 

कभी भूल की क्षमा मिली न,
प्यार से कभी पुकारा न ।
अंधियारा ही समझा घर का,
दिया किसी ने सहारा न ।

 

यही देखते उम्र बढ़ चली,
बेटी मां और सास बनी।
जो सीखा जीवन भर उसने,
वही धरोहर बांट चली ।।

 

संस्कार मानव जीवन के,
अगर बचाने हमको है ।
बेटी के मन विष बेल बढ़े न,
जिम्मेदारी निभानी हमको है।।

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रचना – सीमा मिश्रा ( शिक्षिका व कवयित्री )
स्वतंत्र लेखिका व स्तंभकार
उ.प्रा. वि.काजीखेड़ा, खजुहा, फतेहपुर

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