बेमोल ही जो न बिके होते | Ghazal
बेमोल ही जो न बिके होते
( Bemol hi jo na bike hote )
बेमोल ही जो न बिके होते , हम महोब्बत में तुम्हारी
और ही तरजीह मिली होती , शायद हमें नज़रों में तुम्हारी
दिल की शाख पर खिला था जो इक फूल कभी
रंग-ए-लहू तो था हमारा , मगर खुश्बू लिये था तुम्हारी
कई मौसम गये बदल ,कई मंजर दिखे आलम में
इंतज़ार वही , तकती रही नज़र सरेराह तुम्हारी
फख्त इक शौक ही है ज़िंदगी को जीने का ,
ऐ ज़ाहिद , सीने में वो ‘संग’ रह गया ,
धड़कनें जब तू ले गया जो थी कभी हमारी…
लेखिका :- Suneet Sood Grover
अमृतसर ( पंजाब )