
उलझन
( Uljhan )
उलझनों ने घेरा है, कैसा काल का फेरा है।
किस्मत क्यों रूठ रही, मुसीबतों का डेरा है।
जीवन की जंग लड़े, कदमों में शूल पड़े।
मुश्किलें खड़ी थी द्वार, तूफानों से हम भीड़े।
रिश्ते नाते भूले हम, मर्यादाएं तोड़ चले।
बुजुर्ग माता-पिता को, वृद्धाश्रम छोड़ चले।
विकास की दौड़ भरी, भागमभाग जिंदगी।
भावी पीढ़ी का भविष्य, कहां पे हम ले चले।
उलझने हावी हुई, चिंतन की दरकार।
मनमर्जी घोड़े चले, संभले तो सरकार।
प्रेम की बहा सरिता, बरसाओ मीत प्यार।
हृदय लगा प्रेम से, दो खुशियों का अंबार।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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